-वीके/एए (रॉयटर्स)
भारतीय जनता पार्टी महिलाओं को ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार बनाने की योजना बना रही है। ऐसी योजना है कि 2024 में एक तिहाई सीटें महिला उम्मीदवारों को दी जाएं। 2019 में महिलाओं से मिले समर्थन को पार्टी दोहराना चाहती है। भारतीय चुनाव आयोग का अनुमान है कि अगले साल यानी 2024 के आम चुनावों में यह आंकड़ा बढ़कर 69 फीसदी पर पहुंच सकता है।
बनारस में रहने वाली रानिका जायसवाल के घर बहुत बड़े-बड़े लोगों का आना जाना रहा है। पिछले चार दशक में भारतीय जनता पार्टी के तमाम बड़े नेता उनके घर आते रहे हैं। अब वह चाहती हैं कि बात आने-जाने से आगे बढ़े। 2024 के चुनावों में बीजेपी से टिकट की चाह रखने वाली जायसवाल कहती हैं कि मेरे परिवार की तीन पीढ़ियां पार्टी के साथ रही हैं। लेकिन सभी पुरुष। अब वक्त बदल रहा है। मैं महिला हूं लेकिन पार्टी के प्रति पूरी निष्ठा रखती हूं। मेरे ख्याल से महिला उम्मीदवारों को जगह देना जरूरी है।
2014 और 2019 में भारतीय जनता पार्टी की जीत में महिला वोटरों की अहम भूमिका मानी गई है। 2004 में 53 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया था जबकि 2019 में यह संख्या बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई थी। भारत के इतिहास में यह पहली बार था जबकि पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने वोट किया। भारतीय चुनाव आयोग का अनुमान है कि अगले साल यानी 2024 के आम चुनावों में यह आंकड़ा बढ़कर 69 फीसदी पर पहुंच सकता है।
कहां हैं महिलाएं?
भारत की संसद पर नजर डाली जाए तो महिलाओं की यह हिस्सेदारी नजर नहीं आती है। देश में महिलाओं की आबादी 70 करोड़ है लेकिन हर दस में से सिर्फ एक महिला को राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर नीति-निर्माण में भागीदारी मिली है।
भारतीय जनता पार्टी इस बढ़ती ताकत को समझती है। उसके लिए चुनाव जीतने की उसकी रणनीति में महिला वोटरों को खास जगह दी गई है। मंत्रियों और सांसदों समेत पार्टी के दस बड़े नेताओं ने रॉयटर्स समाचार एजेंसी से बातचीत में इस बात की पुष्टि की है कि बीजेपी महिला वोटरों पर विशेष ध्यान दे रही है।
संसद और विधानसभाओं में मौजूदगी भारत में महिलाओं की असमानता की बड़ी मिसाल है। यह असमानता ऐसी है, जो बचपन से उनके साथ जुड़ जाती है। यूनिसेफ के आंकड़े बताते हैं कि शिशु मृत्यु दर में लड़कियों की संख्या लड़कों से ज्यादा है। यानी पैदा होने के बाद भी लड़की के मरने की संभावना ज्यादा होती है। उनके स्कूल छोड़ने की संभावना भी लड़कों से ज्यादा होती है।
और यह असमानता बढ़ते-बढ़ते छोटी-मोटी नौकरियों से लेकर बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घरानों के बोर्ड रूम तक पहुंचती है। डिलोएट संस्था की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में हर 20 पुरुषों पर भारत में एक से भी कम महिला सीईओ थी।
एक तिहाई सीटें महिलाओं को
भारतीय जनता पार्टी में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सांसद वनाती श्रीनिवासन को सौंपी गई है। वह कहती हैं कि भारत के राजनीतिक गलियारों में महिलाओं की संख्या बढ़ाना बड़े बदलाव लेकर आएगा। हालांकि अभी विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन बीजेपी नेताओं का कहना है कि पार्टी 2024 के चुनावों में 543 सीटों में से कम से कम एक तिहाई पर महिला उम्मीदवारों को उतारने का लक्ष्य लेकर चल रही है।
इसके साथ ही, पार्टी चाहती है कि उसके अधिकारियों में भी 900 पद महिलाओं को दिए जाएं ताकि हर स्तर पर कम से कम एक तिहाई भागीदारी महिलाओं की हो। इनमें नये पदों के अलावा वे पद भी शामिल हैं, जो अन्य नेताओं की सेवानिवृत्ति से खाली होंगे। बीजेपी की इस रणनीति की सफलता का अंदाजा चुनकर आने वाली उसकी महिला उम्मीदवारों की संख्या से लगाया जा सकेगा। अभी संसद में पार्टी के 300 सांसद हैं जिनमें से सिर्फ 42 महिलाएं हैं।
किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ लंदन में भारतीय राजनीति और समाजशास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर क्रिस्टोफ जैफरलोट कहते हैं कि आर्थिक तरक्की के बावजूद भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की रफ्तार कम रही है। बीजेपी को साबित करना होगा कि वह वाकई महिलाओं को राजनीतिक मौके देने में यकीन रखती है। और आंकड़े इसकी गवाही देंगे।
हालांकि आलोचक बीजेपी की मंशाओं पर सवाल भी उठाते हैं। कुछ आलोचकों का कहना है कि अगर पार्टी वाकई महिलाओं को भागीदारी देने को लेकर गंभीर है तो 2024 से पहले लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पास करवा सकती है क्योंकि उसके पास बहुमत है। बीजेपी ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।
ग्रामीण महिलाओं की ओर ध्यान
भारतीय जनता पार्टी ने अपना एक निजी सर्वेक्षण करवाया है जिसमें यह बात निकल कर आई कि महिला वोटरों की बढ़ती संख्या उसकी सफलता के लिए जिम्मेदार रही है। श्रीनिवासन कहती हैं कि इसमें ग्रामीण महिलाओं की बढ़ती राजनीतिक चेतना की अहम भूमिका है।
श्रनिवासन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के बारे में ज्यादा बताने से पहरेज करती हैं लेकिन उन्होंने कहा कि हजारों महिला मतदाताओं ने सर्वेक्षण के दौरान कहा कि आर्थिक तरक्की के बावजूद महिलाओं को मिले कम प्रतिनिधित्व ने उन्हें निराश किया।
बीजेपी की 6 अन्य वरिष्ठ महिला नेताओं ने कहा कि राज्य और जिला स्तर पर पार्टी नेतृत्व में मौजूद रूढ़िवादी पदाधिकारियों का रवैया महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाने के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा है। ये नेता कहती हैं कि हालिया विधानसभा चुनावों के दौरान यह मुद्दा और उभरकर सामने आया जब प्रधानमंत्री मोदी या अन्य राष्ट्रीय नेताओं ने कई महिला उम्मीदवारों के टिकट काट दिए।
पिछले साल राज्यसभा की सदस्य बनीं फांगनोन कोनयाक नगालैंड से ऊपरी सदन के लिए चुनी जाने वालीं राज्य की पहली महिला बनीं। वह कहती हैं कि चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया के दौरान स्थानीय नेताओं ने कई बार उनकी क्षमताओं पर सवाल उठाए क्योंकि वह अपने बच्चे की एकल अभिभावक हैं।
वह बताती हैं कि पुरुष कई बार कहते, आप घर क्यों नहीं बैठतीं, दोबारा शादी क्यों नहीं करतीं या अपने बच्चे का ख्याल क्यों नहीं रखतीं। पार्टियों के लिए यह साबित करने का मौका है कि वे महिलाओं को वरिष्ठ पदों पर देखना चाहती हैं। कई बार खेल अंदर से ही तय हो जाता है, जो महिलाओं को इन उच्च पदों पर नहीं देखना चाहते।
नगालैंड की पहली महिला विधायक हेकानी जाखलू भी इस बात से इत्तेफाक रखती हैं। वह कहती हैं कि महिलाओं के लिए चुनाव जीतने से ज्यादा मुश्किल होता है स्थानीय पार्टी अधिकारियों को इस बात का यकीन दिला पाना कि वे चुनाव जीत सकती हैं। वह कहती हैं कि राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाली महिलाओं को अपनी निष्ठा और नेतृत्व-क्षमता को साबित करने के कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
लैंगिक समानता लाने की कोशिश
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कहते हैं कि नारी शक्ति को बढ़ाना और प्रतिभाशाली महिलाओं के कौशल का लाभ उठाना उनकी पार्टी की विकास-रणनीति का अहम हिस्सा है। प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करने वाले एक अधिकारी ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मानते हैं कि लैंगिक समानता में सुधार प्रशासन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
इस अधिकारी ने नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर कहा कि हमसे कहा गया है कि हर विभाग को अपने यहां लैंगिक समानता स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। यह लंबी अवधि में होने वाले सुधारों का हिस्सा है। अन्य पार्टियां भी महिला मतदाताओं की ताकत को पहचान रही हैं और प्रतिनिधित्व में असंतुलन से महिलाओं को निराशा को दूर करने की कोशिश में हैं।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को भी उम्मीद है कि इस बार ज्यादा महिलाएं उसके पक्ष में मतदान करेंगी और दो दशक से सत्ता से बाहर बैठी पार्टी की वापसी की राह आसान करेंगी। पार्टी की महिला शाखा की अध्यक्ष नेटा डिसूजा कहती हैं कि कांग्रेस पार्टी कुदरती विकास में यकीन करती है लेकिन बीजेपी ऐतिहासिक रूप से पुरुष नेताओं पर केंद्रित रही है। हमारी पार्टी किसी उम्मीदवार की लैंगिक पहचान को नहीं, उसकी दृढ़ता को देखती है।