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  4. Virat Kohli could be a voluminous Chapter in Hefty ledger of test cricket
Written By WD Sports Desk
Last Modified: मंगलवार, 13 मई 2025 (14:18 IST)

विराट कोहली जैसे खिलाड़ी आएंगे और जाएंगे, लेकिन टेस्ट क्रिकेट की कहानी अनंत है

Test Cricket
टेस्ट क्रिकेट, क्रिकेट का सबसे पुराना और प्रतिष्ठित प्रारूप, 145 वर्षों से अधिक समय से खेल प्रेमियों के दिलों में बस्ता आ रहा है। यह खेल का वह रूप है, जो धैर्य, तकनीक, रणनीति और मानसिक दृढ़ता की सबसे कठिन परीक्षा लेता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब कोई महान खिलाड़ी, जैसे डॉन ब्रैडमेन, गारफील्ड सोबर्स, सचिन तेंदुलकर या अब विराट कोहली, इस प्रारूप को अलविदा कहता है, तो क्या टेस्ट क्रिकेट की सेहत या भविष्य पर वास्तव में कोई असर पड़ता है? क्या यह प्रारूप किसी एक व्यक्ति पर निर्भर है, या इसका अस्तित्व उससे कहीं बड़ा है?

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: ब्रैडमेन से तेंदुलकर तक

टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में कई ऐसे मौके आए हैं, जब महान खिलाड़ियों के संन्यास को इस प्रारूप के लिए "अंत का प्रारंभ" माना गया। 1948 में जब सर डॉन ब्रैडमेन ने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहा, तब उनकी बल्लेबाजी औसत 99.94 थी—एक ऐसा रिकॉर्ड, जो आज भी अछूता है। क्रिकेट पंडितों ने उस समय कहा था कि ब्रैडमेन के बिना टेस्ट क्रिकेट की चमक फीकी पड़ जाएगी। लेकिन क्या ऐसा हुआ? नहीं। ऑस्ट्रेलिया की टीम ने नील हार्वे, रिची बेनूड जैसे नए सितारों को जन्म दिया, और टेस्ट क्रिकेट ने अपनी लोकप्रियता बरकरार रखी।

इसी तरह, 1974 में जब वेस्टइंडीज के गारफील्ड सोबर्स ने संन्यास लिया, तो उनके ऑलराउंड प्रदर्शन को अपूरणीय माना गया। लेकिन वेस्टइंडीज ने क्लाइव लॉयड, विवियन रिचर्ड्स, माइकल होल्डिंग और क्लाइव लॉयड जैसे खिलाड़ियों के साथ 1970 और 80 के दशक में टेस्ट क्रिकेट पर राज किया।
Virat and Sunil Gavaskar
डेनिस लिली, ग्रेग चैपल, रोडनी मार्श ने जब ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट टीम से रिटायरमेंट लिया तो कहा गया कि टेस्ट की चमक फीकी पड़ जाएगी, लेकिन फौरन एलन बॉर्डर, मार्क टेलर, स्टीव वॉ जैसे सितारे सामने आ गए और टेस्ट क्रिकेट को चमकीला बना दिया।

गावस्कर के बाद सवाल उठा तो जवाब में सचिन तेंदुलकर आए। सचिन तेंदुलकर के 2013 में संन्यास के बाद भी यही सवाल उठा था। तेंदुलकर, जिन्हें "क्रिकेट का भगवान" कहा जाता है, के जाने के बाद भारतीय क्रिकेट में विराट कोहली और जसप्रीत बुमराह जैसे खिलाड़ी उभरे, जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।

टेस्ट क्रिकेट का लचीलापन: क्यों नहीं पड़ता फर्क?

टेस्ट क्रिकेट की सबसे बड़ी ताकत उसका लचीलापन और समय के साथ अनुकूलन करने की क्षमता है। यह प्रारूप किसी एक खिलाड़ी पर निर्भर नहीं है, बल्कि यह सामूहिकता, परंपरा और खेल की आत्मा पर टिका है। उदाहरण के लिए, जब 2000 के दशक में ब्रायन लारा और शेन वॉर्न जैसे दिग्गजों ने संन्यास लिया, तो टेस्ट क्रिकेट को टी20 के उदय के कारण पहले ही खतरे की घंटी मानी जा रही थी। लेकिन रिकी पॉन्टिंग, जैक कालिस, और बाद में जो रूट और केन विलियमसन जैसे खिलाड़ियों ने इस प्रारूप को जीवित रखा।

विराट कोहली, जिन्हें आधुनिक युग के सबसे बड़े टेस्ट बल्लेबाजों में गिना जाता है, अगर भविष्य में संन्यास लेते हैं, तो क्या टेस्ट क्रिकेट कमजोर हो जाएगा? शायद नहीं। भारत में शुभमन गिल, यशस्वी जायसवाल और ऋषभ पंत जैसे युवा खिलाड़ी पहले ही अपनी छाप छोड़ रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में स्टीव स्मिथ और पैट कमिंस, इंग्लैंड में बेन स्टोक्स और न्यूजीलैंड में टॉम लाथम जैसे खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट को मजबूती दे रहे हैं। यह प्रारूप व्यक्तियों से बड़ा है, क्योंकि यह एक विचार है—खेल की शुद्धता और चुनौती का विचार।

चुनौतियां और भविष्य

हालांकि, यह कहना गलत होगा कि टेस्ट क्रिकेट को कोई खतरा नहीं है। टी20 और वनडे क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता, छोटे प्रारूपों की आर्थिक व्यवहार्यता, और दर्शकों की घटती ध्यान अवधि टेस्ट क्रिकेट के लिए चुनौतियां हैं। लेकिन इनका संबंध किसी एक खिलाड़ी के संन्यास से नहीं, बल्कि खेल प्रशासन और विपणन रणनीतियों से है। उदाहरण के लिए, विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (WTC) ने टेस्ट क्रिकेट को नया संदर्भ दिया है। 2021 और 2023 के WTC फाइनल ने दिखाया कि टेस्ट क्रिकेट अब भी दर्शकों को आकर्षित कर सकता है, बशर्ते इसे सही तरीके से प्रस्तुत किया जाए।

इसके अलावा, टेस्ट क्रिकेट की सेहत का एक बड़ा हिस्सा इस बात पर निर्भर करता है कि क्रिकेट बोर्ड इसे कितनी प्राथमिकता देते हैं। दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में टेस्ट क्रिकेट को कम महत्व देने के कारण वहां की टीम कमजोर हुई है, लेकिन भारत, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देशों में टेस्ट क्रिकेट अब भी मजबूत है। यह दिखाता है कि टेस्ट क्रिकेट का भविष्य खिलाड़ियों के संन्यास से ज्यादा नीतिगत निर्णयों पर निर्भर करता है।

टेस्ट क्रिकेट का अमरत्व

टेस्ट क्रिकेट का इतिहास बताता है कि यह प्रारूप किसी एक खिलाड़ी के आने या जाने से प्रभावित नहीं होता। ब्रैडमेन, सोबर्स, तेंदुलकर, और भविष्य में कोहली जैसे खिलाड़ी इस खेल को समृद्ध करते हैं, लेकिन उनकी अनुपस्थिति में भी टेस्ट क्रिकेट नए नायकों को जन्म देता है। यह प्रारूप समय की कसौटी पर खरा उतरा है, क्योंकि यह केवल खेल नहीं, बल्कि एक संस्कृति है। जब तक क्रिकेट बोर्ड, खिलाड़ी और प्रशंसक इस संस्कृति को जीवित रखेंगे, टेस्ट क्रिकेट न केवल बरकरार रहेगा, बल्कि फलता-फूलता रहेगा।

टेस्ट क्रिकेट की आत्मा उसकी चुनौतियों में है। यह एक ऐसा खेल है, जो खिलाड़ियों और दर्शकों से धैर्य मांगता है, और यही इसकी ताकत है। सचिन, रोहित, कोहली जैसे खिलाड़ी आएंगे और जाएंगे, लेकिन टेस्ट क्रिकेट की कहानी अनंत है और रहेगी।
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