बेंगलुरु। भारतीय टीम आत्मविश्वास से भरी ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ शनिवार को यहां जब दूसरा टेस्ट क्रिकेट मैच खेलने के लिए मैदान पर उतरेगी तो वह श्रृंखला के शुरुआती मैच में शर्मनाक हार से आहत विराट कोहली की कप्तान के रूप में सबसे कठिन परीक्षा भी होगी।
भारतीय टीम ने ऐसे कम मौके देखे हैं जबकि घरेलू टेस्ट श्रृंखला में उसे शुरू में ही हार का सामना करना पड़ा हो और इसलिए चिन्नास्वामी स्टेडियम में होने वाला मैच अधिक दिलचस्प बन गया है।
कोहली और उनकी टीम का चिंतित होना और साथ ही सतर्कता बरतना जायज है, क्योंकि पुणे की स्पिन लेती पिच पर स्टीव ओकीफी की स्पिन गेंदबाजी के सामने भारतीय बल्लेबाजों ने नतमस्तक होने में देर नहीं लगाई और टीम को 333 रनों के भारी अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
इस हार से भारतीय टीम का 19 मैचों तक चला अजेय अभियान भी समाप्त हो गया और अब पिछली हार से सबक लेकर नए सिरे से शुरुआत करने का समय है। अनिल कुंबले की देखरेख में खेल रही टीम चिन्नास्वामी की पिच पर जीत दर्ज करके 4 मैचों की श्रृंखला में वापसी करने की कोशिश करने के लिए प्रतिबद्ध है। यहां की पिच पुणे की तुलना में कुछ बेहतर दिख रही है।
भारतीय बल्लेबाजों को ऑस्ट्रेलिया की नई स्पिन जोड़ी नैथन लियोन और ओकीफी से तो निबटना होगा, साथ ही तेज गेंदबाजी की जोड़ी मिशेल स्टार्क और जोश हेजलवुड के खिलाफ भी सतर्कता बरतनी होगी, जो उनके लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं। इसी तरह से भारतीय अभी तक स्टीव स्मिथ को सस्ते में आउट करने का तरीका नहीं ढूंढ पाए हैं। ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ने पहले मैच की मुश्किल पिच पर दूसरी पारी में शतक जड़ा और वे अपनी इस फॉर्म को जारी रखना चाहेंगे।
डीआरएस का सही उपयोग एक अन्य मसला है। पहले टेस्ट मैच में भारतीय इसका सही तरह से उपयोग नहीं कर पाए थे। कोहली निश्चित तौर पर टॉस जीतना चाहेंगे, जो पुणे में काफी अहम साबित हुआ था। वे स्वयं एक 'फाइटर' हें और उनका लक्ष्य ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों पर हावी होना रहेगा जैसा कि वे इससे पहले ऑस्ट्रेलिया के पिछले दौरों में कर चुके हैं।
कप्तान कोहली हर हालत में चाहेंगे कि बल्लेबाज कोहली तेज गेंदबाज स्टार्क की रिवर्स स्विंग और ओकीफी की आर्म बॉल का सही तरह से अनुमान लगाएं। पिच एक मसला है कि बेंगलुरु का मौसम भी गुल खिला सकता है, क्योंकि मैच के दूसरे दिन यानी रविवार को बारिश की भविष्यवाणी की गई है। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ इस स्थल पर खेले गए आखिरी टेस्ट मैच में केवल पहले दिन का खेल हो पाया था और बाकी दिन बारिश हावी रही थी।
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय टीम का सकारात्मक पहलू उसकी 'बेंच स्ट्रेंथ' और एक ही स्थान के लिए कई विकल्प रहा है और ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय टीम प्रबंधन इस खास मैच के लिए किस तरह के टीम संयोजन को पसंद करता है। धोनी से कप्तानी हासिल करने के बाद कोहली की टीम का संयोजन बदलता रहा है।
उन्होंने अब तक जिन 24 टेस्ट मैचों में कप्तानी की उनमें से अधिकतर में अलग-अलग टीम संयोजन आजमाए। इस बार भी अंतिम एकादश में 1 या 2 बदलाव संभव हैं लेकिन यह पिच पर निर्भर करेगा, जो पुणे की तुलना में बेहतर दिख रही है।
कोहली 5 गेंदबाजों के साथ खेलने के पक्षधर रहे हैं और उनकी यह रणनीति पिछले 18 महीनों में कारगर साबित हुई है। हालांकि ऑस्ट्रेलियाई स्पिनरों ने अनुकूल पिच पर भारतीय बल्लेबाजों की कमजोरी उजागर कर दी है जिससे भारतीय टीम की व्यवस्था थोड़ा संदेहास्पद बन गई है।
पिछले मैच में भारत की कमजोर कड़ी ऑफ स्पिनर जयंत यादव थे और वे गेंदबाजी और बल्लेबाजी दोनों में कमजोर नजर आए। उनकी बल्लेबाजी पर किसी को गौर नहीं करना चाहिए, क्योंकि बाकी बल्लेबाज भी नाकाम रहे थे। जब दिग्गज बल्लेबाज नहीं चल पाए हों तब नौवें नंबर के बल्लेबाज को 2 और 5 रन बनाने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता है।
यदि नायर खेलते हैं तो भारत को 4 विशेषज्ञ गेंदबाजों के साथ उतरना होगा। अश्विन, जडेजा और उमेश यादव तो स्वाभाविक पसंद हैं। ईशांत शर्मा ने खराब गेंदबाजी नहीं की लेकिन वे विकेट भी नहीं ले पाए। दूसरी पारी में हालांकि उन्हें केवल 3 ओवर ही दिए गए थे।
भुवनेश्वर कुमार ने अपनी तेजी बढ़ाई है और वे रिवर्स स्विंग भी करने लगे हैं। इसके अलावा वे निचले क्रम में बल्लेबाजी भी कर सकते है। ऐसे में वे एक अच्छी पसंद हो सकते हैं। हार्दिक पंड्या ऑलराउंडर हैं लेकिन लंबी अवधि के प्रारूप में उनकी बल्लेबाजी को अभी आजमाया नहीं गया है।
राष्ट्रीय कोच कुंबले ने अंतिम एकादश के बारे में कुछ भी बताने से इंकार कर दिया जबकि दोनों टीमों के पूर्व कप्तानों ने इसको लेकर अपने विचार जरूर व्यक्त किए हैं। पूर्व भारतीय कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन चाहते हैं कि ईशांत और जयंत को बाहर कर देना चाहिए जबकि माइकल क्लार्क का मानना है कि दिल्ली के तेज गेंदबाज को टीम में बनाए रखना चाहिए। (भाषा)