हरभजन सिंह ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट और आईपीएल समते सभी प्रारुपों के क्रिकेट से संन्यास लिया है। संन्यास लेने के बाद अब उनके तीखे तेवर दिखने लग गए हैं।
हाल ही में उन्होंने बीसीसीआई पर बड़ा आरोप लगाया है कि 200 से ज्यादा मैच खेलने पर भी उन्हें कभी कप्तान नहीं बनाया गया। भज्जी ने कहा है कि उनकी बोर्ड में पहचान नहीं थी इस कारण उनको कप्तान नहीं बनाया गया।
अगर सर्वाधिक मैच खेलने के बावजूद कप्तानी ना मिलने की लिस्ट पर निगाह डाली जाए तो हरभजन सिंह सिर्फ अपने दोस्त युवराज सिंह से ही पीछे हैं जिन्हें कुल 367 मैच खेलने के बाद भी कप्तानी का स्वाद नहीं मिल पाया।
भारत के लिए इन खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर खूब नाम कमाया, लेकिन कभी कप्तान न बन सके:
खिलाड़ियों का नाम |
अंतरराष्ट्रीय मैच |
युवराज सिंह |
402 |
हरभजन सिंह |
367 |
जहीर खान |
309 |
जवागल श्रीनाथ |
296 |
रवींद्र जडेजा |
270 |
बीसीसीआई पर सिलसिलेवार हमले बोलते हुए टर्बनेटर ने कहा कि अपने करियर के दौरान बोर्ड ने उनका कभी समर्थन नहीं किया। हरभजन को इस बात का मलाल था कि 2015-16 में जब वह शानदार लय में थे तब उन्हें राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं मिली लेकिन उन्हें किसी चीज पर पछतावा नहीं है।
हाल ही में हरभजन सिंह ने संन्यास के बाद उनके करियर के कई मशहूर और अनछुए पहलुओं पर एक इंटरव्यू में सवालों के जवाब दिए थे।
संन्यास के समय के बारे में हरभजन ने कहा था, मुझे यह स्वीकार करना होगा कि समय सही नहीं है। मैंने काफी देर कर दी। आम तौर पर, मैं अपने पूरे जीवन में समय का पाबंद रहा हूं। शायद यही एक चीज है जिसमें मैंने देरी कर दी। बात बस इतनी सी है कि खेल के दौरान मैं टाइमिंग (समय) से चूक गया।
मंकीगेट प्रकरण के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा था, जाहिर है यह कुछ ऐसा था जिसकी आवश्यकता नहीं थी। उस दिन सिडनी में जो कुछ भी हुआ वह नहीं होना चाहिए था । लेकिन यह भूल जाना चाहिये कि किसने क्या कहा। आप और मैं दोनों जानते हैं कि सत्य के दो पहलू होते हैं। इस पूरे प्रकरण में किसी ने भी सच्चाई के मेरे पक्ष की परवाह नहीं की।
उन्होंने कहा, उन कुछ हफ्तों में मेरी मानसिक स्थिति क्या थी, इसकी किसी ने परवाह नहीं की। मैंने कभी भी इस घटना कहानी के बारे में अपने पक्ष को विस्तार से नहीं बताया लेकिन लोगों को इसके बारे में मेरी आने वाली आत्मकथा में पता चलेगा। मैं जिस दौर से गुजरा था, वो किसी के साथ नहीं होना चाहिए था।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2001 टेस्ट श्रृंखला में 32 विकेट लेकर भारत की जीत सुनिश्चित करने और टी20 विश्व कप (2007) तथा 2011 एकदिवसीय विश्व कप में चैंपियन बनने में से
सबसे यादगार लम्हे के बारे में पूछे जाने पर हरभजन ने कहा था, हर क्रिकेटर के लिए आपको एक ऐसा प्रदर्शन चाहिए, जिसके बाद लोग उसका समर्थन करें और गंभीरता से उसके खेल पर ध्यान दें। 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ श्रृंखला मेरे लिए वही पल था। अगर उस समय की नंबर एक टीम के खिलाफ 32 विकेट और हैट्रिक नहीं होती, तो मेरे बारे में शायद ज्यादा लोग नहीं जानते।
उन्होंने कहा, ऑस्ट्रेलिया श्रृंखला ने मेरा वजूद बनाया। वह मेरे अस्तित्व के साथ जुड़ा है। इसने साबित कर दिया कि मैं एक या दो श्रृंखला के बाद गायब नहीं होऊंगा। यह साबित कर दिया कि मैं इस जगह का हकदार हूँ।
हरजभन ने अपना ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट गांगुली और धोनी की कप्तानी में खेला और जब उनसे उनके करियर के संदर्भ में दोनों की तुलना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था, यह मेरे लिए एक आसान सा जवाब है। गांगुली ने मुझे अपने करियर के उस मोड़ पर पकड़ रखा था जब मैं कोई नहीं था। लेकिन जब धोनी कप्तान बने तो मैं कोई था। इसलिए आपको इस बड़े अंतर को समझने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, दादा (गांगुली) जानते थे कि मुझमें हुनर है लेकिन यह नहीं पता था कि मैं प्रदर्शन करूंगा या नहीं। धोनी के मामले में, उन्हें पता था कि मैंने अच्छा प्रदर्शन किया है। जीवन और पेशे में, आपको उस व्यक्ति की आवश्यकता है, जो आपको सही समय पर मार्गदर्शन करे और दादा मेरे लिए वह व्यक्ति थे।