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चुल्लू भर पानी में डूब मरो कंगारुओं...

चुल्लू भर पानी में डूब मरो कंगारुओं... - Ball Tempering, Australian Cricketer,
'बॉल टेम्परिंग' कांड की स्वीकारोक्ति के बाद गद्दार कंगारु क्रिकेटरों को चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाना चाहिए...ऑस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीवन स्मिथ ये स्वीकार करने में जरा भी नहीं चूकते कि उनकी टीम ने जीत के लिए गेंद की शक्ल बिगाड़ने का हथकंडा अपनाया। आईसीसी ने इस हरकत पर स्मिथ पर केवल एक मैच का प्रतिबंध 100 फीसदी मैच फीस का जुर्माना लगाया जबकि युवा ओपनर कैमरून बेनक्रॉफ्ट को इस अपराध के लिए 75 फीसदी मैच फीस काटने का ऐलान किया। जिस टीम ने पूरे ऑस्ट्रेलिया को शर्मसार किया हो उसे इतनी कम सजा??? लानत है...
 
 
आईसीसी ने पक्के सबूत के बाद भी ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों के साथ ऐसी नरमी बरती मानों उन्होंने खेल के मैदान पर यह मामूली सा अपराध किया हो जबकि इसी जगह कोई और टीम होती तो दुनिया का क्रिकेट चलाने वाली सर्वोच्च संस्था उस पर कोड़े लेकर लपक पड़ती...और ऐसे बरसाती कि नानी याद आ जाए..लेकिन हुआ इससे बिलकुल उलट। ऑस्ट्रेलियाई टीम ने ये 'सामूहिक‍ चीटिंग' केपटाउन में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तीसरे टेस्ट मैच में की, जिसमें जो सजा दी गई है वह बर्दाश्त के बाहर है। 
2000 में दक्षिण अफ्रीका के सूरमा कप्तान हैंसी क्रोन्ये ने जब पहली बार 'मैच फिक्सिंग' के भूत का भांडा फोड़ा तो पूरी दुनिया की क्रिकेट बिरादरी सन्न रह गई। क्रोन्ये ने खुलासा किया था कि मैदान पर खिलाड़ी किस तरह सट्‍टेबाजों के हाथों की कठपुतली होते हैं और मैच को फिक्स करते है। क्रोन्ये की स्वीकारोक्ति के बाद उन लोगों का क्रिकेट से भरोसा उठ गया था, जो इस खेल को दीवानों की तरह प्यार करते थे। 
 
क्रोन्ये की घटना को 18 साल बीत चुके हैं लेकिन क्रिकेट का खेल उसके चाहने वालों का कभी भरोसा नहीं जीत सका है। आईसीसी ने भले ही कड़ा पहरा बैठा दिया हो लेकिन कई लोगों का मानना है कि फिक्सिंग का खेल आज भी बदस्तूर जारी है। जहां एक ताकतवर टीम यकायक बिना वजह मैच गंवाने लगे तो जुबां से 'फिक्सिंग' के अलावा और कोई दूसरा शब्द निकलता ही नहीं है। यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि मैदान पर खिलाड़ी भले ही खेल रहे होते हैं लेकिन किस टीम को जीतकर बाहर आना है, ये सटोरिए तय करते हैं।
हैंसी क्रोन्ये ने कैमरे पर स्वीकार किया था कि दुनिया के कई क्रिकेटर मैच फिक्सिंग में शामिल हैं और उस घटना के बाद ये दूसरी सबसे बड़ी घटना है, जिसमें ऑस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीवन स्मिथ ने बॉल टेम्परिंग करने के सच को स्वीकार किया। उनकी स्वीकारोक्ति के बाद एक बार फिर से क्रिकेट की दुनिया हिल उठी है कि आखिर जीत के लिए इतनी बेईमानी क्यों?? 
 
बदनाम ऑस्टेलियाई क्रिकेटरों पर आईसीसी के द्वारा दोहरे मापदंड अपनाना भी कई सवाल खड़े कर रहा है। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 2001 में पोर्ट एलिजाबेथ टेस्ट में भारत के सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, वीरेंद्र सहवाग और हरभजन सिंह समेत 7 खिलाड़ियों पर इसलिए आईसीसी ने प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि भारतीय खिलाड़ी ज्यादा अपील कर रहे थे।
2008 सिडनी टेस्ट में हरभजन सिंह पर नस्ली टिप्पणी के लिए तीन मैचों का प्रतिबंध लगा दिया था जबकि वे बेकसूर थे। हरभजन सिंह आज भी कहते है कि तब एंड्यू साइमंड ने मुझे गाली दी थी और इसका जवाब मैंने गाली से ही दिया था। इसके बाद भी मुझ पर प्रतिबंध लगाया था। यह समझ से परे है कि आईसीसी के आका आखिर ऑस्ट्रेलिया से इतना डरते क्यों हैं?
 
अब जबकि ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर पूरी क्रिकेट बिरादरी के सामने बेनकाब हो चुके हैं, ऐसे में आईपीएल के 11वें संस्करण में तो उनकी जगह कहीं से नहीं बनती लेकिन आईपीएल की संचालन समिति के मुखिया राजीव शुक्ला का यह कहना कि हम ये देखेंगे कि क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया क्या एक्शन लेता हैं, उसके बाद ही कुछ निर्णय लेंगे। उनका ये तर्क कहां तक सही है?? बेईमान ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों पर इतनी रहमदिली क्यों? आईपीएल में ऐसे क्रिकेटरों पर प्रतिबंध लगाने का साहस बीसीसीआई ने क्यों नहीं दिखाया?
 
आप देखिएगा, कुछ समय बाद सब कुछ लोग भूल जाएंगे और वो झूठे, बेईमान और गद्दार क्रिकेटर एक बार फिर बेशर्मी के साथ क्रिकेट मैदान पर नजर आएंगे, जिस खेल को आप सब भद्रजनों का खेल कहते हैं। याद कीजिए इन 18 सालों में कितना कुछ बदल गया। हैंसी क्रोन्ये के मैच फिक्सिंग खुलासे के बाद जिन क्रिकेटरों के सफेद कपड़ों पर 'काला दाग' लगा था...आईसीसी ने जिन पर क्रिकेट मैदान पर आजीवन न उतरने का प्रतिबंध लगाया था, उसमें से बहुत सारे क्रिकेटर टीवी पर आकर अपने ज्ञान की उल्टियां करते नजर आते हैं... 
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