थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति की दर बेशक इन दिनों घटकर 3 प्रतिशत के आसपास आ गई है, लेकिन औद्योगिक कर्मचारियों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति की दर अभी भी छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है।
सरकार के आँकड़े बताते हैं कि इस साल जनवरी से लेकर अक्टूबर के दौरान थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 6.4 प्रतिशत से लगातार घटती हुई अक्टूबर में तीन प्रतिशत पर आ गई, जबकि औद्योगिक कर्मचारियों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति जनवरी में 6.7 प्रतिशत पर थी, फरवरी में 7.6 प्रतिशत तक बढ़ने के बाद जून में 5.7 प्रतिशत तक घटी और फिर सितंबर में 6.4 प्रतिशत पर आ गई।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति की दर डब्ल्यूपीआई पर आधारित मुद्रास्फीति की दर नवंबर 2005 से ही ऊँची बनी हुई है। सूत्रों का कहना है कि औद्योगिक कर्मचारियों के थोक मूल्य सूचकांक में खाद्य समूह का वजन 46 प्रतिशत तक है, जबकि डब्ल्यूपीआई में खाद्य समूह का वजन मात्र 27 प्रतिशत तक ही है। यही वजह है कि खाद्य समूह का वजन अधिक होने की वजह से सीपीआई की मुद्रास्फीति ऊँची बनी हुई है, जबकि डब्ल्यूपीआई में इस समूह का वजन कम होने के कारण मुद्रास्फीति की दर कम रह गई। दूसरे शब्दों में खाद्य वस्तुएँ अभी भी महँगी हैं।
प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री बार-बार अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों और खाद्यान्नों के ऊँचे दाम से महँगाई के एक बार फिर सिर उठाने के प्रति सतर्क कर चुके हैं। खाद्यान्नों की कीमतें ऊँची होने की वजह से ही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महँगाई की दर छह प्रतिशत से भी ऊपर चल रही है, क्योंकि इस सूचकांक की गणना में खाद्यान्नों को 46 प्रतिशत तक वजन दिया गया है, जबकि थोक मूल्य सूचकांक में इनका वजन एक चौथाई ही रहता है।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक विकसित देशों के मुकाबले भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की दर लगातार ऊँची बनी हुई है, जबकि विकासशील देशों के मुकाबले भारत में यह पहले कम थी लेकिन बाद में लगातार बढ़ती चली गई। वर्ष 2001 में विकसित देशों में सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति 2.1 प्रतिशत थी, जबकि भारत में यह 3.9 प्रतिशत और विकासशील देशों में 6.5 प्रतिशत पर थी।
वर्ष 2005 में यह भारत में 4.3 प्रतिशत, विकासशील देशों में 5.2 प्रतिशत और विकसित देशों में 2.3 प्रतिशत पर ही थी। जुलाई 2007 की ताजा स्थिति के मुताबिक भारत में यह 6.5 प्रतिशत, विकासशील में 5.6 प्रतिशत और विकसित देशों में केवल 1.9 प्रतिशत पर बनी हुई है। सरकार का कहना है कि वह पेट्रोलियम उत्पादों के दाम नहीं बढ़ाएगी, पेट्रोलियम पदार्थों के दाम स्थिर रहने से महँगाई निम्न स्तर पर रहती है। हाल के महीने में गेहूँ चीनी की आमद बढ़ने और रुपए की मजबूती के कारण आयातित माल रुपए में सस्ता होने की वजह से महँगाई बढ़ने की दर लगातार घटती हुई तीन प्रतिशत के आसपास रह गई है।
रिजर्व बैंक महँगाई पर अंकुश के लिए समय-समय पर अनेक वित्तीय उपाय करता रहा है, जबकि प्रशासनिक उपायों के जरिए कमी वाले उत्पादों, जिनमें गेहूँ, तेल और दाल है, का आयात कर उपलब्धता बढ़ाई गई है।