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Written By नृपेंद्र गुप्ता

व्यापार 2016 : नोटबंदी ने थामी रफ्तार, जीएसटी करेगा भविष्य का फैसला

व्यापार 2016 : नोटबंदी ने थामी रफ्तार, जीएसटी करेगा भविष्य का फैसला - Notbandi, Year 2016, GST, Indian economy, central government
2014 में प्रधानमंत्री मोदी की देश में लहर थी। हर जुबां पर केवल एक ही नाम था मोदी। उस वर्ष पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए, महंगाई घटी, नौकरियों की बहार आई, निवेशकों को यहां की परिस्थितियों ने रिझाया और मोदी का जादू मेक इन इंडिया से होते हुए मेड इन इंडिया तक जा पहुंचा। चारों ओर सकारात्मकता की लहर दिखाई दे रही थी। 2015 में उम्मीदों का आसमान धुंधलाने लगा था। 2015 के अंत तक ऐसा लगने लगा था कि नरेन्द्र मोदी जनता से किए अपने वादे भूलने लगे। उनके राज में भी संप्रग सरकार की तरह ही जनता त्रस्त दिखाई दे रही थी। महंगाई, बेरोजगारी, ई-कॉमर्स ने छोटे-मोटे व्यापारियों के काम-धंधों में सेंध लगा दी थी, कालेधन पर केवल बयानबाजी हो रही थी और भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए अभी बहुत लंबा सफर तय करना था। 2016 की विदाई तक सरकार नोटबंदी के रूप में बड़ा फैसला ले चुकी थी। यह कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने हेतु उठाया गया हिंदुस्तान के इतिहास में सबसे बड़ा कदम था। निश्चित तौर पर इसने बड़ों-बड़ों को जमीन दिखा दी लेकिन साथ ही व्यापार जगत के लिए भी यह बेहद डरावने सपने की तरह रहा। सरकार ने अघोषित रूप से आधार कार्ड को सबके लिए अनिवार्य करने में सफलता प्राप्त की। सब्सिडी पर सरकार ने शिकंजा कसा लेकिन डिजिटल लेनदेन पर प्रोत्साहन के नाम पर लोगों को लुभाने का भी भरसक प्रयास किया। हालां‍कि महंगाई के मोर्चें पर सरकार को इस वर्ष भी जू्झना पड़ा।
* नोटबंदी : नोटबंदी को आजादी के बाद से भारत का सबसे बड़ा आर्थिक फैसला माना गया। हालांकि मोरारजी देसाई के राज में भी भारत ने नोटबंदी देखी थी लेकिन दस हजार के उस नोट के बंद होने का आम आदमी पर कोई खास असर नहीं पड़ा था। यह नोट तो कई लोगों ने देखा तक नहीं था। इसके उलट जब मोदी सरकार ने कालेधन पर अंकुश लगाने के लिए 1000 और 500 के नोट बंद कर दिए तो मानो सबकी सांसें ही थम गईं। आम आदमी पैसों-पैसों का मोहताज हो गया और कई दिनों तक बैंकों और एटीएम की कतार में खड़ा रहा। व्यापार-व्यवसाय पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा। देश में नकदी की कमी हो गई। एटीएम पर जिन लोगों को 2 हजार का नोट मिला वे तो परेशान हु्ए ही वे लोग भी खुश नहीं दिखाई दिए जिन्हें बैंकों ने चैक से पैसे निकालने पर दस-दस के नोट पकड़ा दिए गए। रोज कमाकर खाने वाले मजदूरों के सामने रोजगार का संकट भी दिखाई दिया। सरकार द्वारा लगातार की गई छापेमारी से अरबों रुपए बरामद किए गए। बैंककर्मी तो ठीक, आरबीआई के लोग भी गिरफ्तार किए गए। अर्थव्यवस्था पर इसका असर तो 2017 में पता चलेगा लेकिन फिलहाल तो सरकार की राह में फूल कम और कांटें ज्यादा नजर आ रहे हैं। 
 
* कैशलेस इंडिया : 2016 को मोदी सरकार के सबसे बड़े अभियानों में से एक कैशलेस इंडिया के लिए भी याद किया जाएगा। इस अभियान के माध्यम से मोदी ने देश को नकदी से मुक्ति दिलाने का सपना देखा। जब वे मोबाइल वॉलेट की बातें करते हैं तो ग्रामीण भारत उन्हें कौतूहलभरी नजरों से देखता है। उसे तो यह सब किसी परी कथा की तरह लगता है। वह न तो डेबिट-क्रेडिट कार्ड समझता है न उसे पेटीएम, जियो मनी जैसे मोबाइल भुगतान ऐप्स के बारे में जानकारी है। शहरों में भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो ऑनलाइन सुरक्षा तंत्र पर भरोसा नहीं रखते। ऐसे में 2017 में मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती लोगों को कैशलेस अर्थव्यवस्था के लिए जागृत करना है। मोदी सरकार ने ऑनलाइन लेनदेन को प्रोत्साहित करने के लिए 25 दिसंबर से 14 अप्रैल तक लकी ग्राहक योजना के माध्यम से इनामों की बारिश करने का भी ऐलान कर दिया है। हालांकि सरकार की राह बेहद कठिन है और इसमें लोगों को आर्थिक रूप से बड़े झटके लगने की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। अत: आने वाले साल में सरकार को ऑनलाइन धोखाधड़ी से मासूम लोगों को बचाने के लिए कई सख्त कदम भी उठाने होंगे।  
 
* जीएसटी : 2016 में जीएसटी की उड़ान को नए पंख लगे। संसद के दोनों सदनों में यह बिल पास हो गया। कई राज्य सरकारों ने भी इसे मंजूरी दे दी। हालांकि बिल को लेकर अभी भी कई सुर सुनाई दे रहे हैं। आदर्श रूप में जीएसटी 1 अप्रैल 2017 से शुरू होना चाहिए था, लेकिन कानून अप्रैल के बीच प्रभावी हो जाएगा। नोटबंदी के कारण इस सत्र में कोई काम नहीं हो सका। कई वस्तुओं पर टैक्स को लेकर अभी भी राज्य और केंद्र सरकार में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। हालांकि व्यापारियों में भी जीएसटी को लेकर घबराहट देखी जा रही है। जीएसटी काउंसिल को अभी कई निर्णय लेने हैं। 10 बड़े फैसले लिए जा चुके हैं। सितंबर 2017 को टैक्स की मौजूदा व्यवस्था बंद हो जाएगी। उम्मीद है कि 2017 में यह अर्थजगत की दशा और दिशा दोनों बदल देगा। 
  
* सोना-चांदी : 2016 में सोने-चांदी में भारी उतार-चढ़ाव देखा गया। इस साल सोने ने 25 हजार से 44600 तक की उड़ान भरी। हालांकि यह गिरकर फिर 27 हजार तक भी पहुंचा और कहा जा रहा है कि यह जल्द ही फिर 25 हजार तक पहुंच जाएगा। सोने के लिए दिसंबर उथल-पुथल वाला रहा है। 8 नवंबर को सोना 30570 था नोटबंदी की घोषणा होते ही 9 नवंबर को 44500 तक जा पहुंचा। यह दो साल में सोने की सबसे बड़ी बढ़त थी। इस दिन बाजार में 13930 रुपयों का उछाल देखा गया। हालांकि 15 नवंबर तक यह फिर 27863 आ गया। हालांकि बाजार में पूरे साल में उतनी हलचल नहीं दिखाई दी जितनी नवंबर में दिखी। नोटबंदी और नकदी की कमी के बावजूद देश का स्वर्ण आयात नवंबर में 23.24 प्रतिशत बढ़कर 15 महीने के उच्चतम स्तर 436.42 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया। फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर बढ़ाने के फैसले का भी इस पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है। इस घोषणा से पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका में लोग गोल्ड ईटीएफ से निकासी कर डॉलर में निवेश करने लगे हैं, जिससे पीली धातु पर दबाव बना है। 

* विकास की रफ्तार : नोटबंदी के बाद भारत की विकास की रफ्तार धीमी हो गई है। इससे आने वाले समय में न केवल निवेशकों के रूठने का खतरा बढ़ गया है बल्कि देश में निवेश का ऐलान कर चुकीं  कंपनियों के भी भारत से दूरी बनाने की आशंका बढ़ गई है। दुनिया की रेटिंग एजेंसियों, आर्थिक मामलों पर सलाह देने वाली एजेंसियों और अधिकांश अर्थशास्त्रियों में यह आम राय बनती जा रही है कि इससे कम से कम चालू साल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को बड़ा झटका लग सकता है। कुछ एजेंसियों ने तो इस बात के संकेत दिए हैं कि वर्ष 2016-17 में भारत की आर्थिक विकास दर की रफ्तार 6 फीसदी के करीब रह सकती है। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स, बैंक ऑफ अमेरिका, मेरिल लिंच और एशियाई विकास बैंक ने नोटबंदी और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को लेकर जो रिपोर्ट जारी की है, उसे किसी भी तरह से उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता। कुछ दिन पहले भारत की विकास दर के अनुमान को लेकर अधिकांश एजेंसियों की राय थी कि यह 7.5 फीसदी या इससे ऊपर रहेगी, लेकिन अब इस बारे में लोगों की राय बिलकुल उलट है। कहा जा रहा है कि नोटबंदी का असर भारत की पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। आर्थिक विकास दर के पटरी पर लौटने में वक्त लगेगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इसी माह जारी रिपोर्ट में आर्थिक विकास दर के अनुमान को घटा दिया है। आने वाले वर्ष में विकास की पगडंडी पर सरकार का सफर बेहद मुश्किल नजर आ रहा है। 
 
* आईपीओ का आकर्षण बढ़ा, कंपनियों की चांदी : आईपीओ के लिहाज से वर्ष 2016 शानदार रहा। दो दर्जन से अधिक कंपनियां इस साल 26,000 करोड़ रुपए से अधिक कोष जुटाने में कामयाब रहीं। पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष आईपीओ के जरिए जुटाया गया कोष दोगुना है। इतना ही नहीं, 2010 के बाद सार्वजनिक पेशकश के लिए यह बेहतर वर्ष रहा। अभी 12,500 करोड़ रुपए का आरंभिक सार्वजनिक निर्गम बाजार में आने की तैयारी में है। इस साल अब तक 26 कंपनियां सामूहिक रूप से अपने आईपीओ के जरिए 26,000 करोड़ रुपए से अधिक राशि जुटाने में सफल रही हैं। यह 2015 में 21 निर्गमकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से जुटाए गए 13,564 करोड़ रुपए का दोगुना से अधिक है। बाजार विश्लेषकों के अनुसार वर्ष 2016 के पहले नौ महीनों में प्राथमिक बाजार में मजबूत गतिविधियां देखने को मिलीं। शेयर बाजार में सितंबर से नरमी देखने को मिली और पिछले दो महीने से गतिविधियां धीमी पड़ गईं। उन्होंने आगाह करते हुए यह भी कहा कि नोटबंदी के कारण अनिश्चितता गहराने से अल्पकाल में नरमी देखने को मिल सकती है। हालांकि अगले वर्ष कहानी पूरी तरह बदली हुई दिखाई दे रही है। 
 
* म्यूचुअल फंड में बढ़ा निवेशकों का भरोसा : 2016 में म्यूचुअल फंड्स एक बार फिर निवेशकों का दिल जीतने में सफल रहे। इस वर्ष म्यूचुअल फंड उद्योग की परिसंपत्तियों में 28 प्रतिशत (लगभग चार लाख करोड़ रुपए) का इजाफा हुआ। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि नवंबर में म्यूचुअल फंड उद्योग के प्रबंधन के तहत परिसंपत्तियां 16.5 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गईं। साल के अंत तक इसके 17.3 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच जाने की उम्मीद है। उम्मीद की जा रही है कि नए निवेशकों के बूते इस क्षेत्र की वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगा।
 
* ब्रेक्जिट : ब्रेक्जिट 2016 में यूरोप की सबसे बड़ी घटना रही। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन का अलग होने का अर्थजगत पर बेहद नकारात्मक असर पड़ा। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के पक्ष में जनमत आने के बाद 24 जून को पौंड 31 साल के न्यूनतम स्तर तक गिर गया। इसके बाद ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री कैमरन को इस्तीफा ही नहीं देना पड़ा बल्कि मुद्रा, इक्विटी तथा तेल बाजारों में भी अफरा-तफरी का माहौल रहा जिससे वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता की लहर दौड़ गई। पौंड स्टर्लिंग एक समय 10 प्रतिशत टूटकर 1.3229 डॉलर पर आ गया, जो 1985 से अब तक का न्यूनतम स्तर था। कारोबारियों के सुरक्षित निवेश की ओर रुख करने से डॉलर पिछले ढाई साल में पहली बार येन के मुकाबले 100 येन के स्तर से नीचे आ गया। अर्थशास्त्रियों ने वैश्वीकरण के दौर में इसे एक कदम पीछे जाना बताया। मौजूदा करेंसी रेट के हिसाब से भारत की जीडीपी 2.25 लाख करोड़ डॉलर यानी करीब 153 लाख करोड़ रुपए है, वहीं वर्तमान में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का आकार 2.31 लाख करोड़ डॉलर यानी 156 लाख करोड़ रुपए है। इस तरह विकास की दौड़ में ब्रिटेन भारत से पिछड़ता नजर आ रहा है। 

* टाटा-मिस्त्री विवाद : भारत के सबसे बड़े औद्योगिक घराने में से एक टाटा संस में उठा वर्चस्व का विवाद 2016 के अंतिम क्वार्टर में सुर्खियों में रहा। एक तरफ रतन टाटा ने साइरस मिस्त्री को पद से हटाते हुए उन्हें अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया और देखते ही देखते टाटा स्टील, टाटा इंडस्ट्रीज, टीसीएस जैसी कंपनियों से मिस्त्री विदा हो गए। दूसरी ओर साइरस मिस्त्री ने भी सुनियोजित तरह से पलटवार करते हुए रतन टाटा की साख को बट्टा लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा नुकसान तो टाटा संस का ही हुआ। अब आने वाले साल में टाटा को नया प्रमुख चुनने के साथ ही साख पर भी विशेष काम करना होगा। टाटा को नए मुकाम पर पहुंचाने वाले रतन टाटा का मिस्त्री से हुआ यह विवाद औद्योगिक जगत को भी कई सालों तक याद रहेगा।  
 
* शेयर बाजार : भारतीय शेयर बाजारों के लिए यह साल सकारात्मक रहा। सेंसेक्स और निफ्टी दोनों के लिए 2016 अच्छा रहा। खासकर 20 मई के बाद तो बाजार तेजी से बढ़ा और सितंबर में सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही टॉप पर दिखाई दिए। इस समय सेंसेक्स 29 हजार के पार पहुंच गया तो निफ्टी भी 8950 के पार था। इस साल फरवरी में बाजार में बड़ी गिरावट देखी गई और सेंसेक्स 23 हजारी हो गया। सेंसेक्स के साथ ही निफ्टी में भारी गिरावट दिखाई दी और यह सात हजार से नीचे जा पहुंचा। पिछले साल दिसंबर में निफ्टी आठ हजार के करीब था और सेंसेक्स 26117 पर था। इस तरह देखा जाए तो बाजार ने इस वर्ष बेसिक्स मजबूत करते हुए तेजी से तरक्की की । हालांकि नोटबंदी के बाद इसकी रफ्तार कमजोर पड़ती दिखाई दी और मध्य दिसंबर तक सेंसेक्स 26490 और निफ्टी  8139 पर पहुंच गया। 
 
जिस तरह से 2016 विदाई ले रहा है तो हर व्यक्ति चाहता है कि जल्द से जल्द यह समय भी कट जाए और 2017 में सूर्य की पहली किरण के साथ सकारात्मक ऊर्जा देश में आए। सब चाहते हैं कि मोदी द्वारा भ्रष्टाचार, कालेधन के खिलाफ किए जा रहे इस अश्वमेध यज्ञ में उन्हें सफलता मिले और देश के विकास का कोई नया रास्ता निकले। यह भी कामना है कि सरकार का मिशन जीएसटी भी पूरी तरह सफल हो ताकि देश को कर चोरी से भी मुक्ति मिल सके।