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Written By विट्‍ठल नागर
Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (19:26 IST)

बैंकों को अधिक परेशानी नहीं

सीआरआर में वृद्धि

बैंकों को अधिक परेशानी नहीं -
- विट्ठल नागर

भारतीय रिजर्व बैंक ने 17 अप्रैल को ही बैंकों की सीआरआर दर में आधे प्रतिशत की वृद्धि का जो निर्णय लिया है उसके तीन मतलब हैं- (1) अब 29 अप्रैल को देश की मौद्रिक व ऋण नीति की जो वार्षिक समीक्षा वह जारी करेगी उसमें ब्याज दर की वृद्धि संभवतया नहीं की जाएगी, (2) 18 अप्रैल को समाप्त सप्ताह में मुद्रास्फीति की दर 7.41 प्रतिशत से घटकर 7.14 प्रतिशत रही है।

मुद्रास्फीति सप्ताह में जरूर घटी है, किंतु रिजर्व बैंक फिलहाल यह मानकर चल रहा है कि यह गिरावट अस्थायी है एवं वह फिलहाल कोई जोखिम नहीं लेना चाहता एवं (3) भारतीय रिजर्व बैंक की सोच है कि देश की आर्थिक वृद्धि दर (जीडीपी) बहुत ही धीमे-धीमे घट रही है इसलिए बैंक ब्याज दर बढ़ाने की बजाय देश में मुद्रा की प्रवाहिता को अधिक सख्ती से घटाया जाए।

वैसे रिजर्व बैंक के गवर्नर ने न्यूयॉर्क में पत्रकारों के प्रश्न के उत्तर में यह स्पष्ट कर दिया था कि रिजर्व बैंक के पास प्रणाली में प्रवाहिता को घटाने के कई तंत्र हैं, किंतु उन्होंने उन तंत्रों में सीआरआर का उल्लेख नहीं किया था। उससे विश्लेषकों को यह लगने लगा था कि गवर्नर वायवी रेड्डी ब्याज दर में वृद्धि जैसा सख्त कदम नहीं उठाएँगे एवं सीआरआर के साथ रेपो (रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को दी जाने वाली उधार) एवं रिवर्स रेपो (रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों से ली जाने वाली उधार) की ब्याज दर बढ़ाई जाकर व्यावसायिक बैंकों की लागत में कुछ बढ़ाएगी।

अब सीआरआर की दर बढ़ गई है इसलिए संभव है 29 अप्रैल को रेपो व रिवर्स रेपो की दर कुछ बढ़ जाए। रेपो की दर अभी 7.75 प्रतिशत है एवं रिवर्स रेपो की 6 प्रतिशत। बैंक ब्याज दर छः प्रतिशत एवं सीआरआर (केश रिजर्व रेशो) 7.75 प्रतिशत है, जो दो चरणों में 10 मई तक बढ़कर 8.25 प्रतिशत हो जाएगी।

सीआरआर दर बढ़ने से बैंकों की प्रवाहिता में 18,500 करोड़ रु. की कमी आएगी, क्योंकि उन्हें अब यह राशि भारतीय रिजर्व बैंक में जमा रखनी पड़ेगी। इससे उनकी कर्ज देने की क्षमता में 18,500 करोड़ रु. की कमी आ जाएगी। सीआरआर के तहत व्यावसायिक बैंकों को अपनी जमा रकमों का हिस्सा दर के अनुरूप रिजर्व बैंक में जमा रखना अनिवार्य है, किंतु सीआरआर बढ़ने से बैंकों को अधिक परेशानी नहीं होगी, क्योंकि उनकी प्रवाहिता अभी भी काफी बढ़ी-चढ़ी है एवं प्रतिदिन उन्हें अपनी आधिक्य की प्रवाहिता 6 प्रतिशत ब्याज पर, रात्रिपर्यंत के लिए रिजर्व बैंक में जमा करानी पड़ती है।

इन दिनों बैंकें प्रतिदिन 13000 से 15000 करोड़ रु. रिजर्व बैंक में रिवर्स रेपो के तहत रिजर्व बैंक को रात्रिपर्यंत के लिए उधार दे रही हैं। जब तक देश के विदेशी मुद्रा विनियम बाजार में डॉलर की आवक बनी रहेगी तब तक रुपए की विनिमय दर (डॉलर के मुकाबले में) को अधिक मजबूत न बनने देने के लिए बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से डॉलर खरीदने पड़ेंगे एवं प्रणाली में रुपए की प्रवाहिता बढ़ती रहेगी।

औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक एवं मुद्रास्फीति के आँकड़े जारी हो जाने के बाद देश की आर्थिक स्थिति के संबंध में कई बातें स्पष्ट हो गईं, जैसे (अ) औद्योगिक उत्पादन बढ़ रहा है, (ब) उद्योग अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि ला रहे हैं, (स) विकास के बुनियादी ढाँचों के (जैसे नए विद्युत संयंत्र, रियल एस्टेट, बंदरगाह, हवाई अड्डे, सड़कों आदि) निर्माण हेतु कोष की कमी आड़े नहीं आ रही है- बावजूद ऊँची ब्याज दर के अर्थात पूँजी निवेश बढ़ रहा है एवं उपभोक्ता माँग व पूँजीगत माल का उत्पादन बढ़ रहा है। यह वृद्धि मुद्रास्फीति को बढ़ा रही है।

रिजर्व बैंक को यह भी मालूम है कि बढ़ती मुद्रास्फीति व महँगाई उपभोक्ताओं की जीवन-यापन की लागत को बढ़ा रही है। ऐसे में अगर ब्याज दर बढ़ाई जाती तो उससे आम उपभोक्ताओं को अधिक चोट पहुँचती। फिर रिजर्व बैंक ने यह भी स्पष्ट रूप से जान लिया है कि ब्याज दर बढ़ने से देश में न तो निवेश अधिक घट रहा है और न जीडीपी की दर अधिक धीमी पड़ रही है।

अभी इस्पात, सीमेंट व कोयले आदि के भाव में जो आग लग रही है एवं आम जरूरत की वस्तुओं के भाव जिस तरह आसमान पर पहुँच रहे हैं उन्हें देखकर यह भय हो सकता है कि देश की अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति जनित मंदी (स्टेग फ्लेशन) से गुजर रही है, किंतु यह भय बेमायने है, क्योंकि महँगाई बढ़ने के बावजूद जीडीपी की वृद्धि दर ठप नहीं पड़ी है और न एकदम मंद पड़ी है।

इसलिए रिजर्व बैंक के लिए जरूरी हो गया है कि जीडीपी की वृद्धि को कुछ और धीमी करने के लिए बढ़ती प्रवाहिता को नियंत्रित करे। इसी आधार पर यह मानकर चला जा सकता है कि अब वह तरलता जब्ज करने के लिए अधिक एमएसएस बॉण्ड व प्रतिभूतियाँ बाजार में जारी करके तरलता घटाएगी।

सीआरआर बढ़ाकर रिजर्व बैंक ने एक मायने में चीन की नीति का अनुसरण किया है। भारत व चीन की समस्याएँ एक समान हैं। वहाँ भी गरीबी है एवं आम जनता महँगाई से त्रस्त है, क्योंकि मुद्रास्फीति की दर आठ प्रतिशत से ऊपर पहुँच गई है, किंतु जीडीपी में वृद्धि दर 10 प्रतिशत से अधिक है। इसीलिए पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना द्वारा सतत रूप से सीआरआर दर बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2004 के मध्य से लेकर 16 अप्रैल 2008 तक वह 17 बार सीआरआर की दर बढ़ा चुका है एवं अब सीआरआर की दर 16 प्रतिशत तक बढ़ गई जो कि भारत की तुलना में करीब दुगुनी है।

सीआरआर की दर बढ़ने से जहाँ व्यावसायिक बैंकों की कर्ज देने की क्षमता घटती है, वहीं उनके कामकाज की लागत भी बढ़ती है। विश्लेषकों के अनुसार भारत में सीआरआर की दर में आधा प्रतिशत की वृद्धि से व्यावसायिक बैंकों के निवल अर्जन में दो प्रतिशत की कमी आ सकती है। इन दिनों बैंकें जिस तरह से शुल्कों से आय बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं, उसे देखकर यह लगता है कि बैंकें गृह कर्ज या वाहन कर्ज पर ब्याज दर नहीं बढ़ाएँगी एवं अपनी लागत को घटाने के लिए जमा रकमों पर ब्याज दर घटा सकती हैं।

इसी वजह से, कुछ समय के लिए बैंकों व ऑटो के शेयरों में कुछ बेचान बढ़ सकता है, किंतु बाद में भाव सामान्य स्तर पर आ सकते हैं। बैंकों का सोच है कि अगर प्रणाली में डॉलर की वजह से प्रवाहिता बढ़ती रही तो उनकी परेशानी कुछ कम होगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रवाहिता प्रबंधन योजना के तहत मार्च के द्वितीय पखवाड़े में 27 हजार करोड़ रु. से अधिक की तरलता रेपो के तहत प्रवाहित की थी जबकि अप्रैल माह के प्रथम पखवाड़े में रुपए की प्रवाहिता इतनी बढ़ गई थी कि उसे 40 हजार करोड़ की प्रवाहिता रिवर्स रेपो के तहत जब्ज करानी पड़ी।

वैसे बैंकों के कर्ज आवंटन एवं जमा रकमों की वृद्धि दर दोनों घटी हैं। ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक अगर रिवर्स रेपो की ब्याज दर (जो अभी छः प्रतिशत है) में कुछ वृद्धि करती है, रेपो दर (जो अभी 7.75 प्रतिशत है) कुछ घटाती है तो उससे बैंकों को अपनी मार्जिन सुधारने में मदद मिल सकती है।