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Written By राम यादव
Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (19:32 IST)

सुपर कंप्यूटरों की दौड़ में जापान सबसे आगे

सुपर कंप्यूटरों की दौड़ में जापान सबसे आगे -
सुपर कंप्यूटर कहते हैं अपने समय के सबसे तेज कंप्यूटरों को। कल तक जिसे सुपर कंप्यूटर कहा जाता था, हो सकता है, आज वह 'केवल' कंप्यूटर कहलाने लायक ही रह गया हो। दैनिक इस्तेमाल के आज के हमारे सामान्य कंप्यूटर भी 40-50 साल पहले के सुपर कंप्यूटरों से कहीं तेज हैं। यह एक ऐसी निरंतर दौड़ है, जिसमें ठीक इस समय जापान संसार में सबसे आगे निकल गया है।

'सुपर कंप्यूटर' शब्द का अमेरिका में 1929 में जब पहली बार प्रयोग हुआ था, तब बाइनरी डिजिटल तकनीक वाले आज के कंप्यूटरों का जन्म भी नहीं हुआ था। उस समय यह शब्द गणनायंत्र बनाने वाली अमेरिकी कंपनी IBM के एक ऐसे भारी-भरकम और जटिल गणनायंत्र की प्रशंसा में गढ़ा गया था, जिसे अपने समय की सबसे तेज गणना मशीन माना जा रहा था।

आजकल के सुपर कंप्यूटर इस्पात की दर्जनों ऊंची-ऊंची अलमारियों- जैसे लगने वाले उच्चकोटि के कंप्यूटरों का एक ऐसा सुसंबद्ध समूह होते हैं, जिनके ढेर सारे डेटा-प्रॉसेसर एक साथ काम करते हैं। वे प्रति सेकंड अरबों नहीं, खरबों गणनाएं करते हैं और इतनी आवाज एवं गर्मी पैदा करते हैं, मानो किसी कारखाने में जोर-शोर से काम चल रहा हो।

चीन और अमेरिका को पछाड़ा
जापान के कोबे शहर के कंप्यूटर विज्ञान संस्थान ACS में काम कर रहे ऐसे ही एक कंप्यूटर तंत्र को-- जो प्रति सेकंड 8.1पेटाफ्लॉप्स (1 पेटा=1000 खरब, यानी 1 के बाद 15 शून्य वाली संख्या) के बराबर गणनाएं कर सकता है-- जर्मनी के हैम्बर्ग नगर में हुए एक सम्मेलन में गत 20 जून को संसार का सबसे तेज सुपर कंप्यूटर घोषित किया गया।

सम्मेलन में संसार भर से आए दो हजार से अधिक कंप्यूटर विशेषज्ञों ने भाग लिया। हैम्बर्ग में पेश की गई सुपर कंप्यूटरों की नई अनुक्रम सूची के अनुसार चीन में त्यान्चिन शहर का सुपर कंप्यूटर अब दूसरे नंबर पर और ओक रिज में अमेरिकी ऊर्जा विभाग का सुपर कंप्यूटर तीसरे नंबर पर पहुंच गया है।

8.162 खरब है प्रति सेकंड गणना-क्षमता
संक्षेप में केवल 'के-कंप्यूटर' (K- Computer) कहलाने वाले जापानी सुपर कंप्यूटर को जापान की ही फूजीत्सू कंपनी ने बनाया है। 'के' जापानी भाषा के 'केई' (Kei) शब्द का प्रथमाक्षर संक्षेप है। 'केई' जापानी भाषा में 1 के बाद 16 शून्यों वाली वह संख्या है, जिसे अंतरराष्ट्रीय प्रचलन में 10 पेटा या 10 क्वॉड्रिलियन कहा जाता है और जो भारतीय गणनाविध के अनुसार 10 000 खरब (दस पद्म) के बराबर है।

जापानियों ने अपने सुपर कंप्यूटर को 'केई' नाम इसलिए दिया है, क्योंकि वे उसकी गणना क्षमता को बढ़ाते हुए यथासंभव 2012 तक प्रति सेकंड10 पेटा, यानी 10 हज़ार खरब का लक्ष्य पा लेना चाहते हैं। इस समय यह क्षमता 8.162 खरब है, यानी अंतिम लक्ष्य से बहुत दूर नहीं है।

संसार के 500 सर्वश्रेष्ठ (टॉप- 500) सुपर कंप्यूटरों का चुनाव हर छह महीनों पर होता है। 'होड़ काफ़ी नाटकीय थी', इस बार की सूची बनाने वाले विशेषज्ञों में से एक जर्मनी के प्रो. हांस मोयर का कहना था। 'सबसे सनसनी की बात यही थी कि जापान एक बार फिर नंबर एक पर पहुंच गया है। यह शायद ही किसी ने सोचा था। सभी यही मान कर चल रहे थे कि असली दौड़ अमेरिका और चीन के बीच होगी। लेकिन, जापानियों ने दिखा दिया कि वे फिर इस दौड़ में लौट आए हैं।'

पिछली बार बाजी चीन ने मारी
पिछली बार यह दौड़ सचमुच चीन और अमेरिका के ही बीच थी। बाजी चीन ने मारी थी। चीन के त्यान्चिन में स्थित 'राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटर केंद्र' के Tianhe 1-A नाम के कंप्यूटर को संसार का सबसे तेज सुपर कंप्यूटर घोषित किया किया गया था। 14336 Intel 6-Core-Xenon प्रॉसेसरों वाले इस चीनी सुपर कंप्यूटर की गणना- क्षमता 2.2 पेटाफ्लॉप्स प्रति सेकंड है।

अमेरिका में नॉक्सविल, टेनेसी में स्थित 'ओक रिज नैशनल लैबॉरैटरी' का 'Gray XT5' दूसरे नंबर पर रहा। 37 538 AMD Hexa-Core प्रॉसेसरों वाले इस सुपर कंप्यूटर की गणना क्षमता 1.7 पेटाफ्लॉप्स प्रति सेकंड है। इस तरह अपने सबसे निकट प्रतिद्वंद्वी कंप्यूटरों की तुलना में जापानी नंबर एक करीब चार गुना आगे है।

चीन में ही शेंछेन के 'राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटर केंद्र' का 'डॉनिंग नेब्यूले' पिछली बार तीसरे नंबर पर, अमेरिका में 'लास अलोमोस नैशनल लैबॉरैटरी' का ' IBM रोडरनर' चौथे नंबर पर तथा जर्मनी का JUGENE पाँचवें नंबर पर रहा था। नयी क्रमसूची में पिछली बार के चार सर्वश्रेष्ठ अब एक-एक पायदान नीचे उतर गए हैं, जबकि जर्मनी के सबसे तेज सुपर कंप्यूटर सहित उसके बाद वाले सभी कंप्यूटर 'टॉप टेन' से बाहर हो गए हैं।

'टॉप टेन' की सूची में हैं सभी पेटाफ्लॉप्स कंप्यूटर
इस बार 'टॉप टेन' की सूची में जिन सुपर कंप्यूटरों को जगह मिली है, वे सभी पेटाफ्लॉप्स क्षमता वाले वर्ग के कंप्यूटर हैं। ऐसा पहली बार हुआ है। इन 10 सर्वश्रेष्ठ में पांच अमेरिकी सुपर कंप्यूटर हैं, दो-दो जापान और चीन के हैं और एक फ्रांस का है। 'के-कंप्यूटर' नाम के जिस जापानी सुपर कंप्यूटर ने सब को पछाड़ा है, उसमें इस समय कुल 68 544 SPARC64 प्रॉसेसर लगे हुए हैं।

हर प्रॉसेसर 8 'कोर' (Core) वाला प्रॉसेसर है, यानी कुल मिलाकर 5 48 352 कोर हैं। उसकी क्षमता बढ़ाने का काम अगले वर्ष जब पूरा हो जाएगा, तब वह 10 पेटाप्लॉप्स (दस पद्म) की सीमारेखा पार करने वाला संसार का पहला सुपर कंप्यूटर बन जाएगा। कहने की आवश्यकता नहीं कि तब सुपर कंप्यूटर बनाने वालों के बीच की यह दौड़ और भी तेजगति वाली सड़क पर पहुंच जाएगी।

आईबीएम को पिछड़ जाने की चिंता
हैम्बर्ग में जमा हुए कंप्यूटर विशेषज्ञ दौड़ की इस गति से काफ़ी आश्चर्यचकित लगे। दौड़ में पिछड़ जाने की सबसे अधिक चिंता अमेरिकी कंप्यूटर निर्माता कंपनी IBM को सता रही थी। वह 10 पेटाफ्लॉप्स से अधिक क्षमता वाले दो सुपर कंप्यूटर बनाने में जुटी है, लेकिन फिलहाल इतना पीछे है कि 500 सबसे तेज सुपर कंप्यूटरों की सूचि में दोनों का नाम तक नहीं है।

IBM के सुपर कंप्यूटर विभाग के जर्मनवंशी मैनेजर क्लाउस गोटशाल्क का कहना था कि उन की कंपनी अमेरिकी सरकार के सहयोग से 'दो ऐसी परियोजनाओं पर काम कर रही है, जो 10 पेटाफ्लॉप्स की सीमा के निकट पहुंचते हुए उसे पार करेंगी। एक का नाम है 'ब्ल्यू वॉटर्स', उस पर ठीक इस समय काम चल रहा है, और दूसरी है, अगली पीढ़ी वाली कंप्यूटर परियोजना 'ब्ल्यू जीन', जिसे बाद में 'सेक्विया' (Sequoia) नाम दिया जाएगा और जो 10 पेटाफ्लॉप्स वाली सीमा को पार कर जाएगी।'

परीक्षा कसौटी की आलोचना
कोई सुपर कंप्यूटर कितना तेज है, इसे जांचने के लिए जो कसौटी अपनाई जाती है, उसे 'लाइनपैक ' (Linpack) कहा जाता है। इस कसौटी की हैम्बर्ग में काफी आलोचना भी सुनने में आई। कहा गया कि वह केवल एकघातीय समीकरणों (लीनियर इक्वेशन सिस्टम्स) को हल करने की गति को देखती है, न कि सुपर कंप्यूटरों के वास्तविक उपयोग वाले उद्देश्यों और उनके अनुकरणों (सिम्युलेशन) कार्यों को परखती है।

यह कसौटी कंप्यूटर में 'डेटा इनपुट' और 'आउटपुट' की गति,उनकी विविधता और कंप्यूटर की संग्रह-क्षमता को भी नहीं नापती-तौलती। इन कमियों को दूर करने के लिए सुझाव दिया गया कि 'लाइनपैक' मानदंडों का विस्तार किया जाए। उनमें ऐसी परीक्षाओं को भी शामिल किया जाए, जिनका उन कामों से सीधा संबंध हो, जो इन कंप्यूटरों को करने होते हैं।

नंबर एक को खरा उतरने में 28 घंटे लगे
सबसे तेज सुपर कंप्यूटरों का चयन करने वाली समिति के सदस्य, जर्मनी के प्रो. हांस मोयर इस आलोचना से सहमत नहीं हैं। कहते हैं, '1993 में हमारे मानहाइम विश्वविद्यालय में टॉप-500 सुपर कंप्यूटर चयन परियोजना शुरू होने के बाद से ही 'लाइनपैक' की आलोचना भी शुरू हो गई थी। सच्चाई यह है कि हमारे सभी काम एकघातीय समीकरणों के हल पर ही आधारित हो सकते हैं। इस जापानी 'के-कंप्यूटर' को ही ले लें। उसने दस लाख से भी कहीं अधिक एकघातीय समीकरणों और उन से जुड़े अज्ञात परिणामों वाले एक जटिल तंत्र को हल कर दिखाया। इस में उसे 28 घंटे लगे।'

टॉप-500 सुपर कंप्यूटर चयनकर्ताओं ने हैम्बर्ग सम्मेलन में कहा कि सुपर कंप्यूटरों की गणना क्षमता को परखने में लगने वाला समय क्योंकि अब बहुत लंबा होता गया है, इसलिए वे 'लाइनपैक' में निर्धारित कसौटियों को घटाने की, न कि उन्हें व्यावहारिक उपयोग से जुड़े मानदंडों के द्वारा और बढ़ाने की सोच रहे हैं।

गिनती के लिए पड़ेगा नामों का अकाल
इससे 'लाइनपैक' के बहुत- से आलोचक जहाँ दंग रह गए, वहीं उसके समर्थकों ने इसका स्वागत किया। ऐसे ही एक जर्मन कंप्यूटर विशेषज्ञ का कहना था कि 'लाइनपैक' के आधार पर अब तक की भविष्यवाणियां सही सिद्ध होती रही हैं। हम अब पेटाफ़्लॉप्स क्षमता की ड्योढ़ी पर पहुंच गए हैं। तब भी, आज स्थिति यह है कि सबसे चोटी के सुपर कंप्यूटर मुश्किल से छह महीने तक, या बहुत हुआ तो साल-दो साल तक ही, अपनी जगह बनाए रख पाते हैं। यानि, हम बड़ी तेजी से 'एक्ज़ास्केल कंप्यूटिंग', अर्थात गिनती की सीमा से बाहर जा रही गणना-क्षमता की ओर बढ़ रहे हैं।

दूसरे शब्दों में, वह दिन बहुत दूर नहीं होना चाहिए, जब सुपर कंप्यूटर वे कंप्यूटर कहलाएंगे, जो एक सेकंड में कई-कई अरब-खरब या नील-पद्म नहीं, शंख-महाशंख से भी आगे जाने वाली संख्याओं में गणनाएं कर रहे होंगे। इनसे भी बड़ी संख्याओं के लिए हमारे पास कोई नाम ही नहीं हैं।

कब चाहिए सुपर कंप्यूटर
वैज्ञानिकों को ऐसे तेज कंप्यूटरों की जरूरत प्रायःतब पड़ती है, जब उन्हें एक साथ बहुत सारे तथ्यों का ध्यान रखते हुए किसी निष्कर्ष पर पहुंचना होता है। उदाहरण के लिए, जब मौसम से संबंधी भविष्यवाणियों, परमाणु के मूलकणों वाले प्रयोगों, किसी नई सामग्री के निर्माण से जुड़ी विशेषताओं या किसी नयी दवा के प्रभावों के बारे में दर्जनों प्रकार के तथ्यों और आंकड़ों को तौलना- परखना और उन के बीच तालमेल बैठना होता है, तब किसी सुपर कंप्यूटर की जरूरत पड़ती है।

जीव, रसायन और भौतिक शास्त्र की विभिन्न शाखाओं में शोध और विश्लेषण के अतिरिक्त अंतरिक्ष यात्रा, मौसम विज्ञान, जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणियों और सेनाओं के लिए नए प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों के विकास में इसकी नौबत आती है। अमेरिका और चीन के बीच की सुपर कंप्यूटर होड़ साथ ही सैन्य-श्रेष्ठता की दौड़ भी है। सुपर कंप्यूटरों की सहायता से, परमाणु परीक्षण किए बिना भी, एक-से-एक नए परमाणु अस्त्र विकसित किए जा सकते हैं।

करोड़ों डॉलर की लागत बैठती है
आजकल के टॉप-10 वर्ग के सुपर कंपूटर बनाने पर करोड़ों डॉलर की लागत बैठती है। इस समय 10 पेटाफ्लॉप्स क्षमता वाले जो सुपर कंप्यूटर निर्माणाधीन हैं, अनुमान है कि उनमें से हर एक पर करीब एक अरब डॉलर का खर्च आएगा। इस समय के संसार के 500 सबसे तेज सुपर कंप्यूटरों में से 256 अकेले अमेरिका में कार्यरत हैं।

यूरोपीय देशों में 125 और एशिया में 103 ऐसे कंप्यूटर हैं। एशिया में चीन 62 ऐसे कंप्यूटरों के साथ सबसे आगे है, जबकि 26 कंप्यूटरों के साथ जापान दूसरे नंबर पर है। अपने 30 सुपर कंप्यूटरों के साथ जर्मनी यूरोप में नंबर एक है। उसके बाद नंबर आता है ब्रिटेन (27) और फ्रांस (25) का।

बेहद बिजली खाते व गर्मी पैदा करते हैं
सुपर कंप्यूटर कोई एक कंप्यूटर नहीं, बल्कि आपस में संयोजित कई उच्चकोटि के कंप्यूटरों का समुच्चय होते हैं, इसलिए वे बेहद बिजली खाते हैं और साथ ही शोर व गर्मी पैदा करते हैं। वर्तमान टॉप-500 सुपर कंप्यूटरों वाली सूची के 29 कंप्यूटरों को औसतन एक मेगावाट से अधिक बिजली चाहिए। जापान के नंबर एक 'के-कंप्यूटर' को तो लगभग 10 मेगावाट बिजली चाहिए।

सुपर कंप्यूटर इतनी गर्मी पैदा करते हैं कि उन्हें किसी ऐसे बंद हॉल में रखना पड़ता है, जहां उन्हें चौबीसों घंटे ठंडा रखने की अचूक व्यवस्था हो। इसके बिना उनका कोई-न-कोई अवयव काम करना बंद कर देगा। इस प्रशीतन के लिए बहुत भरोसेमंद और जटिल विधियों की जरूरत पड़ती है। गरम हवा बाहर की तरफ खींचने वाले शक्तिशाली पंखों के अतिरिक्त पाइपों में परिसंचरित हो रही किसी तरल गैस का भी उपयोग करना पड़ता है। हॉल में शोर का एक बड़ा हिस्सा प्रशीतन प्रणाली की देन होता है।

सुपर कंप्यूटर कई बार एक साथ कई प्रकार के कई कामों को निपटा रहा हो सकता है। उस के उपयोक्ता उस के पास नहीं, कहीं दूर अपने कार्यालय या कार्यस्थान के सामान्य कंप्यूटर के सामने बैठे होते हैं। विश्वविद्यालयों के सुपर कंप्यूटर उनके शोध-छात्र घर बैठे इस्तेमाल करते हैं।

जर्मनी का सुपर कंप्यूटर सबके लिए उपलब्ध
जर्मनी में युलिश का सुपर कंप्यूटर JUGENE, जो रैक कहलाने वाली इस्पात की बनी 72 बडी बडी अलमारियों को मिला कर बना है, संसार भर के शोधकों के लिए उपलब्ध है। कौन, कब उसे कितने समय तक अपने शोधकार्य के लिए इस्तेमाल कर सकता है, इस बारे में बताते हुए युलिश सुपर कंप्यूटर सेंटर के प्रमुख डॉ. टोमास लिपर्ट का कहना हैः 'साल में दो बार आवेदन भेजे जा सकते हैं।
एक सत्र पहली नवंबर को शुरू होता है और दूसरा पहली मई को। आवेदन इससे दो महीने पहले आ जाना चाहिए। आवेदन में लिखना होता है कि शोधक किस विज्ञान से है, उसने अब तक क्या किया है और गणना समय का उपयोग वह किस काम के लिए करेगा?

इस विशुद्ध वैज्ञानिक पक्ष के अलावा उसे प्रमाणित करना होगा कि उसके अपने कंप्यूटर पर ऐसा सही प्रोग्राम है, जो पैरलल कंप्यूटर (समानांतर संयोजन वाले सुपर कंप्यूटर) के साथ मेल खाता है।'

गुणवत्ता के क्रम में समय का आवंटन
युलिश सुपर कंप्यूटर सेंटर का एक विशेषज्ञ मंडल आवेदन आने की अंतिम तारीखों के बाद अगले दो महीनों में सभी आवेदनों की वैज्ञानिक गुणवत्ता और महत्ता का आकलन करेगा। हर विषय का एक अलग पारखी आवेदनों को उनकी गुणवत्ता के अनुरूप क्रमबद्ध करेगा और तब सुपर कंप्यूटर पर गणना करने के लिए उपलब्ध समय को इसी अनुक्रम में आवंटित किया जाएगा। जिसके प्रॉजेक्ट को जितना अच्छा आंका गया होगा, उसे उतना ही पहले समय दिया जाएगा।

घर बैठे इस्तेमाल करें जर्मन सुपर कंप्यूटर
इसके बाद आवेदक को सूचित किया जाएगा कि वह अपनी संभावनाओं के अनुसार साल भर में अपना काम पूरा कर सकता है। डॉ. लिपर्ट के अनुसार, 'शोधक जर्मनी नहीं आता। उसका कंप्यूटर कहां है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह अपने घर बैठे इंटरनेट के द्वारा यहां लॉग ऑन कर सकता है और अपना काम अपने विश्वद्यालय के कंप्यूटर के बदले हमारे किसी सुपर कंप्यूटर पर कर सकता है।'

शोधक के लिए सबसे कठिन और जरूरी काम है अपनी डेटा सामग्री को अपनी समस्या के अनुरूप ऐसे क्रमबद्ध चरणों में (अल्गोरिद्म में) विभाजित करना कि समानांतर संयोजित कंप्यूटर प्रणाली उसे संभाल सके। शोधक को कोई फीस भी नहीं देनी पड़ती। इतना जरूर है कि जर्मन करदाता का पैसा लगा होने से जर्मन शोधकों की परियोजनाओं को वरीयता दी जाती है।