सूप से साँपों पर आई आफत
पटना से राघवेन्द्र नारायण मिश्र साथ में पूर्णिया से मिथिलेश कुमार सिंह
एक मिथक ने साँपों पर मुसीबत ला दी है। साँप के सूप से कामशक्ति में वृद्धि की अवधारणा ने साँपों पर बड़ा संकट खड़ा किया है। इस विश्वास ने साँपों की तस्करी को पिछले कुछ समय में खूब बढ़ावा दिया है। बिहार के सीमांचल से बड़ी संख्या में विषैले सरीसृप तस्करी द्वारा नेपाल भेजे जा रहे हैं। ऊपर से सर्प विष से दवाओं के निर्माण और खाल से कीमती जैकेट और जूते बनाए जाने के चलन ने विदेशों में विषैले साँपों की कीमत खूब बढ़ाई है। ऐसे में जंगलों से साँप पकड़ने में सपेरों की मदद ली जा रही है और फिर तस्करों का गिरोह साँपों को सीमा पार भेज रहा है। बड़े पैमाने पर हो रही इस तस्करी से साँपों की कई प्रजातियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। पर्यावरण संतुलन के मद्देनजर जंगलों में साँपों की मौजूदगी जरूरी है लिहाजा पर्यावरणविदों की भी चिंताएं बढ़ी हैं।
नेपाल और बांग्लादेश की सीमा से सटे पूर्वोतर बिहार के सीमांचल क्षेत्र में साँपों के तस्करों ने जाड़े में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। चूंकि इस मौसम में साँप बिलों से बाहर कम निकलते हैं इसलिए उन्हें पकड़ने में संपेरों की मदद ली जा रही है। धान कटने के बाद खेतों और खलिहानों में भी साँपों को पकड़ना आसान हो गया है। चूहे के बिलों, वृक्षों के कोटर में छिपे साँपों को सपेरों व स्थानीय लोगों की मदद से निकालकर तस्कर नेपाल व बांग्लादेश के रास्ते इन्हें चीन और अन्य देशों में भेज रहे हैं जहां उन्हें इसकी मुंहमांगी कीमत मिल रही है। साँप जितना जहरीला होता है, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसकी कीमत उतनी अधिक होती है। राज्य के तस्करों को अंतर्राष्ट्रीय तस्कर प्रति साँप 25 से 30 हजार रुपए तक भुगतान कर रहे हैं क्योंकि विषैले साँपों की कीमत विदेशों में लाखों में है। इस तस्करी का ही नतीजा है कि तीन दशक पूर्व तक सीमांचल में जहां जहरीले साँपों की तादाद लाखों में थी वहां अब उनका अस्तित्व संकट में पड़ गया है। जहां तक बिहार के सीमांचल इलाकों में मिलने वाले साँपों का सवाल है तो यहां किंग कोबरा, करैत, बोआ, धामन, घोड़ करैत और वृक्षों पर रहने वाले सुगवा जैसे जहरीले साँपों के अलावा गणगुआरि, हरहरा और पानी में रहनेवाले ढोढ़िया जैसे कम खतरनाक साँप पाए जाते हैं।
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इसके अलावा बाढ़ के दिनों नेपाल के पर्वतीय ढलानों से बहकर आने वाले कई प्रकार के जहरीलें साँप भी यहां मिल जाते हैं। ऐसे साँप धान के खेतों में छिपे पाए जाते हैं। इन साँपों को जंगलों की अंधाधुंध कटाई से संकट झेलना पड़ रहा है। रिहाइशी इलाकों एवं खेत-खलिहानों में वे आसानी से दिख जाते हैं जिससे उन्हें आसानी से पकड़ लिया जाता है। स्थानीय लोगों के विरोध से बचने के लिए तस्कर यह प्रचारित करते हैं कि एड्स और कैंसर जैसे लाइलाज रोगों की दवा बनाने के लिए वे साँप पकड़ते हैं।