एपोफ़िस ढा सकता है पृथ्वी पर कहर...
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दिसंबर 2012 को तो दुनिया खत्म नहीं हुई लेकिन प्रलयवादी धरती के नजदीक आते एक क्षुद्रग्रह के बहाने से एक बार फिर पृथ्वी पर सर्वनाश और क़यामत का दिन आ जाने का हौवा खड़ा कर सकते हैं। हालांकि सच्चाई यह है कि कुछेक मीटर लंबे-चौड़े क्षुद्रग्रह आये दिन पृथ्वी के निकट आते रहते हैं। कई बार उल्काओं के रूप में उस पर गिरते भी हैं, लेकिन वायुमंडल में जल कर भस्म हो जाते हैं। वैज्ञानिक फ़िलहाल सात सौ से अधिक ऐसे क्षुद्रग्रहों को जानते हैं, जो अपनी सौर-परिक्रमा के दौरान पृथ्वी के परिक्रमा-पथ को काटते हैं। "एपोफ़िस" (Apophis) एक ऐसा ही दूसरा क्षुद्रग्रह है, जो 2012 DA14 से भी पहले, पृथ्वी के परिक्रमापथ को काटते हुए आगामी 9 जनवरी को पृथ्वी से एक करोड़ 40 लाख किलोमीटर की दूरी पर से गुज़रेगा। वैज्ञानिकों को उससे इस समय तो कोई चिंता नहीं है, किंतु 2029 में वह पृथ्वी से केवल 30 हज़ार किलोमीटर दूर ही रह जाएगा। तब प्रलयवादियों की बाछें और भी खिल जायेंगी।क़रीब सात साल पहले "एपोफ़िस" का पता चलने पर उसके परिक्रमापथ की जो गणना की गई थी, उससे वैज्ञानिक सन्न रह गए थे। उस गणना के अनुसार, वह शुक्रवार 13 अप्रैल 2029 के दिन पृथ्वी के इस बुरी तरह निकट आ सकता है कि उससे टकरा जाए। क्या है एपोफ़िस और उससे होने वाला खतरा, जानिए अगले पन्ने पर...
एपोफ़िस 300 मीटर तक बड़ा चट्टानी क्षुद्रग्रह माना जाता है। अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि 30 मीटर से बड़ा हर आकाशीय पिंड ख़तरनाक सिद्ध हो सकता है। 30 मीटर तक के पिंड ज़मीन छूने से पहले ही वायुमंडल की घनी परतों से रगड़ खा कर या तो पूरी तरह भस्म हो जाते हैं या टूट कर केवल केवल रेत के दानों जितने बड़े आकार में ही ज़मीन तक पहुँच पाते हैं। लेकिन, 300 मीटर तक बड़ा "एपोफ़िस" यदि पृथ्वी से टकराया, तो वह वायुमंडल में पूरी तरह भस्म नहीं हो सकता। धरती से टकराने पर वह कहर बरपा सकता है। प्रलय वह भी नहीं ला सकता। लेकिन 104 वर्ष पूर्व का तुंगुस्का विस्फोट स्मरणीय है कि 104 वर्ष पूर्व 1908 में रूसी साइबेरिया के तुंगुस्का नदी-क्षेत्र में एक ऐसा आकाशीय पिंड पृथ्वी से टकराया था, जो 2012 DA14 जितना ही बड़ा था। एक निर्जन जंगली क्षेत्र होने के कारण उस समय हुए धमाके से कुछ भेंड़ें वगैरह मरी थीं, जबकी 1600 वर्ग किलोमीटर के दायरे में पेड़ आदि भूमिसात हो गए थे। लेकिन, उससे कोई क्रेटर (गड्ढा) नहीं बना था, क्योंकि करीब 10 किलोमीटर की ऊँचाई पर विस्फोट हो जाने से वह पिंड असंख्य टुकड़ों में बिखर गया था। इस घटना के कंप्यूटर अनुकरणों (सिम्युलेशन) से पता चला है कि वह उल्कापिंड यदि 4 घंटे 47 मिनट बाद पृथ्वी पर गिरा होता, तो रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर पर गिरता और तब उससे जान-माल की भारी क्षति हुई होती। अनुमान तो यह भी हैं कि वही उल्कापिंड यदि न्यू यॉर्क पर गिरा होता, तब तो हाहाकार ही मच जाता। 32 लाख लोग मारे जाते और इससे भी कहीं अधिक घायल होते।किसी उल्का या क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने पर होने वाले नाश-विनाश की व्यापकता उसके आकार-प्रकार के साथ-साथ इस पर भी निर्भर करती है कि वह कितना ठोस या भुरभुरा था, कब और कहाँ गिरा-- किसी घने बसे इलाके में, निर्जन रेगिस्तान में, जंगल-पहाड़ के बीच या सागर-महासागर में। 2012 DA14 के बारे में अनुमान है कि वह एक ठोस चट्टान के समान है, जबकि तुंगुस्का में गिरा पिंड भुरभुरे क़िस्म का था। कब होगा महाविनाश, अगले पन्ने पर...
इस बीच यह बात तय लगती है कि एपोफ़िस 13 अप्रैल 2029 को तो पृथ्वी से टकराएगा नहीं, बल्कि उससे 30 हज़ार किलोमीटर की दूरी पर से सर्राता हुआ निकल जाएगा। उस समय उसे नंगी आँखों से भी देखा जा सकेगा। टकराने की संभावना 50 हज़ार में से केवल एक के बराबर है। आशा तो यह भी की जा रही है कि उस पर नज़र रखते हुए अगले तीन वर्षों में शायद यह बात पक्की हो जाए कि पृथ्वी और एपोफ़िस के बीच अगले कई सौ वर्षों तक किसी टक्कर की संभावमा नहीं है।