नाटक : बूढ़ी मां की सीख
पात्र
शिवाजी (तरुण)
शिवाजी का एक युवा साथी (शिवाजी से कुछ लंबा)
बुढ़िया
एक बालक (उम्र 10 वर्ष)
एक सेवक, कुछ दरबारी और संदेशवाहक
स्थान- सह्याद्रि के जंगल में एक बुढ़िया की झोपड़ी
झोपड़ी के अंदर का दृश्य- एक बुढ़िया बैठी कथरी सिल रही है। एक बालक पास में बैठा है।आवाज आती है- कोई है...?बुढ़िया- कौन है देख।(
बालक उठकर द्वार खोलता है। दो युवकों का प्रवेश, लंबा युवक कुछ कहना चाहता है। दूसरा तेजस्वी युवा उसे इशारे से चुप कराकर स्वयं कहता है।) हम हैं भटके हुए राही... आसरा मिलेगा?बुढ़िया- आओ, अंदर आ जाओ।