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शीत ऋतु पर बालगीत : शीतलहर के उग गए पर...

शीत ऋतु पर बालगीत : शीतलहर के उग गए पर... - winter season poem
सरक-सरककर, सर-सर-सर,
शीतलहर के उग गए पर।
 
चारों तरफ धुंध दिन में भी,
कुछ भी पड़ता नहीं दिखाई।
मजबूरी में बस चालक ने,
बस की मस्तक लाइट जलाई।
 
फिर भी साफ नहीं दिखता है,
लगे ब्रेक करते चीं-चीं स्वर।
विद्यालय से जैसे-तैसे,
सी-सी करते हम घर पाए।
 
गरम मुंगौड़े आलू-छोले,
अम्मा ने मुझको खिलवाए।
सर्दी मुझे हो गई भारी,
बजने लगी नाक घर-घर-घर।
 
अदरक वाली तब अम्मा ने, 
मुझको गुड़ की चाय पिलाई।
मोटी-सी पश्मीनी स्वेटर,
लंबी-सी टोपी पहनाई।
 
ओढ़ तानकर सोए अब तक,
पापा को है हल्का-सा ज्वर।
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