मंगलवार, 8 अप्रैल 2025
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सर्दी के दिनों पर चटपटी कविता : शीत लहर के पंछी

Winter Poetry for kids
शीत लहर के पंछी आ गए,
रुई के पंखे लगा-लगा कर। 
 
चारों तरफ धुंध दिन में भी,
कुछ भी पड़ता नहीं दिखाई।
 
मजबूरी में बस चालक ने,
बस की मस्तक लाइट जलाई।
 
फिर भी साफ नहीं दिखता है,
लगे ब्रेक, करते चीं-चीं स्वर।
 
विद्यालय से जैसे-तैसे,
सी-सी-करते आ घर पाएं।
 
गरम मुंगौड़े, आलू छोले,
अम्मा ने मुझ को खिलवाएं।
 
सर्दी मुझे हो गई भारी,
बजने लगी नाक घर-घर-घर।
 
अदरक वाली तब दादी ने,
मुझको गुड़ की चाय पिलाई।
 
मोटी-सा पश्मीनी स्वेटर,
लंबी-सी टोपी पहनाई।
ओढ़ तान कर सोए अब तक,
पापा को भी हल्का-सा ज्वर।

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