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Written By WD

करवा चौथ व्रत में क्या करें?

Karwa chauth 2011 | करवा चौथ व्रत में क्या करें?
ND
करवा चौथ का व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यदि दो दिन की चंद्रोदय व्यापिनी हो या दोनों ही दिन न हो तो 'मातृविद्धा प्रशस्यते' के अनुसार पूर्वविद्धा लेना चाहिए॥ सुहागिन या पतिव्रता स्त्रियों का यह बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है।

स्त्रियाँ इस व्रत को पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। यह व्रत अलग-अलग क्षेत्रों में वहाँ की प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप रखा जाता है, लेकिन इन मान्यताओं में थोड़ा-बहुत अंतर होता है। सार तो सभी का एक होता है पति की दीर्घायु। यहाँ हम करवा चौथ व्रत में होने वाली प्रक्रियाओं को क्रमवार दे रहे हैं-

करवा चौथ में प्रयुक्त होने वाली संपूर्ण सामग्री को एकत्रित करें।

व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-

'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'

पूरे दिन निर्जल रहें।

दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।

आठ पूरियों की अठावरी बनाएँ। हलुआ बनाएँ। पक्के पकवान बनाएँ।

पीली मिट्टी से गौरी बनाएँ और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएँ।

गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएँ। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएँ। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।

जल से भरा हुआ लोटा रखें।

वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूँ और ढक्कन में शकर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।

रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएँ।

गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।

'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌।
प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'

करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूँ या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। (करवा कथाएँ पृथक से दी गई हैं।)

कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।

तेरह दाने गेहूँ के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।

रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।

इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएँ और स्वयं भी भोजन कर लें।