जिनके चरणों में झुके हुए देवों के मुकुट की मणियाँ इतनी तो झिलमिला रही हैं कि मानों पाप के तिमिर को चीर डालती हों... संसार समुद्र में डूबते हुए जनों के लिए सहारा रूप वैसे आदिनाथ तीर्थंकर के चरण-कमल को मैं हार्दिक प्रणाम करता हूँ। (प्रणाम करके स्तवना करूँगा।)
समग्र शास्त्रावबोध से युक्त सूक्ष्म प्रज्ञा के धनी देवेन्द्रों ने भी जिनकी स्तवना की है, उन प्रथम तीर्थंकर की स्तवना मैं भी त्रैलोक्य के चित्त को आह्लादित करे, वैसे स्तोत्रगान द्वारा करूँगा।
देव-देवेन्द्रों से पराजित प्रभो! बुद्धिहीन एवं लज्जाविहीन होते हुए भी मैं आपकी स्तवना करने को लालायित हुआ हूँ! पानी में गिरते चाँद के प्रतिबिंब को अबोध शिशु के अलावा कौन यकायक पकड़ने के लिए हठ करेगा?
वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र! शशाङᄉकान्तान् कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्ध्या । कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ॥
गुणों के समुद्र रूप स्वामिन्, चंद्र जैसे शीतल प्रभो, देवगुरु बृहस्पति भी आपके गुणों का आकलन, अपनी प्रज्ञा के जरिए करने में असमर्थ हैं! भला प्रलय के क्षणों में भयंकर तूफान से उद्वेलित हुए समुद्र को अपनी बाँहों के बल पर तैरने की हिम्मत कौन दिखाएगा?
ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो सव्वोहिजिणाणं ।
मंत्र- ॐ ह्रीं श्री क्लीं जलदेवताभ्यो नमः स्वाहा ।
शक्तिरहित पर भक्ति सहित मैं मेरी मर्यादा को लाँघकर भी आपकी स्तवना करने को समर्पित बना हूँ... वह बेचारा भोला-भोला हिरन भी अपने नन्हे से छौने को बचाने के लिए अपनी ताकत एवं औकात की परवाह किए बगैर क्या शेर का सामना नहीं करता है?