गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
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Jain forgiveness day: 'सबको क्षमा, सबसे क्षमा' यही है क्षमावाणी पर्व की सीख

Jain forgiveness day: 'सबको क्षमा, सबसे क्षमा' यही है क्षमावाणी पर्व की सीख - The Jain festival of forgiveness
Jainism forgiveness day: जैन धर्म में पयुर्षण महापर्व यानी दशलक्षण पर्व का बहुत महत्व का माना गया है। जैन धर्म में पर्युषण पर्व को आत्म जागृति तथा आत्म शुद्धि का पर्व कहा गया है तथा यह सभी पर्वों का 'राजा' माना जाता है। इस पर्व की विशेष महत्ता के कारण ही इस पर्व को 'राजा' कहा जाता है।

इस महापर्व के समापन पर क्षमावाणी पर्व मनाया जाता है। यह पर्व अहंकार, कषाय, अभिमान को दूर करके जीवन में मधुरता घोल देता है। यह हमें अपने अहम् को दूर रखकर धर्म के मार्ग पर चलते हुए सभी को क्षमा करने और सभी से माफी मांगने की सीख देता है। 
 
आपको बता दें कि दिगंबर जैन समाज के पर्वाधिराज 'पर्युषण' पर्व समाप्त हो गए हैं और अब समय है क्षमा पर्व का यानी आज क्षमावाणी का पावन पर्व मनाया जा रहा है। अत: यह पर्व का जैन धर्मावलंबियों के लिए बहुत महत्व रखता है। यह पर्व जहां 'जिओ और जीने दो' का संदेश देता है, वहीं भगवान महावीर के मूल सिद्धांत 'अहिंसा परमो धर्म और जिओ और जीने दो' की राह पर चलना सिखाता है। 
 
दसलक्षण एक ऐसा पर्व है जिसमें आत्मा भगवान में लीन हो जाती है। यह एक ऐसी क्रिया, ऐसी भक्ति और सुध-बुध खोकर, अन्न-जल तक ग्रहण करने की सुध नहीं रहती है। इन 10 दिनों में कई धर्मावलंबी भाई-बहनें 3, 5 या 10 दिनों तक तप करके अपनी आत्मा का कल्याण करने का मार्ग अपनाते हैं। 
 
जैन धर्म के अनुसार दशलक्षण यानी पयुर्षण पर्व के 10 दिनों में धर्म-कर्म पर अधिक से अधिक ध्यान दिया जाता है, क्योंकि यह आत्म शुद्धि करने का पर्व है, जो कि 10 दिनों तक मनाया जाता है। इसके साथ ही अंतिम दिन क्षमावाणी पर्व के रूप में मनाया जाता है। पयुर्षण पर्व के अंतिम दिन मनाया जाने वाला पर्व क्षमावाणी, राग-द्वेष, अहंकार से भरे इस संसार में अपने-अपने हितों और अहंकारों की गठरी को दूर करने का मौका हमें देता है। 
 
हम न जाने कितने अहंकार को सिर पर उठाए कहां-कहां फिरते रहते हैं और न जाने किस-किस से टकराते फिरते हैं। इसमें हम कई लोगों के दिलों को जाने-अनजाने में ठेस पहुंचाते हैं। कभी-कभी तो हम खुद की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाते हैं। जीवन में आगे निकल जाने की दौड़-होड़ में अमूमन हमसे हिंसा हो ही जाती है। ऐसे में इन सब बातों को अपने मन से दूर करने और अपने द्वारा दूसरों के दिलों को दुखाए जाने से जो कष्‍ट हमारे द्वारा उन्हें प्राप्त हुआ है, उन सब बातों को दूर करने का यही खास अवसर होता है, जब हम अपने तन-मन से अपने द्वारा की गई गलतियों के लिए दूसरों से बेझिझक क्षमा या माफी मांग सकते हैं। 
 
वैसे भी सांसारिक मनुष्य को छोटी-छोटी बातों में मान-सम्मान आड़े आता है, अत: हमें चाहिए कि हम कभी भी अपने पद-प्रतिष्ठा का अहंकार न करें, हमेशा धर्म की अंगुली पकड़कर चलते रहें और जीवन के हर पल में भगवान को याद रखें ताकि भगवान हमेशा हमारे साथ रह सकें। 
 
अपने इस अहंकार को जीतने के लिए जीवन में तप का भी महत्वपूर्ण स्थान है और तप के 3 काम हैं- अपने द्वारा किए गए गलत कर्मों को जलाना, अपनी आत्मा को निखारना और कैवल्य ज्ञान को अर्जित करना। अपने जीवन में ऊर्जा को मन के भीतर की ओर प्रवाहित करने का नाम ही तप है। अत: जीवन में अहं भाव के चलते हुई गलतियों को सुधारने का एकमात्र उपाय यही बचता है कि हम शुद्ध अंतःकरण से अपनी भूल-चूक को स्वीकार करके अपने और सबके प्रति विनम्रता का भाव मन में जगाएं और मन की शुद्धि करते हुए सभी से माफी मांगें।
 
वर्तमान समय में इस भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी को भी क्रोध या गुस्सा आना साधारण-सी बात है, क्योंकि व्यक्ति जीवन में इतना उलझा हुआ रहता है कि फिर बात चाहे बड़ी हो या छोटी उसको गुस्सा आ ही जाता है। क्रोध एक कषाय है और गुस्से के आवेग में व्यक्ति विचारशून्य हो जाता है। क्रोध व्यक्ति को अपनी स्थिति से विचलित कर देता है। इसीलिए व्‍यक्ति को अपने जीवन में क्षमा का भाव रखना चाहिए और यह भावना सभी जीवों के प्रति होनी चाहिए। 
 
हमारी सभी से मैत्री का भाव रहे, यही दसलक्षण पर्व की सीख है। अत: मन के बैर-भाव के विसर्जन करने के इस अवसर को अपने हाथ से जाने न दें और इसका लाभ उठाते हुए सभी से क्षमा-याचना करें ताकि हमारा मन और आत्मा शुद्ध हो सकें। साथ ही दूसरे के मन को भी हम शांति पहुंचा सकें, यही हमारा प्रयास होना चाहिए। इसीलिए पर्युषण पर्व के समापन के बाद दिगंबर जैन समुदाय के लोग 'उत्तम क्षमा' कहते हुए सभी छोटे-बड़ों से दिल से क्षमा मांगते हैं। 
 
अत: में बस इतना ही कहना चाहूंगी कि पर्युषण पर्व की इस सीख को ध्यान में रखते हुए मैं सभी से क्षमायाचना चाहती हूं। 
 
'सबको क्षमा, सबसे क्षमा' और 'उत्तम क्षमा'।
 
जय जिनेंद्र