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Written By अनिरुद्ध जोशी

श्वेतांबर जैन पर्युषण पर्व के समापन पर कहते हैं- मिच्छामी दुक्कड़म, जानें इसका अर्थ और महत्व

श्वेतांबर जैन पर्युषण पर्व के समापन पर कहते हैं- मिच्छामी दुक्कड़म, जानें इसका अर्थ और महत्व - Michhami Dukkadam samvatsari parv
Samvatsari Parv 2023: जैन धर्म में श्‍वेतांबर और दिगंबर दोनों संप्रदाय के पर्युषण पर्व का समय अलग अलग होता है। श्वेतांबर संप्रदाय का पर्युषण त्योहार 11 सितंबर से प्रारंभ होकर 18 सितंबर को समाप्त हो रहा है अगले दिन पर्व के अंतिम दिन यानी 19 सितंबर को संवत्सरी प्रतिक्रमण के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सभी एक दूसरे को 'मिच्छामी दुक्कड़म' कहते हैं। दिगंबरों का पर्युषण 19 सितंबर 223 से प्रारंभ होकर 28 सितंबर तक चलेगा। इस दशलक्षण पर्व भी कहते हैं।
 
मिच्छामी दुक्कड़म का अर्थ : जैन धर्म के अनुसार 'मिच्छामी' का भाव क्षमा करने और 'दुक्कड़म्' का अर्थ गलतियों से है अर्थात मेरे द्वारा जाने-अनजाने में की गईं गलतियों के लिए मुझे क्षमा कीजिए। प्राकृत भाषा में काफी जैन ग्रंथों की रचना हुई है। 'मिच्छामी दुक्कड़म्' भी प्राकृत भाषा का शब्द है। पर्युषण महापर्व जैन धर्मावलंबियों में आत्मशुद्धि का पर्व है। इस तरह पर्युषण पर्व आत्मशुद्धि के साथ मनोमालिन्य दूर करने तथा सभी से क्षमा-याचना मांगने का सुअवसर प्रदान करने वाला महापर्व है।
 
पर्युषण पर्व का महत्व और उद्येश्य :भाद्रपद मास में जैन धर्मावलंबी (श्वेताम्बर और दिगंबर) पर्युषण पर्व मनाते हैं। पर्युषण पर्व मनाने का मूल उद्देश्य आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। श्वेताम्बर संप्रदाय के पर्युषण 8 दिन चलते हैं। संवत्सरी पर्व (samvatsari parv) यानी क्षमावाणी पर्व पर 'मिच्छामी दुक्कड़म्' (Michhami Dukkadam) कहकर सभी से क्षमा मांगी जाती है। उसके बाद दिगंबर संप्रदाय वाले 10 दिन तक पर्युषण मनाते हैं। उन्हें वे 'दसलक्षण' के नाम से भी संबोधित करते हैं।
भगवान महावीर ने कहा है-
खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्तिमे सव्व भुएस्‌ वैरं ममझं न केणई।
 
-अर्थात सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा बैर नहीं है। यह वाक्य परंपरागत जरूर है, मगर विशेष आशय रखता है। इसके अनुसार क्षमा मांगने से ज्यादा जरूरी क्षमा करना है। 
 
इन दिनों कल्पसूत्र/ तत्वार्थ सूत्र का वाचन किया जाता है, संत-मुनियों तथा विद्वान पंडितों के सान्निध्य में स्वाध्याय किया जाता है। मंदिर, उपाश्रय, स्थानक तथा समवशरण परिसर में अधिकतम समय तक रहना जरूरी माना जाता है। पूजन, आरती, उपवास, त्याग-तपस्या में अधिक से अधिक समय व्यतीत किया जाता है और दैनिक क्रियाओं से दूर रहने का प्रयास किया जाता है। संयम और विवेक का निरंतर प्रयोग, अभ्यास चलता रहता है। इन दिनों उपवास, बेला, तेला, अठ्ठाई, मासखमण जैसी लंबी बिना कुछ खाए, बिना कुछ पिए, निर्जला तपस्या करने वाले लोग सराहना प्राप्त करते हैं।
 
इन्हीं 8 दिनों में पर्व (Jain religion) में दौरान क्षमा, अहिंसा और मैत्री का पर्व संवत्सरी आता है। संवत्सरी पर्व पर जैन धर्मावलंबी जाने-अनजाने में हुईं गलतियों के लिए एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं। गौरतलब है कि श्वेतांबर जैन समाज के पर्युषण पर्व संपन्न हुए हैं और क्षमावाणी दिवस मनाया जा रहा है। जैन धर्म की परंपरा के अनुसार पर्युषण पर्व के अंतिम दिन क्षमावाणी दिवस (मैत्री दिवस) पर सभी एक-दूसरे से 'मिच्छामी दुक्कड़म्' कहकर क्षमा मांगते हैं, साथ ही यह भी कहा जाता है कि मैंने मन, वचन, काया से जाने-अनजाने में अगर आपका दिल दुखाया हो तो मैं हाथ जोड़कर आपसे क्षमा मांगता हूं।