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Written By WD Feature Desk

Acharya Vidyasagar Maharaj : आचार्यश्री विद्यासागरजी की जीवनी

Acharya Vidyasagar Maharaj : आचार्यश्री विद्यासागरजी की जीवनी - About Vidyasagar Maharaj
Vidyasagar ji maharaj 
HIGHLIGHTS
 
* जैन संत आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी महाराज के बारे में जानें।
* जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज पंचतत्व में विलीन।
* आचार्यश्री विद्यासागर जी इस सदी के महान संत हैं। 
जीवन परिचय : आश्विन शुक्ल पूर्णिमा/ शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में विक्रम संवत्‌ 2003 सन्‌ 1946 में दिन गुरुवार को कर्नाटक जिला बेलगाम के ग्राम सदलगा के निकट चिक्कोड़ी ग्राम में आचार्यश्री विद्यासागर जी का जन्म हुआ था। उनके पिता श्रावक श्री मलप्पाजी अष्टगे और धर्मनिष्ठ श्राविका श्रीमतीजी अष्टगे (माता) एक धन-धान्य से संपन्न परिवार से थे, जहां विद्यासागरजी का जन्म हुआ और उनका नाम विद्याधर रखा गया।
 
बाल्यकाल : विद्याधर बाल्यकाल से ही साधना को साधने और मन एवं इन्द्रियों पर नियंत्रण करने का अभ्यास करते थे, लेकिन युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही उनके मन में वैराग्य का बीज अंकुरित हो गया। मात्र 20 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने गृह त्याग कर जयपुर (राजस्थान) पहुंच गए और वहां विराजित आचार्यश्री देशभूषण जी महाराज जी से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेकर उन्हीं के संघ में रहते हुए धर्म, स्वाध्याय और साधना करते रहे।
 
वही विद्याधर संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के नाम से विश्वभर में प्रख्यात होने के साथ-साथ जैन धर्म, अध्यात्म के प्रभावी प्रवक्ता और श्रमण-संस्कृति की उज्ज्वल प्रकाश के अप्रतिम प्रतीक रहे, जिन्होंने सिन्धु घाटी की प्राचीनतम सभ्यता के रूप में समस्त विश्व को गौरव गाथा सुनाई। विद्यासागर जी में अपने शिष्यों का संवर्द्धन करने का अभूतपूर्व सामर्थ्य रहा है। उनका बाह्य व्यक्तित्व जहां सरल, सहज, मनोरम रहा, किंतु अंतरंग तपस्या में वे वज्र-से अधिक कठोर साधक रहे हैं। 
 
लेखन कार्य : आचार्यश्री की मातृभाषा कन्नड़ है और कन्नड़ एवं मराठी भाषाओं में आपने हाईस्कूल तक शिक्षा ग्रहण की थी, लेकिन वे बहुभाषाविद् के लिए जाने जाते हैं और कन्नड़ एवं मराठी के अलावा हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और बंगला जैसी अनेक भाषाओं के भी ज्ञाता भी रहे हैं। 
 
विद्यासागर जी ने कन्नड़भाषी होते हुए भी हिन्दी, संस्कृत, मराठी और अंग्रेजी में लेखन किया है। उन्होंने 'निरंजन शतकं', 'भावना शतकं', 'परीष हजय शतकं', 'सुनीति शतकं' व 'श्रमण शतकं' नाम से 5 शतकों की रचना संस्कृत में की है तथा स्वयं ही इनका पद्यानुवाद किया है। 
 
उनके द्वारा रचित संसार में सर्वाधिक चर्चित, काव्य-प्रतिभा की चरम प्रस्तुति 'मूकमाटी' महाकाव्य है। यह रूपक कथा-काव्य, अध्यात्म, दर्शन व युग-चेतना का संगम है। संस्कृति, जन और भूमि की महत्ता को स्थापित करते हुए आचार्यश्री ने इस महाकाव्य के माध्यम से राष्ट्रीय अस्मिता को पुनर्जीवित करने का कार्य किया।
 
उनकी रचनाएं मात्र कृतियां ही नहीं, वे तो अकृत्रिम चैत्यालय हैं। उनके उपदेश, प्रवचन, प्रेरणा और आशीर्वाद से चैत्यालय, जिनालय, स्वाध्याय शाला, औषधालय, यात्री निवास, त्रिकाल चौवीसी आदि की स्थापना कई स्थानों पर हुई और अनेक जगहों पर निर्माण जारी है ।महाराजश्री की प्रेरणा से हथकरघा को नई पहचान मिली।   
 
समाधि : जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज जी ने 18 फरवरी 2024, तदनुसार माघ शुक्ल अष्टमी को डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) के चन्द्रगिरि पर्वत पर रात 2 बजकर 30 मिनट समाधि ले ली थी। और देह त्याग दी और पंचतत्व में विलीन हो गए। 

मुनि आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के पंचतत्व में विलीन होने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने जहां आधे दिन के शोक की घोषणा की, वहीं दिल्ली में आयोजित भाजपा के राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय मंत्रियों, कई मुख्यमंत्रियों तथा अन्य पार्टी नेताओं के साथ एक मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। साथ ही यह भी कहा कि आने वाली पीढ़ियों द्वारा समाज में आध्यात्मिक जागृति की दिशा में आचार्यश्री विद्यासागर जी के प्रयासों, स्वास्थ्य देखभाल, गरीबी उन्मूलन की दिशा में किए गए कार्य के इस अमूल्य योगदान के लिए उन्हें याद किया जाएगा। आचार्यश्री विद्यासागर जी इस सदी के महान संत हैं, जिन्होंने अपने त्याग से विश्व को धर्म की राह दिखाई हैं।

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