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Written By Author जनमेजय सिंह सिकरवार

क्या दुनिया को वश में कर लेगा एआई?

क्या दुनिया को वश में कर लेगा एआई? - Artificial Intelligence
एआई यानी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धिमत्ता। आजकल कंप्यूटरों या सॉफ़्टवेयर द्वारा प्रदर्शित बुद्धिमत्ता या कुछ प्रकार की समस्याओं के समाधान निकालने की उनकी क्षमता को ही आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस यानी एआई कहा जाता है। 
 
दूसरे शब्दों में, ऐसे कंप्यूटरीकृत कारकों के निर्माण व उनके अध्ययन के क्षेत्र को भी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस कहते हैं जो बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य कर सकें। क्योंकि ये कारक मानव निर्मित होते हैं अत: इनकी बुद्धिमत्ता को आर्टिफ़िशियल या कृत्रिम कहा जाता है।
 
अपने शुरुआती दौर में हमारे कुछ ही कामों में मदद कर पाने वाले कंप्यूटर और सॉफ़्टवेयर अब हमारे ग्राहकों को कोई उत्पाद पसंद करवाने या उनकी सोच को प्रभावित करने तक के काम आ रहे हैं। खेल से लेकर पढ़ाई और दफ़्तर के काम से लेकर घरेलू सामान खरीदने तक हर काम में हमारी मदद के लिए हाजिर हैं हज़ारों वेबसाइट्स और मोबाइल ऐप्स। इन पर बैक एंड में काम कर रहे सॉफ़्टवेयर हमारी हर एक ऑनलाइन हरकत को देखते हैं और हमारी पसंद/नापसंद का पूरा खाका बना सकते हैं। यह हुआ आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का एक सामान्य सा शुरुआती उपयोग।
 
एआई के बढ़ते कदमों का भय : एआई का उन्नत रूप आजकल की कृत्रिम बुद्धिमत्तायुक्त मशीनों में देखा जा सकता है। ये मशीनें कुछ ऐसी हैं कि उनकी क्षमताओं के परीक्षण में उनसे छोटे-मोटे घरेलू काम भी करवाए जाते हैं। आपके लिए ड्रिंक बनाने से लेकर खाना परोसने और घर आए मेहमान की खातिर करने जैसे कुछ तयशुदा कामों तक तो इनके परीक्षण बेहद सफल हुए। इनके अलावा, कुछ मशीनें किसी संस्थान में दाखिला लेने से लेकर वहाँ की परीक्षा में पास होने तक के कारनामे कर चुकी हैं और उनकी अक्ल को मापने के लिए ‘इंटेलिजेंस’ का परीक्षण भी हुआ है।
 
कंप्यूटरों के इस प्रकार हमारी दुनिया के हर एक काम में दखल दे देने के बाद, अब लोगों का ध्यान एआई के ऊपर नए सिरे से ध्यान केंद्रित हो रहा है। इसका कारण यह है कि कुछ लोगों के मन में यह धारणा बेहद सशक्त हो गई है कि अगले कुछ वर्षों में एआई के कारण कंप्यूटर इतने चतुर बन जाएँगे कि वे मानव को अपना ग़ुलाम बना लेने में सक्षम हो जाएँगे। पिछले एक दो दशकों में हॉलीवुड में बनी फ़िल्मों ने भी इस धारणा को सुदृढ़ करने में अपना योगदान किया है।
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क्या है एआई की दुनिया के भीतर : आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस एक बहुत विशाल क्षेत्र है, जिसके कई उपक्षेत्र या सबफ़ील्ड हैं। दुनिया के कई देशों में एआई पर अलग-अलग शोध हो रहे हैं, लेकिन शोधकर्ताओं ने अब तक इन सभी का मानकीकरण नहीं किया है। इस कारण, आज की दशा में ये सभी एक दूसरे से अलग हैं और इस कारण कई बार एक दूसरे से कम्युनिकेट करने में असमर्थ।
 
एआई के कुछ अधिक जाने-माने सबफ़ील्ड या उपक्षेत्र हैं: रोबोटिक्स, मशीन लर्निंग, नेचरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग, प्लानिंग, विज़न आदि। इसके अलावा भी कई सबफ़ील्ड माने जाते हैं। इस क्षेत्र में मानकीकरण का अभाव इसी बात से दिखाई देता है कि अब तक वैज्ञानिक इसके उपक्षेत्रों का भी निर्धारण ठीक से नहीं कर पाए हैं और न ही इसका लिए कोई मानक तय हुए हैं।
 
जनरल एआई, जिसे फ़ुल एआई भी कहा जाता है, के लिए यह आवश्यक है कि मशीन सीखने, प्लान करने, तर्क के द्वारा बेहतर निर्णय करने, प्राकृतिक भाषा में संवाद करने, सामान्य ज्ञान रखने, देखकर पहचानने, पहेलियाँ सुलझाने या तर्क व सीखने की क्षमता के द्वारा रणनीति बनाने में सक्षम हो। कुछ हद तक इन सभी पर रोबोटिक्स के तहत काम हो रहा है। लेकिन अभी कोई भी रोबोट इन सभी कार्यों को एक साथ करने में सक्षम नहीं है। इसके अलावा इनकी मदद से तेज़ व अधिक समृद्ध कंप्यूटरीकृत प्रणालियाँ बनाने पर भी काम हो रहा है।
 
हम कितना डरें एआई से : जैसे-जैसे ये प्रणालियाँ बेहतर काम करना शुरू कर रही हैं, इस बारे में अनुमान बढ़ते जा रहे हैं कि भविष्य में ये क्या-क्या कर पाएँगी। इन अनुमानों के कुछ अतिरंजित स्वरूप उठाकर हॉलीवुड ने टर्मिनेटर, एआई, रोबोकॉप, स्टारवॉर्स, स्टार ट्रैक जैसी कई फ़िल्में भी बना दीं। इन फ़िल्मों को देखने के बाद आम लोगों में यह संशय घर कर गया कि क्या मशीनें किसी दिन वाकई दुनिया की मालिक बन बैठेंगी? तेज़-तर्रार, चतुर कंप्यूटिंग मशीनों और रोबोटों के बारे में नित-नई ख़बरें पढ़कर भी यह विचार जड़ पकड़ रहा है।
 
रोबोटिक मशीनों का उपयोग मैन्युफ़ैक्चरिंग इंडस्ट्री में तो कई स्थानों पर किया ही जा रहा है (जैसे कारों की असेंबली लाइन में, जहाँ उन्हें वेल्डिंग करने या कुछ अन्य सामान फ़िट करने के लिए लगाया जाता है)। लेकिन इन मशीनों का परीक्षण महत्वपूर्ण काम करने की उनकी क्षमता को लेकर भी किया जा रहा है, जिसके दौरान कभी-कभी वे मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कामों को मनुष्य से बेहतर तरीके से भी कर देती हैं। इसके अलावा, इंटरनेट ऑफ़थिंग्स के तहत काम करने वाली कई मशीनें अपनी कंप्यूटिंग क्षमता के कारण इंसान से कहीं जल्दी बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय ले रही हैं।
 
लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि ये मशीनें ऐसा कैसे कर पा रही हैं। कोई भी कंप्यूटर या कंप्यूटिंग मशीन किसी काम को केवल तब कर पाती है, जब प्रोग्रामर उसके द्वारा उस काम को कराने के लिए उपयुक्त सॉफ़्टवेयर बनाता है। सॉफ़्टवेयर में या मशीन के मेकेनिकल हिस्से में जितना काम करने की क्षमता होगी, मशीन उतना ही काम कर पाएगी।
 
हालाँकि यह सच है कि कुछ मशीनों के अपने उद्देश्य से अधिक काम कर जाने की संभावना कुछ प्रकार से हो सकती है, लेकिन अभी हम स्मार्ट मशीनों के उस दौर तक नहीं पहुँचे हैं, और उम्मीद है उस दौर तक पहुँचने से पहले मानकीकरण के द्वारा यह तय कर लिया जाएगा कि किस-किस प्रकार के सॉफ़्टवेयर व मशीनों को एक साथ काम करने दिया जा सकता है, जिससे मशीनों के खुद-मुख़्त्यार हो जाने का ख़तरा न रहे। अत: अभी तो बस मशीनों के नित नए प्रयोगों को देखिए और सराहिए!