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Written By भाषा
Last Updated :नई दिल्ली (भाषा) , बुधवार, 9 जुलाई 2014 (19:37 IST)

वाशिंगटन में 'ओम शांति..शांति...शांति'

वाशिंगटन में ''ओम शांति..शांति...शांति'' -
अमेरिकी सीनेट के बाद अब ाशिंगटन स्टेट की सीनेट में भी भारतीय उपनिषदों का शांति संदेश 'ओम शांति..शांति...शांति' गूँजेगा।

अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों के अच्छी स्थिति में आने से वहाँ भारतीय संस्कृति का प्रभाव तेजी से बढ़ता जा रहा है।

पिछले साल अमेरिकी सीनेट के सत्र की शुरूआत वेदों के मंत्रोच्चार से होने के बाद अब 22 फरवरी को वाशिंगटन स्टेट की सीनेट के सत्र का शुभारंभ भी वेदों, उपनिषदों और गीता के श्लोकों से होगा। यही नहीं, नेवादा की एक काउंटी ने भी 12 जनवरी को 'संस्कृत दिवस' घोषित किया है।

भारतीय अमेरिकी और वहाँ के विख्यात हिन्दू पुरोहित रंजन सिद इन दोनों कार्यक्रमों में सक्रियता से जुड़े हैं। सिद ने बताया कि वाशिंगटन स्टेट की सीनेट में 22 फरवरी को हिन्दू पुरोहित विभिन्न वेदों, उपनिषदों और गीता के श्लोक पढ़ेंगे और उसका समापन बृहदारण्यकोपनिद के इस विश्व विख्यात श्लोक से होगा-

असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।।
मृत्योमामृतंगमय।
ओम शांति शांति शांति।

अर्थात हमें असत्य से सत्य की ओर, अंधेरे से उजाले की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।

भारतीय अमेरिकियों के बढ़ते वर्चस्व का एक उदाहरण यह भी है कि इस बार दीपावली के अवसर पर राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने व्हाइट हाउस में दीवाली मेले का आयोजन किया।

सिद ने बताया कि अमेरिकी लोगों में भारतीय और हिन्दू दर्शन की ओर आकर्षण लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि इस पश्चिमी देश के लोगों को सबसे अधिक यह बात आकर्षित और अचंभित करती है कि विश्व का सबसे प्राचीन हिन्दू धर्म अकेला ऐसा धर्म है, जिसका न कोई अकेला पैगम्बर है, न कोई अकेली पवित्र पुस्तक और न ही कोई अकेली आधिकारिक सत्ता।

उन्होंने कहा कि माइक्रोसाफ्ट के बिल गेट्स के राज्य वाशिंगटन की प्रतिनिधि सभा में हिन्दू मंत्रोच्चारण को सादर निमंत्रण देना भारतीय दर्शन के बढ़ते प्रभाव का द्योतक है। वाशिंगटन स्टेट की सीनेट में 49 सदस्य हैं। प्रत्येक सदस्य स्टेट के एक लाख 20 हजार लोगों का प्रतिनिधित्व करता है।

नेवादा स्टेट की काउंटी वाशू ने 12 जनवरी को 'संस्कृत दिवस' घोषित किया है। इस अवसर पर काउंटी में दो दिवसीय संस्कृत समारोह आयोजित किए गए हैं।

काउंटी ने संस्कृत दिवस मनाने की अपनी घोषणा में कहा कि पश्चिम में हिन्दू धर्म के विस्तार से यह आवश्यक है कि हिन्दुत्व को समझा जाए और इसके लिए संस्कृत का ज्ञान जरूरी है। घोषणा में महात्मा गाँधी को भी उद्धृत करते हुए कहा गया संस्कृत का अध्ययन किए बिना कोई सही मायनों में ज्ञानी नहीं बन सकता है।