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Last Updated : गुरुवार, 24 दिसंबर 2020 (23:14 IST)

आतंकी हाफिज सईद को टेरर फंडिंग मामले में 15 साल कैद की सजा, 4 मामलों में पहले से है दोषी

आतंकी हाफिज सईद को टेरर फंडिंग मामले में 15 साल कैद की सजा, 4 मामलों में पहले से है दोषी - Terrorist Hafiz Saeed sentenced to 15 years imprisonment in Terror funding case
लाहौर। पाकिस्तान की एक आतंकवादरोधी अदालत ने मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के मास्टरमाइंड और प्रतिबंधित आतंकी संगठन जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद को दहशतगर्दी का वित्तपोषण करने के एक और मामले में गुरुवार को 15 साल छह माह कैद की सजा सुनाई।

लाहौर की आतंकवाद रोधी अदालत (एटीसी) ने उस पर 2 लाख पाकिस्तानी रुपए का जुर्माना भी लगाया। सईद (70) को आतंकवाद का वित्तपोषण करने के चार मामलों में पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है और उसे 21 साल की सजा हुई है।

अदालत के एक अधिकारी ने बताया कि गुरुवार को लाहौर की आतंकवाद रोधी अदालत ने जमात उद दावा के प्रमुख हाफिज सईद समेत इसके 5 नेताओं को आतंकवाद का वित्तपोषण करने के एक और मामले में साढ़े 15 साल की सजा सुनाई है। इन मामलों में उसकी सजाएं साथ-साथ चलेंगी। उसे लाहौर की कोट लखपत जेल में 'वीआईपी प्रोटोकॉल' देने की भी खबरें आ रही हैं।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी घोषित किए गए सईद पर अमेरिका ने 1 करोड़ डॉलर का ईनाम घोषित किया है। उसे पिछले साल 17 जुलाई को आतंकवाद का वित्तपोषण करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। उसे आतंकवादरोधी अदालत ने आतंकवाद का वित्तपोषण करने के दो मामलों में इस साल फरवरी में 11 साल की सजा सुनाई थी। आतंकवाद रोधी अदालत ने नवंबर में सईद को दहशतगर्दी का वित्तपोषण करने के दो और मामलों में 10 साल की सज़ा सुनाई थी।

बृहस्पतिवार को अदालत ने जमात उद दावा के नेता हफीज़ अब्दुल सलाम, जफर इकबाल, जमात के प्रवक्ता याहया मुजाहीद और मोहम्मद अशरफ को दोषी पाया है। अदालत ने हरेक दोषी पर 2-2 लाख पाकिस्तानी रुपए का जुर्माना लगाया है।

अधिकारी ने बताया कि अदालत ने इस मामले में सईद के करीबी रिश्तेदार अब्दुल रहमान मक्की को छह महीने की सजा सुनाई है और उस पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। अधिकारी के मुताबिक, न्यायाधीश एजाज़ अहमद ने आतंकवाद रोधी विभाग (सीटीडी) का मामला सुना। गवाहों के बयान दर्ज किए गए। सईद और अन्य के वकीलों ने गवाहों से जिरह की। इसके बाद अदालत ने अपना फैसला सुनाया।

उन्होंने बताया कि भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच सईद और जमात के अन्य नेताओं को अदालत लाया गया। मीडिया को कार्यवाही कवर करने की इजाज़त नहीं थी। सीटीडी ने जमात के नेताओं के खिलाफ कुल 41 मामले दर्ज किए हैं जिनमें से 28 पर फैसला आ गया है जबकि अन्य आतंकवाद रोधी अदालतों में लंबित हैं। सईद के खिलाफ अबतक पांच मामलो में फैसला आ चुका है।

सईद नीत जमात उद दावा आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा संगठन है। लश्कर मुंबई में 2008 में आतंकवादी हमला करने के लिए कसूरवार है जिसमें छह अमेरिकियों समेत 166 लोगों की मौत हुई थी। अमेरिका के वित्त विभाग ने सईद को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया हुआ है। वह दिसंबर 2008 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1267 के तहत भी सूचीबद्ध है।

पाकिस्तान में खुले घूम रहे आतंकवादियों और भारत पर हमले करने के लिए पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल करने वाले दहशतगर्दों पर कार्रवाई करने के लिए देश की सरकार पर दबाव बनाने में आतंकवाद के वित्तपोषण पर नजर रखने वाले वैश्विक संगठन वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) ने अहम भूमिका निभाई है।

एफएटीएफ ने जून 2018 में पाकिस्तान को ग्रे सूची में डाल दिया था और इस्लामाबाद से कहा था कि वे 2019 के अंत तक मनी लांड्रिग और आतंकवाद को खत्म करने के लिए कार्रवाई योजना को लागू करे, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण समयसीमा को बढ़ा दिया गया।

डैनियल पर्ल के हत्यारे रिहा : पाकिस्तान की एक अदालत ने ब्रिटेन में जन्मे अलकायदा के आतंकवादी अहमद उमर सईद शेख और उसके तीन सहयोगियों को गुरुवार को रिहा करने के आदेश दिए। इन सभी को अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल के अपहरण और हत्या मामले में दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई गई थी।

न्यायमूर्ति केके आगा की अध्यक्षता वाली सिंध उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ ने सुरक्षा एजेंसियों को निर्देश दिया कि शेख एवं अन्य आरोपियों को ‘किसी भी तरह से हिरासत’ में नहीं रखा जाए और उनकी हिरासत से जुड़ी सिंध सरकार की सभी अधिसूचनाओं को ‘अमान्य’ करार दिया। अदालत ने कहा कि चारों व्यक्तियों की हिरासत ‘अवैध’ है।

सिंध उच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने अप्रैल में 46 वर्षीय शेख की मौत की सजा को बदलकर सात वर्ष कैद की सजा कर दी थी। अदालत ने उसके तीन सहयोगियों को भी बरी कर दिया जो मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे थे।

बहरहाल सिंध सरकार ने उन्हें रिहा करने से इंकार कर दिया और लोक व्यवस्था बनाए रखने के तहत उन्हें हिरासत में रखा। उन्हें लगातार हिरासत में रखे जाने को सिंध उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई जिसने उनकी रिहाई के आदेश दिए। बहरहाल, इसने उनके नाम उड़ान नहीं भरने वालों की सूचनी में डालने के निर्देश दिए ताकि वे देश नहीं छोड़ सकें। इसने उन्हें निर्देश दिए कि जब भी अदालत समन करे उसके समक्ष पेश हों।

‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के दक्षिण एशिया के 38 वर्षीय ब्यूरो प्रमुख पर्ल का पाकिस्तान में 2002 में अपहरण कर लिया और उनकी गर्दन काटकर हत्या कर दी गई। उस समय पर्ल देश की शक्तिशाली खुफिया एजेंसी आईएसआई और अल-कायदा के बीच संबंधों को लेकर एक खबर पर काम कर रहे थे।

न्यायमूर्ति मुशीर आलम की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ शेख को रिहा करने के खिलाफ मारे गए पत्रकार के परिवार और सिंध सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही है। पर्ल के लिए न्याय की मांग करते हुए अमेरिका पाकिस्तान पर दबाव बनाए हुए है।

भारत ने 1999 में एयर इंडिया की उड़ान 814 के अपहृत 150 यात्रियों के बदले शेख समेत तीन आतंकियों, जैश ए मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर और मुश्ताक अहमद जरगर को रिहा कर किया था। इस रिहाई के तीन साल बाद ही पर्ल की हत्या हुई। भारत में विदेशी पर्यटकों के अपहरण के मामले में शेख को जेल की सजा सुनाई गई थी।(भाषा)
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