वॉशिंगटन। कोई भी व्यक्ति भले ही वह अमेरिका के खुले समाज में रह ले, लेकिन वह अपनी सोच और पूर्वाग्रहों से कभी मुक्त नहीं हो सकता है। एक इस्लामिक स्कॉलर सईद मोहम्मद बाकर अल-काज़विनी का मानना है कि काफिर बनने से अच्छा है कि मुस्लिम महिलाएं गुलाम बनी रहें।
बाकर का यह बयान एक वीडियो में सामने आया है, जो काफी वायरल हो रहा है।
इस वीडियो को आयशा मुर्ताद नामक ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है। इसके बाद पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारेक फतेह ने भी इसे शेयर किया है।
इस वीडियो को आयशा मुर्ताद नामक ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है। इसके बाद पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारेक फतेह ने भी इसे शेयर किया है।
वीडियो शेयर करते हुए फतेह लिखते हैं कि इस इस्लामिक मौलाना ने ईसाइयों और गैर मुस्लिमों पर निशाना साधा है। यह मौलाना गैर युद्ध बंदी गैर मुस्लिम महिलाओं को तो सेक्स गुलाम बनाने के पक्ष में है साथ ही उसका मानना है कि उन्हें धर्मांतरित कर इस्लाम में लाया जा सकता है। लेकिन, दूसरी यही मुल्ला कहता है कि काफिर बनने से अच्छा है कि मुस्लिम महिलाएं गुलाम बनी रहें।
Slavery is better than being a Kafir.
— Aisha Murtad (@UmmAlMumineen) May 28, 2018
Welcome to 2018.
pic.twitter.com/775yDmZuzk
वीडियो में इस्लामिक स्कॉलर सईद मोहम्मद कहता है कि इस्लाम काफिर होना सबसे बड़ी बीमारी मानता है। इसके अलावा इस्लामिक स्कॉलर ने अपने एक अन्य संबोधन में यह भी कहा है कि ऑफिस में पुरुषों द्वारा महिलाओं का उत्पीड़न होने जैसी घटनाएं होती हैं, क्योंकि ये पुरुषों के बायोलॉजिकल सिस्टम में है।
मौलाना का यह भी मानना है कि किसी भी ऑफिस में जब महिला कर्मचारी और पुरुष कर्मचारी एक-दूसरे का साथ कंफर्टेबल हो जाते हैं तो उत्पीड़न जैसी घटनाएं होती हैं। इसका एक ही हल है कि महिला और पुरुषों को एक साथ काम नहीं करना चाहिए। दोनों के लिए अलग-अलग ऑफिस होना चाहिए।