भारतीय वकील हरीश साल्वे और पाकिस्तानी वकील खैबर कुरैशी
हेग। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तानी सैन्य अदालत से जासूसी और विध्वंसक गतिविधियों के आरोप में फांसी की सजा पाए भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की सजा पर गुरुवार को रोक लगा दी। इस फैसले से जहां भारत की फतह हुई है तो पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत की तरफ से वकील हरीश साल्वे ने पैरवी करते हुए केवल 1 रुपए फीस ली तो वहीं दूसरी ओर पाकिस्तानी वकील खैबर कुरैशी ने ली 5 करोड़ रुपए फीस।
5 करोड़ की मोटी फीस लेने के बावजूद वे पाकिस्तान की तरफ से कुलभूषण जाधव को फांसी दिलाने के लिए ठोस दलील पेश नहीं कर सके, जबकि एक रुपए की फीस पर जाधव का केस लड़ रहे हरीश साल्वे की दलीलों को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की पैनल ने बड़ी गंभीरता से सुना। कुरैशी पाकिस्तान के जानेमाने वकीलों में शुमार किए जाते हैं लेकिन आज जब पाकिस्तान को पूरी दुनिया के सामने पटखनी मिली है तो खुद उनके देशवासी उन्हें कोस रहे हैं।
पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान बेनकाब : असल में भारत इस पूरे मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में इसलिए ले गया था, ताकि पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान को बेनकाब किया जा सके। भारत काफी हद तक इस मंसूबे में कामयाब भी हुआ है। भारत की तरफ से पेश हुए वकील हरीश साल्वे द्वारा जाधव के बचाव में पुख्ता दलीलें दिए जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और तमाम दूसरे नेताओं ने उनकी प्रशंसा की।
जाधव की फांसी के मामले में सोमवार को दोनों पक्षों में जोरदार बहस हुई थी। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने पक्ष रखने के लिए भारत और पाकिस्तान को 90-90 मिनट का समय दिया था। पहले भारत ने अपना पक्ष रखा और इसके बाद पाकिस्तान ने अपनी दलील दी। गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने जाधव की फांसी पर रोक लगा दी है। हालांकि पाकिस्तान को न्यायालय का यह फैसला मंजूर नहीं है।
अजमल कसाब को भी अदालत ने दिया था मौका : सनद रहे कि मुंबई में 26 नवंबर 2008 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मुख्य आरोपी पाकिस्तानी नागरिक अजमल कसाब को फांसी देने के पूर्व अदालत ने उसे अपना बचाव करने का पूरा मौका दिया था, लेकिन पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण को बगैर कोई मौका दिए गुपचुप तरीके से फांसी दिए जाने का ऐलान कर दिया गया। पाकिस्तान तो आखिरी समय तक कहता रहा कि कसाब हमारे देश का नहीं है, जबकि कसाब के पाकिस्तान में रहने के कई सबूत अदालत में पेश हुए थे।
देश के सबसे महंगे वकील ने फीस ली एक रुपए : कुलभूषण को फांसी की सजा से बचाने के लिए भारत ने हरीश सालवे को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पैरवी के लिए भेजा। चूंकि यह देश के सम्मान का मामला था लिहाजा उन्होंने मात्र 1 रुपए फीस लेने की शर्त पर यह केस लड़ा, जबकि साल्वे का शुमार देश के सबसे महंगे वकीलों में होता है। वे दो साल पहले तक एक केस लड़ने की फीस 6 से 15 लाख रुपए तक लेते हैं।
कौन हैं हरीश साल्वे : नागपुर में पले-बढ़े हरीश साल्वे के दादाजी एक कामयाब क्रिमिनल लॉयर रहे थे, जबकि पिता एनकेपी साल्वे चार्टर्ड अकाउटेंट और कांग्रेस के बड़े नेता थे। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हाराव सरकार में वे केंद्रीय मंत्री रहे। हरीश की मां अम्ब्रिती डॉक्टर थीं। वे बचपन में वकील नहीं इंजीनियर बनना चाहते थे। कॉलेज तक आते-आते उनकी दिलचस्पी चार्टर्ड अकाउंटेंसी की तरफ हुई लेकिन दो बार सीए की परीक्षा में फेल हो गए।
जिंदगी का पहला केस दिलीप कुमार का लड़ा : इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई की और वकील बने। उन्होंने 1975 में अपने जीवन का पहला केस फिल्म स्टार दिलीप कुमार का लड़ा था। दिलीप कुमार पर कालाधन रखने के आरोप लगे थे। यह मामला ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था। साल्वे के अनुसार, आयकर विभाग की अपील को खारिज करने में सुप्रीम कोर्ट के जजों को महज 45 सेकंड लगे। मुझे कोर्ट में बहस करनी पड़ती तो मेरी आवाज भी नहीं फूटती। खुशकिस्मती से कोर्ट ने मुझसे जिरह करने के लिए नहीं कहा।
भारत के सॉलिसीटर जनरल बने 43 साल की उम्र में : 1992 में हरीश साल्वे को दिल्ली हाईकोर्ट की तरफ से सीनियर एडवोकेट बना दिया गया। 1999 में एनडीए सरकार के समय साल्वे को जब भारत का सॉलिसीटर जनरल नियुक्त किया गया, तब उनकी उम्र 43 साल थी।
दिल में देशभक्ति का जज्बा : 61 साल के हरीश साल्वे को 42 साल का वकालत का अनुभव है। यही कारण है कि सोमवार को अंतरराष्ट्रीय अदालत में कुलभूषण जाधव के पक्ष में उन्होंने ऐसी जोरदार दलील पेश की, जिसके आगे पाकिस्तानी वकील खैबर कुरैशी की दलीलें फीकीं पड़ गईं। इन दोनों में अंतर इतना है कि महज 1 रुपए के सांकेतिक शुल्क लेने वाले साल्वे के दिल में देशभक्ति का जज्बा है तो पाकिस्तान के वकील खैबर को अपनी 5 करोड़ की फीस की चिंता है...(वेबदुनिया/एजेंसी)