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Written By Author राम यादव

Hitlers Death: हिटलर की आत्महत्या क्या एक ढोंग थी?

Hitlers Death: हिटलर की आत्महत्या क्या एक ढोंग थी? - Hitlers Death and Conspiracy Theories
Did Hitler commit suicide: जर्मन तानाशाह आडोल्फ़ हिटलर अपने समय का एक ऐसा महाराक्षस था, जो अपने बारे में तरह-तरह की कहानियों के रूप में आज भी जीवित है। आज भी ऐसे लोग हैं, जो नहीं मानते कि द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी हार के बाद, 30 अप्रैल 1945 के दिन बर्लिन के अपने बंकर में उसने स्वयं को गोली मार कर आत्महत्या करली थी।
 
हिटलर का जन्म 20 अप्रैल 1889 को जर्मनी के दक्षिणी पड़ोसी ऑस्ट्रिया के एक छोटे-से शहर ब्राउनाऊ में हुआ था। यह शहर जर्मनी की दक्षिणी सीमा के बिल्कुल पास में स्थित है। जर्मनी और ऑस्ट्रिया में उस समय राजशाही हुआ करती थी। दोनों देश तब भी जर्मन- भाषी और जर्मन-वंशी ही थे और आज भी हैं। किंतु, प्रथम विश्व युद्ध के बाद, जिसमें जर्मनी और ऑस्ट्रिया की भारी हार हुए थी, हिटलर जर्मनी का नागरिक और समय के साथ उसका एकछत्र शासक भी बनबैठा।
 
1 सितंबर 1939 को पोलैंड पर आक्रमण के साथ हिटलर ने ही द्वितीय विश्व युद्ध छेड़ा था। डेढ़ ही साल पूर्व, मार्च 1938 में उसने अपनी मातृभूमि ऑस्ट्रिया में अपने सैनिक भेजकर उसका जर्मनी में विलय कर लिया था। वहां की जनता ने उस समय इस विलय का विरोध करने के बदले बल्कि स्वागत ही किया था।
 
भूमिगत बंकर में आत्महत्या की : द्वीतीय विश्व युद्ध का यूरोप में अंत हुआ, 8 मई 1945 को जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ। तत्कालीन सोवियत संघ की लाल सेना ने उस समय तक जर्मनी की राजधानी बर्लिन पर ही नहीं, ऑस्ट्रिया की राजधानी वियेना पर भी क़ब्ज़ा कर लिया था। 27 अप्रैल 1945 को ऑस्ट्रिया ने जर्मनी के साथ विलय के अंत और अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। तीन ही दिन बाद, 30 अप्रैल के तीसरे पहर हिटलर ने और पिछली रात उसकी पत्नी बनी उसकी प्रेमिका एफ़ा ब्राउन ने, हिटलर के बर्लिन वाले भूमिगत बंकर में एक साथ आत्महत्या कर ली। 
 
विश्वविजय का ढिंढोरा पीटने और अंत में बुरी तरह हार खाने वाले हिटलर की आत्महत्या के इस बीच कई ठोस प्रमाण हैं। किंतु, 1945 में एक भयंकर विश्व युद्ध की अफ़रातफ़री के बीच जब यह सब हुआ, तब बहुत-सी बातें या तो ज्ञात नहीं थीं, संदेह से परे नहीं थीं या लोग उन पर विश्वास करना ही नहीं चाहते थे। विचित्र बात यह है कि इस बीच उपलब्ध ठोस जानकारियों के बावजूद भी बहुत से लोग अब भी यही मानते हैं कि हिटलर इतने वर्षों बाद जीवित भले ही न हो, उसने आत्महत्या नहीं की। उसे बाद में भी अनेक बार अनेक जगहों पर देखा गया। ऐसे में, हिटलर की आत्महत्या की 78वीं वर्षगांठ के अवसर पर ऐसे कुछ उदाहरणों पर दृष्टिपात करना अनुचित न होगा, जो हिटलर की मृत्यु को झुठलाने के लिए आज भी बड़े चाव से कहे-सुने जाते हैं।
 
सबसे अधिक प्रचलित तर्क : सबसे अधिक प्रचलित तर्क यह है कि हिटलर एक निडर योद्धा था, न कि ऐसा कोई कायर नेता कि वह आत्महत्या कर लेता। 1945 में अपनी हार को देखते ही वह ज़रूर, समय रहते, भेष बदल कर बर्लिन से ग़ायब हो गया होगा। सभी जानते हैं के उस समय के उसके बहुत से नाज़ी अधिकारी दक्षिणी अमेरिकी देशों में चले गए और वहीं बस गए। हिटलर ने भी यही किया होगा। उसकी पत्नी एफ़ा भी ज़रूर उसके साथ रही होगी। 
 
इस तर्क के पीछे मुख्य कारण यह तथ्य है कि हिटलर की नाज़ी पार्टी के कई बड़े अधिकारी तानाशाही शासकों वाले दक्षिणी अमेरिका के उस समय के अर्जेंटीना, ब्राज़ील, ऊरुग्वे, पराग्वे या चिली जैसे देशों में पहुंच गए और अपनी पहचान बदलकर वहीं बस गए। इंटरनेट में इस प्रकार की अटकलों और कथा-कहानियों ने मृत हिटलर को एक तरह से पुनर्जीवित कर दिया है।
 
हिटलर क्या अर्जेन्टीना चला गया : ऐसी ही एक मान्यता है कि हिटलर ने 30 अप्रैल 1945 को आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस दिन से पहले या उसके कुछ दिन बाद, अपनी पत्नी एफ़ा ब्राउन के साथ अर्जेन्टीना चला गया और अपने अंत तक वहीं रहा। पिछले कुछ समय से इस अवधारणा को सबसे अधिक पोषण मिला है 2011 में प्रकाशित 'ग्रे वोल्फ़ः दि एस्केप ऑफ़ एडोल्फ़ हिटलर' (धूसर भेड़ियाः एडोल्फ़ हिटलर का पलायन)  नाम की एक पुस्तक से। इस पुस्तक को लिखा है साइमन डंस्टन और जेराल्ड विलियम्स नाम के दो लेखकों ने।
 
इन दोनों लेखकों का कहना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में जर्मनी की कई पनडुब्बियां अर्जेंटीना की तरफ गई थीं। जर्मन नाज़ियों ने अर्जेंटीना के तत्कालीन राष्ट्रपति ख़ुआन पेरोन को ढेर सारा पैसा और सोना दे रखा था, इसलिए पेरोन ने उन्हें अपने देश में शरण दी। इन दोनों लेखकों की जानकारी के अनुसार, हिटलर की लंबे समय तक प्रेमिका रही और जर्मनी से पलायन से ठीक पहले विधिवत विवाह द्वारा उसकी पत्नी बनी एफ़ा ब्राउन, अर्जेंटीना पहुंचने के कुछ समय बाद एक बेटी की मां बनी। बेटी का नाम उर्ज़ुला था। लेकिन, पति-पत्नी बहुत अधिक समय तक एक साथ नहीं रहे। एफ़ा ब्राउन ने हिटलर का साथ छोड़ दिया और दक्षिणी अर्जेंटीना के 'न्यौकेन' नाम के शहर में रहने लगी। हिटलर की अर्जेंटीना में ही फ़रवरी 1962 में स्वाभाविक मृत्यु हुई।
 
हिटलर की खोपड़ी की हुई जांच-परख : साइमन डंस्टन और जेराल्ड विलियम्स का यह दावा, कि हिटलर अर्जेंटीना में बस गया था और 1962 में वहीं उसकी मृत्यु हुई, हिटलर की आत्महत्या के पक्ष में दिए जाने वाले प्रमाणों से मेल नहीं खाता। ऐसा सबसे बड़ा प्रमाण एक ऐसी खोपड़ी को बताया जाता है, जो हिटलर के बंकर तक सबसे पहले पहुंचने वाले रूसी सैनिकों को मिली थी। यह खोपड़ी अब मॉस्को के एक संग्रहालय में है।
 
फ्रांस के अनुरोध पर रूसी गुप्तचर सेवा ‘एफ़एसबी’ ने 2017 में, फ्रांस के पांच फ़ोरेंसिक वैज्ञानिकों की एक टीम को मॉस्को आकर वहां रखे हिटलर की खोपड़ी के टुकड़ों और जबड़े की जांच करने की अनुमति प्रदान की। फ्रांसीसी टीम मार्च और जुलाई 2017 में वहां गई।  टीम ने पाया कि जांच के लिए उसे दी गई खोपड़ी की एक हड्डी में एक छेद था, जो संभवतः किसी गोली से बना होना चाहिए। यानी, हिटलर ने अपने सिर में गोली मारी रही होगी।
 
नृशंस हिटलर शाकाहारी था : फ्रांसीसी टीम के प्रवक्ता फ़िलिप शार्लिय़ेर का कहना था कि मॉस्को में उन्हें जो दांत दिखाए गए, वे भी हिटलर के ही होने चाहिए। इन दांतों का मिलान उन्होंने हिटलर की मृत्यु से पहले के उसके सिर की एक्स-रे तस्वीर से किया और पाया कि दोनों में कोई विसंगति नहीं है। हिटलर के दांत बहुत अच्छे नहीं थे। कुछ नकली दांत भी थे। दांत उसके मांसाहारी नहीं, बल्कि शाकाहारी होने की पुष्टि करते थे। शार्लिय़ेर का यह भी कहना था कि वे नहीं बता सकते कि हिटलर की मृत्यु ज़हर से हुई या गोली से। संभावना यही लगती है कि उसने दोनों का उपयोग किया।
 
दूसरी ओर, साइमन डंस्टन और जेराल्ड विलियम्स अपनी पुस्तक में कहते हैं कि 2009 में हिटलर की कथित खोपड़ी की DNA  जांच से यह पता चला कि वह तो 40 साल की किसी महिला की खोपड़ी होनी चाहिए। दोनों यह भी तर्क देते हैं कि ऐसा कभी नहीं कहा गया कि चर्चा में रही खोपड़ी के टुकड़े हिटलर की मृत्यु प्रमाणित करते हैं। उसके जो दांत मिले हैं, हिटलर के अपने ही दंतचिकित्सक, उसके एक सहयोगी और एक दंतविशेषज्ञ ने जांचे हैं और पुष्टि की है कि वे हिटलर के ही दांत हैं।
अमेरिकी गुप्तचर सेवा की फ़ाइलें : हिटलर के अर्जेंटीना में रहे होने की पुष्टि के तौर पर दोनों लेखक अमेरिकी गुप्तचर सेवा FBI की ऐसी फ़ाइलों का भी उल्लेख करते हैं, जिन्हें देखने और प्रकाशित करने पर अब कोई बंधन नहीं रहा। उनमें ऐसे बहुत से लोगों के वर्णन मिलते हैं, जिनका कहना है कि उन्होंने हिटलर को 1945 के बाद भी देखा है। FBI हालांकि यह नहीं कहती कि इन वर्णनों से हिटलर के जीवित रहे होने की अकाट्य पुष्टि होती है। 
 
पश्चिमी देशों के कई इतिहासकार, 1945 के बाद भी, हिटलर के जीवित होने की कहानियों के लिए भूतपूर्व सोवियत संघ के हिटलर जैसे ही निर्मम तानाशाह योसेफ़ स्टालिन को भी दोषी ठहराते हैं। यह बात सच है कि सोवियत जनता का आंखमूंद समर्थन पाने के लिए स्टालिन के समय एक से एक भ्रामक प्रचारों द्वारा जनता को अंधेरे में रखा गया। स्टालिन खुद या तो यह नहीं मानता था कि हिटलर ने 30 अप्रॆल 1945 को आत्महत्या करली है या जानबूझ कर लंबे समय तक यही आभास देता रहा कि हिटलर मरा नहीं है, ज़िंदा है। स्टालिन के ही आदेश पर सोवियत सेना के मार्शल शुकोव ने, जर्मनी के बिना शर्त आत्मसमर्पण के ठीक एक महीने बाद, 9 जून 1945 को, पहली बार पत्रकारों से हिटलर की मृत्यु को लेकर कई भ्रामक बातें कहीं।
 
1945 का पोट्सडाम शिखर सम्मेलन : 17 जुलाई से 2 अगस्त1945 तक बर्लिन के पड़ोसी शहर पोट्सडाम में द्वितीय विश्व युद्ध की विजेता शक्तियों सोवियत संघ, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस का शिखर सम्मेलन हुआ। इसी सम्मेलन में पूरे जर्मनी को और उसकी राजधानी बर्लिन को भी 4-4 हिस्सों में बांटा गया। हर विजेता शक्ति की सेना को जर्मनी का और राजधानी बर्लिन का एक-एक हिस्सा अपने नियंत्रण में रखने के लिए मिला।
 
इस शिखर सम्मेलन में स्टालिन ने स्वयं अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से कहा कि हिटलर अभी भी ज़िंदा है। स्टालिन का यह दोटूक कथन ही बाद में उन एक-से-एक चटपटी कथा कहानियों का आधार बन गया, जिनके अनुसार हिटलर को कभी स्पेन में तो कभी नॉर्वे में, कभी अर्जेंटीना में तो कभी कहीं और देखे जाने के दावे होने लगे। 
 
ब्रिटिश गुप्तचर सेवा की रिपोर्ट : इसी गहमागहमी में ब्रिटेन की 'सीक्रेट इन्टेलिजेन्स सर्विस' की बर्लिन शाखा के प्रमुख डिक व्हाइट ने ह्यू ट्रेवर-रॉपर नाम के अपने एक जासूस से कहा कि वह पता लगाए कि हिटलर की मौत हुई है या नहीं। ट्रेवर-रॉपर की पहली रिपोर्ट 1947 में एक पुस्तक के रूप में छपी। पुस्तक में छपी 1946 तक की रिपोर्टों में उसने यही लिखा है कि उसे हिटलर की मृत्यु के इतने सारे प्रमाण मिले हैं कि उसे आराम से मृत घोषित किया जा सकता है। 
 
इसके बावजूद, 'ग्रे वोल्फ़ः दि एस्केप ऑफ़ एडोल्फ़ हिटलर' के दोनों लेखकों साइमन डंस्टन और जेराल्ड विलियम्स ने 2014 में एक डॉक्यूमेन्ट्री फ़िल्म की पटकथा लिखी, जिसका जेरर्ड विलियम्स नाम के एक व्यक्ति ने फिल्मांकन करवाया। इस फ़िल्म में ऐसे कई लोगों के बयान हैं, जो कहते हैं कि हिटलर कई वर्षों तक अर्जेंटीना में था और उन्होंने स्वयं उसे वहां देखा है। इस फ़िल्म की लेकिन बहुत आलोचना भी हुई। आरोप लगे कि उसे भ्रष्टाचारी तरीकों से मिले पैसे के बल पर बनाया गया है।
 
हिस्ट्री चैनल सीरियल : 'हिस्ट्री चैनल' नाम की टेलीविज़न चैनल ने भी 'हंटिंग हिटलर' नाम से एक सीरियल डॉक्यूमेन्ट्री बनाई। यह फ़िल्म उन लोगों द्वारा खोजी और जुटाई गई सामग्री पर आधारित है, जो मानते हैं कि हिटलर जीवित था और दक्षिणी अमेरिका चला गया था। इन खोजियों ने दक्षिणी अमेरिका के कई देशों की यात्रा की और वहां हिटलर के रहे होने के कथित निशान ढूंढे। इसी क्रम में ब्राज़ील की एक लेखिका सिमोनी रेने गुएर्राइयो का भी नाम लिया जाता है। उन्होंने 'हिटलर इन ब्राज़ील–हिज़ लाइफ़ ऐन्ड हिज़ डेथ' (हिटलर ब्राज़ील में- उसका जीवन और उसकी मृत्यु) नाम की एक पुस्तक लिखी है।
 
इस लेखिका का कहना है कि हिटलर ब्राज़ील में रह रहा था, वहीं उसकी मृत्यु भी हुई। युद्ध हार जाने के बाद वह कैथलिक ईसाइयों की धार्मिक राजधानी वेटिकन में अपने शुभचिंतकों और उपकार-भोगियों की सहायता से पहले अर्जेंटीना पहुंचा। वहां उसने अपने आप को आडोल्फ़ हिटलर के बदले 'आडोल्फ़ लाइपज़िग' बताया। बाद में वहां से कभी ब्राज़ील चला गया। 
 
हिटलर क्या ब्राज़ील में मरा : लेखिका का दावा है कि उसे ब्राज़ील के 'मातो ग्रेस्सो' राज्य में एक ऐसे आदमी का फ़ोटो मिला, जो हिटलर के सिवाय कोई दूसरा व्यक्ति नहीं हो सकता। इस लेखिका को पूरा विश्वास है कि हिटलर 'मातो ग्रेस्सो' राज्य के 'नोस्सा सेन्योरा दो लिव्रामेन्तो' नाम के शहर में रहता था। वहीं 95 वर्ष की आयु में 1984 में उसकी मृत्यु हुई। इस शहर मे वह 'जर्मन बुड्‍ढे' के नाम से जाना जाता था।
 
अपनी पुस्तक में लेखिका सिमोनी ने एक ऐसी ईसाई नन का भी उल्लेख किया है, जो स्थानीय अस्पताल में काम करती थी। इसी अस्पताल में 1979 में वह 'जर्मन बुड्ढे' से मिली। नन को तुरंत ऐसा आभास हुआ कि 'आडोल्फ़ लाइपज़िग' कोई और नहीं,  आडोल्फ़ हिटलर ही होना चाहिए। 'आडोल्फ़ लाइपज़िग' की मृत्यु के बाद DNA टेस्ट के लिए उसके DNA के कुछ अंश लेखिका सिमोनी को दिए गए, ताकि हिटलर के मूल DNA के साथ मिलान करवा कर वह जान सकें कि दोनों DNA एक ही व्यक्ति के हैं या दो अलग व्यक्तियों के हैं। पता नहीं यह मिलान कभी किया गया या नहीं, क्योंकि सिमोनी रेने गुएर्राइयो ने इस बारे में कभी कुछ लिखा नहीं। 
 
अंत में निचोड़ यही निकलता है कि प्रथम विश्व युद्ध में एक मामूली सैनिक रहे हिटलर का जर्मनी का एकछत्र तानाशाह बन जाना, आर्य जाति की शुद्धता के नाम पर लाखों यहूदियों और भारतवंशी रोमा-सिंती बंजारों का नरसंहार करवाना और एक नया विश्व युद्ध छेड़कर सारी दुनिया में हाहाकार मचा देना- यह सब इतना अपूर्व और असंभव-सा लगता है कि अच्छे-अच्छे इतिहासकार भी हिटलर के कारनामों से चकरा जाते हैं। 
 
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