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Last Updated : सोमवार, 9 अप्रैल 2018 (17:30 IST)

पाइंट नीमो, जहां जू्ल्स वर्न की कल्पना साकार है....

पाइंट नीमो, जहां जू्ल्स वर्न की कल्पना साकार है.... - Do You Know Earth's Watery Graveyard For Spacecraft?
पैरिस। संभव है कि आपने फ्रांसीसी उपन्यासकार जूल्स वर्न का नाम नहीं सुना हो लेकिन जू्ल्स वर्न ने अपनी काल्पनिक विज्ञान कथाओं में ऐसी दुनिया रची है जोकि कल्पनाओं से अधिक वास्तविक है। अपने एक उपन्यास में उन्होंने एक पनडुब्बी का वर्णन किया है जिसका नाम उन्होंने कैप्टन रखा था। समुद्र में घूमती यह पनडुब्बी एक ऐसी जगह पहुंचती है जोकि इंसान की कल्पना से अधिक दूर स्थान पर है। जहां कोई भी आदमी आसानी से नहीं पहुंचता है और इस जगह पर अंतरिक्ष यान भी पानी में समा जाते हैं। उन्होंने ऐसे स्थान को पाइंट नीमो (स्पेस जंकीज) के नाम से चिन्हित किया है।
 
वास्तविकता में भी, धरती से बहुत अधिक दूर एक स्थान है जिसे पॉइंट नीमो कहा जाता है। यह स्थान ग्लोब पर जमीन से किसी दूसरे स्थान की तुलना में सबसे ज्यादा दूर है और वहां पहुंचना आसान नहीं है। दक्षिण प्रशांत महासागर में यह जगह पिटकेयर्न आइलैंड से उत्तर की ओर 2,688 किमी दूर है। ग्लोब पर यह डॉट माहेर आइलैंड (अंटार्कटिका) से दक्षिण की तरफ है। 
 
इस तरह से दक्षिण प्रशांत महासागर का यह स्पॉट एक बार फिर चर्चा में आ गया है। इसे महासागर का दुर्गम स्थान कहा जाता है। टाइटेनियम फ्यूल टैंक्स और दूसरे हाई-टेक स्पेस के मलबे के लिए यह समंदर में कब्रिस्तान की तरह है। फ्रैंच नॉवलिस्ट जूल्स वर्न के फिक्शनल सबमरीन कैप्टन के सम्मान में इसे स्पेस जंकीज या पॉइंट नीमो कहा जाता है। 
 
पॉइंट नीमो
 
जर्मनी में यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA)में अंतरिक्ष मलबे के विशेषज्ञ स्टीफन लेमंस ने कहा, 'इस जगह की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां कोई नहीं रहता है। अगर नियंत्रित तरीके से स्पेसक्राफ्ट की दोबारा एंट्री कराई जाए तो इससे बेहतर कोई दूसरी जगह नहीं है। संयोग से, यहां जैविक रूप से भी विविधता नहीं है। ऐसे में इसका डंपिंग ग्राउंड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए इसे अंतरिक्ष का कब्रिस्तान भी कहा जाता है। अकेले रूस के ही यहां 250 से 300 स्पेसक्राफ्ट दफन हो चुके हैं। 
 
यह बात अवश्य है कि इनमें से ज्यादातर पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करने के बाद जल चुके थे। अब तक जो सबसे बड़ा ऑब्जेक्ट पॉइंट नीमो में समाया, वह 2001 में रूस का MIR स्पेस लैब था। इसका वजन 120 टन था। लेमंस ने आगे कहा, 'आजकल इसका इस्तेमाल रूस के प्रोग्रेस कैपसूल्स के लिए किया जाता है, जो इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में आते-जाते रहते हैं।' खास बात यह है कि 420 टन के विशालकाय ISS की भी आखिरी मंजिल 2024 में पॉइंट नीमो ही है। 
 
जानकारों का कहना है कि भविष्य में ज्यादातर स्पेसक्राफ्ट इस तरह के पदार्थ से डिजाइन किए जाएंगे कि री-एंट्री पर पूरी तरह से पिघल जाएं। ऐसे में उनके धरती की सतह से टकराने की संभावना लगभग खत्म हो जाएगी। इस दिशा में नासा और ESA दोनों काम कर रहे हैं और वे फ्यूल टैंक्स के निर्माण के लिए टाइटेनियम से ऐल्युमिनियम पर शिफ्ट हो रहे हैं। 
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