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जानिए...दुनिया का सबसे बड़ा साइबर अपराधी है चीन

जानिए...दुनिया का सबसे बड़ा साइबर अपराधी है चीन - China is biggest cyber Criminal
हाल ही में करीब तीस लाख खाताधारकों के डेबिट कार्ड की जानकारियां चोरी होनी की जानकारी सामने आने के बाद पूरे देश में सनसनी फैल गई। इस साइबर सेंधमारी के चलते आईसीआईसीआई, एसबीआई, एचडीएफसी, यस बैंक और ऐक्सिस बैंक के खाताधारकों की सुरक्षा के मद्देनजर बैंकों की परेशानी बढ़ गई है। इस मामले में चीन के हैकरों का नाम सामने आया है। 
 
दुनिया के देशों की सूचना तकनीक में सेंध लगाने का काम अगर कोई देश सबसे अच्छे तरीके और बड़े पैमाने पर करता है तो वह है चीन। चीनी हैकरों ने वॉल स्ट्रीट जनरल और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे बड़े मीडिया समूहों को भी नहीं छोड़ा। इंटरनेट कंपनी गूगल के चेयरमैन एरिक श्मिट ने तो चीन को दुनिया के सबसे बड़े 'आईटी खतरे' का नाम दिया है।
 
वॉल स्ट्रीट जनरल के अनुसार श्मिट ने अपनी किताब में कहा है कि चीन आर्थिक और राजनीतिक फायदे के लिए साइबर अपराध करवाता है। 'द न्यू डिजिटल एज' नाम की किताब में बताया गया है कि चीनी हैकर दुनिया में सबसे सक्रिय और उत्साही तरीके से सूचनाओं को चोरी छिपे एकत्र करते हैं। हालांकि अभी तक का रिकॉर्ड यह रहा है कि चीन, हैकिंग के सभी आरोपों को नकारता ही रहा है।
 
कई देशों की सरकारें, विदेशी कंपनियां और संगठन चीन की सरकार पर दशकों से साइबर जासूसी कराने के आरोप लगाते रहे हैं। वॉल स्ट्रीट जनरल के अनुसार ‘द न्यू डिजिटल एज’ में विश्लेषण कर यह भी बताया गया है कि किस तरह चीन इंटरनेट का खतरनाक तरीके से इस्तेमाल कर रहा है।
 
किताब में बताया गया है कि अमेरिका और चीन की कंपनियों और उनकी रणनीतियों में जो अंतर है, उसकी वजह से अमेरिकी सरकार और कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ा है।
 
चूंकि अमेरिकी, चीनी हैकरों की तरह से डिजिटल कॉर्पोरेट जासूसी का रास्ता नहीं अपना सकते हैं क्योंकि इस मामले में अमेरिकी कानून बहुत कड़े हैं और इन्हें बेहतर तरीके से लागू किया जाता है।  लेकिन, चीन का यह कार्यक्रम सरकारी संरक्षण में चलता है, इसके चीनी हैकरों को नियम-कानूनों की कोई चिंता करने की जरूरत नहीं होती है। किताब में कहा गया है कि इस स्थिति से निपटने के लिए पश्चिमी देशों की सरकारों को राष्ट्र और प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ बेहतर रिश्ते कायम करने होंगे। अगर सरकारें भरोसेमंद कंपनियों के बनाए सॉफ्टवेयर और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करेंगी तो उन्हें फायदा होगा।
 
वॉल स्ट्रीट जनरल ने कुछ समय पहले कहा था कि उसके कंप्यूटरों पर चीन के विशेषज्ञों ने हमले किए हैं जो उनके चीन कवरेज की निगरानी करते रहते हैं। इससे पहले न्यूयॉर्क टाइम्स ने कहा था कि कुछेक महीने से चीनी हैकर उसके कंप्यूटर सिस्टम में सेंध लगा रहे हैं। वहीं चीन के विदेश मंत्रालय ने न्यूयॉर्क टाइम्स के आरोपों को बेबुनियाद बताकर खारिज किया। पर अब सारी दुनिया से जो सूचनाएं मिल रही हैं, उन्हें देखते हुए यह कहना गलत न होगा कि चीनी हैकर्स साइबर वॉरफेयर में महारत हासिल कर चुके हैं। अक्सर ही ऐसा होता है कि कई बार सूचनाओं को विभिन्न तकनीकों से हथियाने वाले युद्ध से बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है।
 
इस समय तो साइबर क्राइम से करीब-करीब पूरी दुनिया ही पीड़ित है। कुछ वर्ष पहले चीनी हैकरों की पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में की गई करामात ने अमेरिका जैसी ताकत को भी हिला कर रख दिया था। भारत अपने अशांत पड़ोसियों से घिरा हुआ है और इस कारण से भारत भी इन हमले के दायरे से बाहर नहीं है।
 
दोनों देशों के बीच समस्याओं पर भारतीय सेना के जवानों की गोपनीय सूचनाओं को स्मैश एप जैसे फर्जी एप्लीकेशन के द्वारा हैकर्स ने चुरा लिया था। इस तरह के अपराध पाकिस्तानी हैकर्स भी करते हैं, इसलिए जरूरी है कि हम ऐसे साइबर हमलों का सामना करने के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति बनाएं और इसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करें। इसके अभाव में हमारी स्थिति क्या और कैसी है, इसे हम निम्नलिखित तथ्यों से समझ सकते हैं।
 
 
साइबर क्राइम और भारत... पढ़ें अगले पेज पर....

1. कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम ऑफ इंडिया (CERT-IN) और इन्फॉर्मेशन शेयरिंग एंड एनालिसिस सेंटर (ISAC) की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2006 में साइबर क्राइम के 5211 मामले प्रकाश में आए। 2011 में यह संख्या बढ़कर 13,306 हो गई। तीन साल बाद ये 2014 के जून तक यह आंकड़ा 62,189 तक जा पहुंचा हैं और अब यह आंकड़ा लाखों को भी पार गया होगा।
 
2. गृह मंत्रालय के अनुसार अधिकतर साइबर हमले प्रधानमंत्री कार्यालय, विदेश मंत्रालय और रक्षा अनुसंधान और विकास केन्द्र (डीआरडीओ) जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विभागों पर किए जाते हैं। कई बार तो ये प्रभावी भी हो जाते हैं और इनके चलते हमारी कार्यप्रणाली गंभीर रूप से बाधित होती है। पठानकोट और उड़ी सैन्य शिविर पर आतंकवादी हमलों से उपजे तनाव के चलते पाक हैकरों ने भारत में हजारों की संख्या में वेबसाइट्स को हैक कर दिया गया था।  
 
3. वर्ष 2013 में असम में हुए दंगों के समय साइबर जगत में की गई अलगाववादी टिप्पणियों और मिथ्या खबरों के कारण उत्तर-पूर्व के लोग बेंगलूरू शहर से भागने लगे थे। बाद में साइबर विशेषज्ञों  ने साफ किया था कि इन सब खबरों को भारत की एकता विखंडित करने के लिए पाकिस्तान चलवा रहा था।
 
4. ये हैकर सरकार और कॉरपोरेट्स के कारोबार को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं। पॉवर ग्रिड, फाइनेंसियल और ट्रासपोर्ट नेटवर्क के अलावा कई ऑफिसियल डाटा ऑनलाइन होता है, जिसे नियंत्रण में लेकर गुप्त दस्तावेज चुराए या नष्ट किए जा सकते हैं। इनकी सुरक्षा के लिए एथिकल हैकर्स की भारी फौज की जरूरत महसूस की जा रही है।
 
5. सॉफ्टवेयर कंपनी सिमांटेक के मुताबिक भारत में हर साल 4 करोड़ साइबर क्राइम होते हैं। हमारे यहां आज भी व्यापक पैमाने पर इंटरनेट का प्रयोग करने वाली जनता को इसकी जानकारी नहीं है, इसलिए इंटरनेट के सहारे महत्वपूर्ण संस्थानों की आवश्यक सूचनाओं को चुराया जा सकता है, इन्हें नष्ट किया जा सकता है जिससे करोड़ों का जीवन प्रभावित हो सकता है। हालांकि, सरकार ने इस पर रोक लगाने के लिए आईटी-एक्ट, साइबर लॉ और साइबर सिक्योरिटी पॉलिसी जैसे कई पर्याप्त कानून और दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं लेकिन ये हैकरों के सामने कोई अर्थ नहीं रखते हैं।
 
6. अपनी साइबर सुरक्षा में हम बहुत कमजोर हैं। संसद में पूर्व सूचना और प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद ने स्वयं भी माना कि हम ये पता कर पाने के बावजूद, हैकिंग के खिलाफ कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि ज्यादातर हमले भारत के बाहर से हो रहे हैं। इसे रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मदद चाहिए होगी।
 
7. जापान ने इस दिशा में भारत के साथ काम करने में सहमति जताई है। जापान-CERT और CERT-IN ने आपस में सूचनाओं के आदान-प्रदान और महत्वपूर्ण तकनीक शेयर करने का भी फैसला किया है।
 
8. लेकिन चीन और पाकिस्तान, साइबर हैकिंग को सेना का अभिन्न अंग बना चुके हैं। पाकिस्तान आर्मी कश्मीर, पाकिस्तान G फ़ोर्स और पाकिस्तान साइबर आर्मी जैसे कई नामों से लगातार भारतीय तंत्र को नुक्सान पहुंचाने में सक्रिय रहते है। अब तक वे बीस हजार से भी अधिक भारतीय वेबसाइट्स को हैक कर चुके हैं।
 
9. विस्तारवादी चीन यहां भी दो-कदम आगे है। भारत की खुफिया सूचनाओं में सेंध लगाने के लिए चीन ने अनगिनत हैकर्स तैनात कर रखे हैं। NTRO की हाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन हमारे प्रतिष्ठानों की सबसे अधिक साइबर जासूसी करवाता रहा है। उसने बाकायदा इसके लिए किशोरवय हैकर्स की बड़े पैमाने पर भर्ती कर रखी है। एक्सपर्ट्स को शक है कि शायद चीन से सॉफ्टवेयर और आईटी के सामान के साथ मालवेयर भी भेजे जाते हैं।
 
10. अमेरिका और चीन की तर्ज पर नॉर्थ कोरिया जैसे देश अपनी साइबर आर्मी को मजबूत करने में जुटे हुए हैं। हालांकि भारत भी इसमें बहुत पीछे नहीं है लेकिन चीन जैसे देशों के मुकाबले हमारे संसाधन बहुत सीमित हैं। करीब एक दशक पहले से ही भारतीय सेना की खुफिया विंग ने साइबर विशेषज्ञों की मदद लेना शुरु कर दिया था। खुफिया एजेंसी रॉ नेशनल टेक्निकल रिसर्च आर्गेनाईजेशन (एनटीआरओ) जैसी साइबर यूनिट के साथ काम कर रहे हैं लेकिन फिर भी इस मामले में हमारी प्रगति संतोषजनक नहीं है।
 
11. इसके बावजूद हम अब भी जरूरत के लिहाज से तुलनात्मक रूप से पिछड़ते दिखाई पड़ रहे हैं। साइबर सुरक्षा पुलिस नाकाफी साबित हो रही है। हमारे सर्वर बहुत असुरक्षित हैं। पाकिस्तान पहले ही सीबीआई और बीएसएनएल की वेबसाइट को हैक कर चुका है। ऐसे में इन हमलों से निजात पाने के लिए न केवल रक्षात्मक रूप से बल्कि इन पर काउंटर अटैक करने की नीयत से ज्यादा आक्रामक नीतियों को अपनाने की जरूरत है।
 
अगले पेज पर पढ़ें.... चीनी सेंधमारों के साइबर कारनामे.....
 

इस मामले में चीनी हैकर इतने आगे बढ़ गए हैं कि उन्होंने कई अमेरिकी हथियारों की डिज़ाइन से जुड़े नेटवर्क को भेद लिया है और जरूरी सूचनाएं चुरा ली हैं। अधिकारियों के मुताबिक फ़ाइटर जेट से लेकर मिसाइल डिफेंस सिस्टम तक की जानकारी हैकरों के हाथ लग गई है। अधिकारियों ने कहा कि पेंटागन की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये उल्लंघन चीन की उस मुहिम के तहत हुआ है जिसमें चीन, अमेरिकी रक्षा प्रणाली से जुड़े कॉन्ट्रैक्टरों और सरकारी एजेंसियों की जासूसी करना चाहता है।
 
यही दावा कुछ समय पहले अमेरिकी अखबार वॉशिंगयन पोस्ट ने भी किया था। अमेरिकी डिफेंस बोर्ड की रिपोर्ट का हवाला देते हुए वॉशिंगटन पोस्ट ने कहा था कि चीनी हैकरों ने लड़ाकू विमानों के साथ साथ उन मिसाइल डिफेंस प्रणालियों की जानकारी हासिल कर ली है जो यूरोप, एशिया और खाड़ी के देशों के लिए सुरक्षा दृष्टिकोण से बेहद जरूरी हैं।
 
अमेरिकी डिफेंस बोर्ड की रिपोर्ट में लिखा गया है कि हैकिंग से अमेरिकी एडवांस्ड पेट्रियॉट मिसाइल सिस्टम, नौसेना का पेट्रियॉट पीएसी-3 और एजिस प्राक्षेपिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम, एफ/ए-10 लड़ाकू विमान, ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर और एफ-35 ज्वाइंट स्ट्राइक फाइटर जैसे उपकरणों की तकनीकी जानकारी चीन को मिल गई है। पेंटागन की इस रिपोर्ट में चीन की सरकार पर प्रत्यक्ष रूप से आरोप नहीं लगाया गया है, लेकिन इस समूचे मामले का सार यही है कि अमेरिका ने हाल ही में चीन की सरकार को इस बाबत चेतावनी दी थी।
 
रिपोर्ट से जुड़े एक अमेरिकी अधिकारी ने एक समाचार एजेंसी को बताया कि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि चीनी हैकरों के हाथों कितनी जानकारी लगी है। लेकिन यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई थी जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अगले हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात करने वाले थे। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जे कार्नी ने बताया था कि साइबर सुरक्षा के मुद्दे पर दोनों राष्ट्रपतियों के बीच बातचीत होना तय है।
 
इस रिपोर्ट की एक सार्वजनिक जानकारी भी जारी की गई थी जिसमें लिखा गया था कि अमेरिका साइबर युद्ध से लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। पेंटागन ने कहा कि साइबर उल्लंघन को लेकर उनकी चिंताएं बढ़ती जा रही हैं और कहा गया था कि चीनी साइबर जासूसों की हरकतों से वैश्विक आर्थिक व आंतरिक सुरक्षा खतरे में है क्योंकि 'साइबर दखलअंदाजी से बौद्धिक संपदा, व्यापार के रहस्यों व वाणिज्यिक आंकड़ों पर हमला होता है।'
 
साइबर सुरक्षा मामलों के जानकार जेम्स ल्यूइस ने कहा था कि अगर यह रिपोर्ट सच्ची है तो ‘इसका मतलब यह है कि अमेरिकी सेना, चीनी सेनाओं से कम प्रभावी है। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों से इस समस्या को गंभीरता से सुलझाने की कोशिश की जाने लगा है, लेकिन 1999 और 2009 के बीच तो चीनी हैकरों के लिए सभी दरवाजे मानो खुले हुए थे। रिपोर्ट के मुताबिक जिन हथियारों की जानकारी चीनी हैकरों के हाथ लगी है, उन्हें बनाने वाली कंपनियों में बोइंग, लॉकहीड मार्टिन, रेथियॉन और नॉर्थरॉप ग्रुमन जैसे बड़े नाम शामिल हैं।
 
ये पहली बार नहीं है जब चीन पर साइबर सेंधमारी के आरोप लगे हैं और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चीनी सेंधमारी का दायरा कुछेक देशों तक ही नहीं सारी दुनिया में फैला हुआ है। जानकारों का कहना है कि अमेरिकी सुरक्षा कंपनी 'फायर आई' के मुताबिक पिछली गर्मियों के दौरान चीनी हैकरों ने यूरोपीय संघ के पांच विदेश मंत्रालयों के कंप्यूटरों की जासूसी की थी।
 
हैकरों ने सीरिया में संभावित अमेरिकी हस्तक्षेप को विस्तार से जानने के लिए मालवेयर (वायरसयुक्त सॉफ्टवेयर) से भरे ईमेल युक्त संदेश भेजे थे। कम्पनी ने यह खुलासा नहीं किया है कि जासूसी के दौरान किन मंत्रालयों को निशाना बनाया गया। लेकिन फायर आई के मुताबिक ये मालवेयर जी-20 समिट के दौरान हुई अलग-अलग व्यक्तिगत बातचीत से जुड़े थे। इस कम्पनी के मुताबिक कुल नौ कम्प्यूटरों में सेंध लगाकर छेड़छाड़ की गई। विदित हो कि इन कंप्यूटरों को सितंबर में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में जी-20 समूह (जिसमें चीन भी शामिल है) के वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान निशाना बनाया गया था। इस बातचीत में सीरिया के मुद्दे पर बात की गई थी।
 
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगस्त में एक सप्ताह के लिए वे हैकरों द्वारा प्रयोग किए गए 23 कंप्यूटर सर्वरों पर नजर रखने में सक्षम रहे थे, जिसे उन्होंने एक फाइल के नाम में इसके दुर्भावनापूर्ण कोड प्रयोग के बाद के-3 चैंग समूह नाम दिया था। कुछ दिनों पहले अमेरिका पर भारत सहित कई देशों की जासूसी करने का आरोप लगा था। एक अनुमान के मुताबिक के-3 चैंग समूह 2010 से काम कर रहा है और इस समूह ने एयरोस्पेस, एनर्जी और विनिर्माण उद्योगों को निशाना बनाया है, लेकिन उन्होंने हाई-टेक कंपनियों और सरकारों को भी मालवेयर युक्त ईमेल भेजे हैं।
 
हाल ही में करीब तीस लाख खाताधारकों के डेबिट कार्ड की जानकारियां चोरी होना देश के वित्तीय तंत्र में बड़ी सेंधमारी है। इस सेंधमारी के चलते आईसीआईसीआई, एसबीआई, एचडीएफसी, यस बैंक और ऐक्सिस बैंक के खाताधारकों की सुरक्षा के मद्देनजर बैंकों की परेशानी बढ़ गई है। बताया जा रहा है कि बैंक का मानना है कि चीनी हैकरों ने यह अटैक किया है। वहीं एसबीआई के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक ने यह फ्रॉड मालवेयर (वॉयरसयुक्त सॉफ्टवेयर)  के जरिए व्हाइट लेवल एटीएम से हुआ है। 
 
उल्लेखनीय है कि मालवेयर एक ऐसी खतरनाक स्क्रिप्ट होती है जिसमें वे प्रोग्राम लिखे होते हैं जिनके इस्तेमाल से सिस्टम में रखा डेटा चुराया जा सकता है। इसे किसी अटैचमैंट या रिमूवेबल ड्राइव के जरिए सर्वर में इंजेक्ट कराया जाता है। एक्सपर्ट के मुताबिक हैकर्स ने एसबीआई के एटीएम नेटवर्क के सर्वर में इसे इंजेक्ट किया होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि एटीएम के सॉफ्टवेयर इंटरकनेक्टेड होते हैं। अगर आप इसे एक बार सर्वर में डाल देते हैं तो इसे रन कराने के लिए कई बार रिमोट एक्सेस की जरूरत होती है, हालांकि कई बार यह खुद से भी एक्टिवेट हो जाते हैं। एक बार एक्टिवेट होने के बाद सिस्टम से महत्वपूर्ण डेटा हैकर्स के पास पहुंचना शुरू हो जाता है। अगर हैकर्स ने ऐसा किया होगा तो जाहिर तौर पर न सिर्फ एटीएम पिन बल्कि कार्ड की अन्य जानकारियां मसलन कार्ड नंबर भी उनके पास पहुंच गए होंगे।
इस तरह होती है साइबर सेंधमार... पढ़ें अगले पेज पर....

सेंधमारी का तरीका : जब आप अपना कार्ड एटीएम मशीन में एक बार इन्सर्ट कराते हैं तो सर्वर में मौजूद मालवेयर वायरस कार्ड की क्लोनिंग कर लेता है और कार्ड की पीछे लगी मैग्नेटिक चिप में ये वायरस भेज देता है। इस तरह से आपके कार्ड की सारी जानकारियां चोरी हो जाती हैं। इसके बाद उसी एटीएम से कोई भी हैकर्स क्लोनिंग वाले एटीएम के जरिए मालवेयर वायरस की मदद से जानकारी का इस्तेमाल कर व्यक्ति के खाते से पैसे चुरा लेता है।
 
हैकर्स आमतौर पर ओपन नेटवर्क के जरिए ही सेंध लगाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके लिए उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। मालवेयर की मदद से हैकर्स के पास इन एटीएम नेटवर्क में इस्तेमाल किए गए कार्ड्स की जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। लेकिन कार्ड की जानकारी मिलने के बाद भी किसी कार्ड से पैसे उड़ाना आसान नहीं होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पेमेंट गेटवे में इसके लिए ओटीपी या 3डी सिक्योर कोड की जरूरत पड़ती है। हालांकि हैकर्स के पास इसकी काट भी रहती है। इसके लिए हैकर्स कार्ड की क्लोनिंग करते हैं, फिर चुराए गए डेटा को अप्लाई करते हैं। ऐसे में कार्ड से पैसे उड़ाना काफी हद तक आसान हो जाता है। ऐसा सभी नहीं लेकिन अधिकतर कार्ड्स के साथ होता है।
 
चीन-भारत सीमा विवाद और भारत में मौजूद निर्वासित तिब्बती समूहों के बारे में 2012 से सूचना की चीनी हैकर जासूसी कर रहे हैं। अमेरिका आधारित एक साइबर सुरक्षा कंपनी ने यह दावा किया है। साइबर सुरक्षा कंपनी फायर आई ने बताया कि मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा से पहले अप्रैल में हैकरों का पता चला और वे लोग अब तक हमले कर रहे हैं।
 
चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने फायर आई के एक बयान के हवाले से बताया कि एक एडवांस टीम सीमा विवाद और तिब्बती निर्वासित समूहों के बारे में सूचना चुराने के लिए है। इसने बताया है, 'पिछले चार साल से अधिक समय से इस संगठन ने 100 से अधिक (लोगों या संस्थाओं) को निशाना बनाया है जिनमें से करीब 70 फीसदी भारत में है।'
 
अप्रैल में फायर आई ने बताया था कि एक अलग चीनी हैकिंग टीम एपीटी 30 दक्षिण पूर्व एशिया एवं भारत में सरकार और व्यापारिक प्रतिष्ठानों की निर्बाध रूप से एक दशक से जासूसी कर रही है।
अमेरिकी कंपनी मैकएफी ने 2011 के अपने अध्ययनों में ऐसा ही दावा किया था। हालांकि चीन ने बाद में इस तरह के आरोपों का खंडन किया था। पिछले वर्ष जून में चीनी हैकरों ने 40 लाख अमेरिकी कंप्यूटरों का डाटा चुरा लिया था।
 
अमेरिका का एक भी ऐसा सरकारी ऑफिस नहीं बचा था जिसके कंप्यूटर से डाटा न चुराया गया हो। तब अमेरिकी जांचकर्ताओं ने पाया कि इस हैकिंग के पीछे चीन का हाथ है। हालांकि चीन ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया। शुरुआत में माना जा रहा था कि सिर्फ निजी प्रबंधन कार्यालय और आंतरिक विभाग के कंप्यूटर ही सेंधमारी से प्रभावित हुए हैं, लेकिन सरकारी अधिकारियों ने बताया कि लगभग सभी सरकारी एजेंसियां हैकर्स की वजह से प्रभावित हुई हैं। संभव है कि इस नुकसान का जायजा अभी तक लिया जा रहा हो। 
 
चीनी सेना के लिए की गई हैकिंग : अमेरिकी जांचकर्ताओं का मानना है कि हैकर्स चीनी सेना के लिए काम करते रहे हैं और अमेरिकी  खुफिया जानकारी इकठ्ठा कर रहे हैं। हालांकि अभी तक हैकिंग के पीछे की वजह स्पष्ट नहीं हो पाई है। इसी साल अप्रैल में आई एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीन ने भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया के सरकारी कार्यालयों के कंप्यूटर हैक किए हैं। इंटरनेट सिक्योरिटी कंपनी ‘फायरआई’ ने अपनी रिसर्च में पाया था कि एक दशक से भी ज्यादा समय से भारत और दक्षिण एशियाई देशों के सरकारी ऑफिसों की जासूसी की जा रही है और इसके पीछे काफी हद तक चीन का हाथ है। चीन आर्थिक और सैन्य जानकारियां चुरा रहा है।
 
चीनी हैकरों ने सुरक्षा के लिहाज से अति संवेदनशील रक्षा अनुसंधान एवं विकास परिषद (डीआरडीओ) में हैकिंग की घटना सामने आई। समझा जाता है कि चीनी हैकरों ने डीआरडीओ के कंप्यूटरों को हैक कर कई संवेदनशील जानकारियां चुरा लीं। हालांकि रक्षा मंत्रालय की तरफ से सशस्त्र बलों से जुड़ी संवेदनशील जानकारियों को हैकिंग से बचाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। लेकिन इस बीमारी पर जितना काबू पाने की कोशिश की जा रही है, यह उतनी ही तेजी से बढ़ती जा रही है।
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