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Last Updated : शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021 (13:05 IST)

‘नोबेल सम्‍मान’ के लिए जब गुरनाह को कॉल आया तो वे इसे मजाक समझ रहे थे, फि‍र ऐसे हुआ यकीन

‘नोबेल सम्‍मान’ के लिए जब गुरनाह को कॉल आया तो वे इसे मजाक समझ रहे थे, फि‍र ऐसे हुआ यकीन - Abdulrazak Gurnah, nobel, nobel award, Tanzania
जब अब्‍दुलरजाक को नोबल पुरस्‍कार से सम्‍मानित करने की सूचना के लिए कॉल किया गया तो उस वक्‍त वे अपने किचन में थे। कॉल अटेंड करने के बाद उन्‍हें लगा कि कोई उनसे इस बारे में मजाक कर रहा है, उन्‍हें यकीन ही नहीं था कि उन्‍हें नोबल मिल सकता है। लेकिन जब बाद में घोषणा से संबंधि‍त कुछ औपचारिकताएं पूरी की गईं तो उन्‍हें यकीन होने लगा कि इस बार का नोबल उन्‍हें ही मिल रहा है।

ब्रिटेन में रहने वाले तंजानियाई लेखक अब्दुलरजाक गुरनाह का नाम गुरुवार को इस साल के साहित्य के नोबेल पुरस्कार के विजेता के रूप में घोषित किया गया। स्वीडिश एकेडमी ने कहा कि 'उपनिवेशवाद के प्रभावों को बिना समझौता किए और करुणा के साथ समझने' में उनके योगदान के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। गुरनाह 1993 के बाद यह पुरस्कार जीतने वाले पहले अश्वेत हैं। 1993 में टोनी मॉरिसन ने यह खिताब अपने नाम किया था।

जांजीबार में जन्मे और इंग्लैंड में रहने वाले लेखक अब्दुलरजाक गुरनाह यूनिवर्सिटी ऑफ केंट में प्रोफेसर रह चुके हैं। उनके उपन्यास 'पैराडाइज' को 1994 में बुकर पुरस्कार के लिए चयनित किया गया था।

यूनिवर्सिटी ऑफ केंट में उत्तर-उपनिवेशकाल के साहित्य के प्रोफेसर के रूप में सेवाएं देते हुए गुरनाम हाल ही में सेवानिवृत्त हुए। जांजीबार में 1948 में जन्मे गुरनाह 1968 में हिंद महासागरीय द्वीप में विद्रोह के बाद किशोर शरणार्थी के रूप में ब्रिटेन आ गए थे। उन्हें स्वीडिश एकेडमी ने जिस समय पुरस्कार के लिए चुने जाने की सूचना के लिए फोन किया, वह दक्षिण पूर्व ब्रिटेन में अपने घर में रसोई में थे। शुरू में उन्होंने इस फोन कॉल को एक मजाक समझा। बाद में जब इस सम्‍मान को लेकर कुछ औपचारिकताएं पूरी की गईं तब जाकर उन्‍हें भरोसा हुआ।

गुरनाह ने कहा कि उन्होंने अपने लेखन में विस्थापन तथा प्रवासन के जिन विषयों को खंगाला, वे हर रोज सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि वह 1960 के दशक में विस्थापित होकर ब्रिटेन आए थे और आज यह चीज पहले से ज्यादा दिखाई देती है। उन्होंने कहा, 'दुनियाभर में लोग मर रहे हैं, घायल हो रहे हैं। हमें इन मुद्दों से अत्यंत करुणा के साथ निपटना चाहिए।'

गुरनाह के उपन्यास ‘पैराडाइज’ को 1994 में बुकर पुरस्कार के लिए चयनित किया गया था। उन्होंने कुल 10 उपन्यास लिखे हैं। साहित्य के लिए नोबेल समिति के अध्यक्ष एंडर्स ओल्सन ने उन्हें ‘दुनिया के उत्तर-औपनिवेशिक काल के सर्व प्रतिष्ठित लेखकों में से एक’ बताया। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के तहत एक स्वर्ण पदक और एक करोड़ स्वीडिश क्रोनर (लगभग 11.4 लाख डॉलर राशि) प्रदान की जाएगी।
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