Last Modified: न्यूयॉर्क ,
गुरुवार, 30 अगस्त 2012 (17:47 IST)
महंगाई रोकने के लिए कुछ तो बलि देनी होगी
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रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव ने कहा है कि मुद्रास्फीति को स्वीकार्य स्तर तक नीचे लाने के प्रयासों के चलते आर्थिक वृद्धि के मोर्चे पर कुछ बलिदान तो करना ही होगा।
उन्होंने कहा कि आर्थिक वृद्धि को नुकसान पहुंचाए बिना मुद्रास्फीति को काबू में लाया जाए, रिजर्व बैंक के सामने यह बड़ी चुनौती है। कई बार केन्द्रीय बैंक की इस बात के लिए आलोचना की जाती है कि ब्याज दरों में वृद्धि और सख्त मौद्रिक नीति के बावजूद, मुद्रास्फीति की दर अभी भी ऊंची बनी हुई है और लगातार इसका दबाव बना हुआ है, जिससे आर्थिक वृद्धि को नुकसान पहुंच रहा है।
रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि इस आलोचना का यही जवाब है कि आर्थिक वृद्धि के मोर्चे पर कुछ बलिदान तो अवश्यंभावी है, मुद्रास्फीति को नीचे लाने के लिए हमें कुछ तो कीमत चुकानी होगी। हालांकि आर्थिक वृद्धि का यह नुकसान कुछ समय के लिए ही होगा।
सुब्बाराव ने यहां वैश्वीकरण के दौर में भारत- 'कुछ नीतिगत दुविधा' विषय पर एशिया सोसायटी को दिए अपने भाषण में कहा, आने वाले कुछ समय में, भारत की आर्थिक वृद्धि की बेहतर संभावनाओं को बनाए रखने के लिए निम्न और स्थाई मुद्रास्फीति आवश्यक है।
थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति जुलाई माह में 6.87 प्रतिशत रही। एक महीना पहले जून में यह 7.25 प्रतिशत पर थी। रिजर्व बैंक के 5 से 6 प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से यह अभी भी काफी ऊंची बनी हुई है।
सुब्बाराव ने कहा कि यदि रिजर्व बेंक ने सख्त मौद्रिक नीति नहीं अपनाई होती तो मुद्रास्फीति और ऊंची होती। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति की दर वर्ष 2010 में 11 प्रतिशत की ऊंचाई छूने के बाद जुलाई 2012 में सात प्रतिशत से नीचे आ गई है। (भाषा)