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देश के दस सबसे सुंदर किले

देश के दस सबसे सुंदर किले - top ten beautiful Indian fort
भारत के विभिन्न हिस्सों में प्राचीन काल में बनाए गए किले आज भी राजाओं, महाराजाओं, नवाबों की याद दिलाते हैं। ये अपने समय की प्रचलित सभ्यता, संस्कृति, भवन कला और उन निशानियों की याद दिलाते हैं जोकि आज भी इनमें मौजूद हैं। आक्रमणकारियों से बचने के लिए दुर्गम जगह पर किलों का निर्माण करवाना, इनके निर्माण में बच निकलने के गुप्त दरवाजों और हमला करने के लिए एक बड़ी सेना को रखने के लिए भी इनका इस्तेमाल होता था।

अपनी भव्यता और रहस्यमय बनावट के लिए भी इन किलों को प्राचीन काल के शासकों की दूरदर्शिता को याद किया जाता है। इन किलों की रहस्यमय दुनिया को समझने के लिए आज भी हजारों की संख्‍या में देशी-विदेशी पर्यटक सैर करने के लिए आते हैं।  


 
 
1. पन्हाला का किला : इस किले का बहुत ही समृद्ध इतिहास रहा है। पन्हाला का किला का महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित है जिसे 12वीं सदीं में राजा भोज ने बनवाया था। दुश्मन के हमलों से बचने के लिए इस किले को बहुत अधिक ऊंचाई पर बनाया गया था। अन्य किलों की तुलना में इस किले का आकार त्रिकोण जैसा है और इस पर बहुत सारे शासकों का अधिकार रहा है।

आदिलशाही के अधीन रहने के बाद इस किले को शिवाजी ने अपना मुख्यालय बना लिया था। महाराष्ट्र के अधिकतर किलों का निर्माण और पुनरोद्धार छत्रपति शिवाजी ने किया था। 1178 से 1209 ईस्वी के दौरान भोज द्वितीय के द्वारा निर्मित पन्हाला किले का अधिकांश अंदरूनी हिस्सा आज भी मजबूत हालत में है। 
 
छ‍त्रपति शिवाजी द्वारा बनाया गया यह दुर्ग आज भी पर्यटकों को आकर्षित करता ह...पढ़ें अगले पेज पर...
 
 

2. सिंधुदुर्ग : यह किला मुंबई से 400 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र के बीच में बनाया गया था। इस किले का निर्माण शिवाजी ने 1664 से 1667 के बीच किया था। यह किला अपनी खूबसूरती की वजह से आज भी पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है।

कर्टे द्वीप पर बने इस किले को 100 पुर्तगाली वास्तुविदों से बनवाया गया था। शिवाजी के शासनकाल में इस खास महत्व भी था। शिवाजी द्वारा सन 1664 में महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के मालवन तालुका के समुद्र तट से कुछ दूर अरब सागर में एक द्वीप पर निर्मित इस किले का नौसैनिक महत्व भी रहा है। यह मुंबई के दक्षिण में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में स्थित है।  
 
14वीं सदी में बना यह किला अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 
3. गोलकुंडा का किला : आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद से 11 किलोमीटर की दूरी पर बने इस किले का निर्माण काकतिया शासकों ने करवाया था। इसे भव्यता और सुंदर संरचना के कारण जाना जाता है। इसे आज भी हजारों की संख्या में पर्यटक देखने आते हैं। गोलकुंडा या गोलकोंडा दक्षिणी भारत में, हैदराबाद नगर से पांच मील दूर पश्चिम में स्थित एक दुर्ग तथा ध्वस्त नगर है। पूर्वकाल में यह कुतबशाही राज्य में मिलने वाले हीरे-जवाहरातों के लिए प्रसिद्ध था।
 
इस दुर्ग का निर्माण वारंगल के राजा ने 14वीं शताब्दी में कराया था। बाद में यह बहमनी राजाओं के हाथ में चला गया और मुहम्मदनगर कहलाने लगा। 1512 ई. में यह कुतुबशाही राजाओं के अधिकार में आया। फिर 1687 ई. में इसे औरंगजेब ने जीत लिया। यह ग्रेनाइट की एक पहाड़ी पर बना है जिसमें कुल आठ दरवाजे हैं और यह पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है। यहां के महलों तथा मस्जिदों के खंडहर अपने प्राचीन गौरव की कहानी सुनाते हैं। मूसी नदी दुर्ग के दक्षिण में बहती है। दुर्ग से लगभग आधा मील दूर उत्तर में कुतबशाही राजाओं के ग्रेनाइट पत्थर के मकबरे हैं जो टूटी-फूटी अवस्था में अब भी मौजूद हैं।
 
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4. कांगड़ा किला : यह किला हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है और इस किले का निर्माण कांगड़ा के शाही परिवार ने कराया था। यह किला दुनिया के सबसे पुराने किलों में से एक है और इसे देश के सबसे पुराने किलों में गिना जाता है। किले के भीतर ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर है और इसमें आज भी प्राचीन काल के शासकों की बहुत सी वस्तुओं को देखा जा सकता है। यह किला नगरकोट या कोट कांगड़ा के नाम से प्रसिद्ध है जो पुराने कांगड़ा नगर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और यह बाणगंगा और पाताल गंगा नदियों, जो किले के लिए खाई के रूप में काम करती हैं, के संगम पर खडी पहाड़ी के शीर्ष पर बना है। 
यह किला बहुत प्राचीन है। इस किले के भीतर वर्तमान अवशेष जैन और ब्राह्मणवादी मंदिरों के हैं, जो नौवीं-दसवीं शताब्दी के हो सकते हैं। इतिहास की पुस्तकों में इसका प्रारंभिक उल्लेख, 1009 ईसवी में मोहम्मद गजनी द्वारा किए गए आक्रमण के समय से है। बाद में मोहम्मद तुगलक और उसके उत्तराधिकारी फिरोजशाह तुगलक ने इस पर क्रमश: 1337 ईसवी और 1351 ईसवी में अपना कब्जा जमाया।
 
बाणगंगा और मांझी नदियों के ऊपर स्थित कांगड़ा, 500 राजाओं की वंशावली के पूर्वज राजा भूमचंद की 'त्रिगतरा' भूमि का राजधानी नगर था। कांगड़ा का किला धन-संपति के भंडार के लिए इतना प्रसिद्ध था कि मोहम्मद गजनी ने भारत में अपने चौथे अभियान के दौरान पंजाब को हराया और सीधे ही 1009 ईसवी में कांगड़ा पहुंचा था। राज्य के विशाल भवन जो राजाओं के लिए कभी चुनौती बने हुए थे, विशेष तौर पर सन 1905 में आए भूकंप के बाद खंडहरों में बदल गए थे। 
 
इस किले के प्रवेश मार्ग को बलुआ पत्थर से निर्मित मेहराब के कब्जों से जोड़े गए मोटे काष्ठ के तख्तों का एक बडा द्वार लगाकर सुरक्षित किया गया था। इसकी ऊंचाई लगभग 15 फुट है। इसका नाम रणजीतसिंह द्वार है। चट्टानों के बीच काटी गई एक खाई जो बाणगंगा और मांझी नदियों को जोड़ती है, बाहरी दुनिया से इस किले को पृथक करती है।
 
राव जोधा ने बनाया था यह किला... पढ़ें अगले पेज पर....
 
 

5. मेहरानगढ़ का किला : मेहरानगढ़ का किला राजस्थान के जोधपुर शहर में स्थित है। यह किला अतीत के मेहरानगढ़ राज्य के सबसे बड़े किलों में से एक है। इसे पथरीली पहाड़ी पर जमीन से 125 मीटर की ऊंचाई पर बनाया गया है। इस किले का निर्माण राव जोधा ने 14वीं सदी में करवाया था। यह किला राजस्थान में जोधपुर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 
इस किले का निर्माण सन 1459 में राव जोधा ने किया था जब उन्होंने अपनी राजधानी स्थानांतरित की थी। गुजरते समय के साथ साथ इसमें जोधपुर के अन्य शासकों ने कई परिवर्तन किए। किले के दूसरे दरवाजे पर आज भी पिछले युद्धों के दौरान बने तोप के गोलों के निशान मौजूद हैं। अंतिम संस्कार स्थल पर आज भी सिंदूर के घोल और चांदी की पतली वरक से बने हथेलियों के निशान पर्यटकों को उन राजकुमारियों और रानियों की याद दिलाते हैं जिन्होंने अपने पतियों के लिए जौहर या आत्मदाह किया था। 
 
यह किला 68 फीट चौड़ा और 117 फीट ऊंचा है जिससे आसपास के मैदानी इलाके को साफ तौर पर देखा जा सकता है। इस किले के सात दरवाजे हैं और इनमें सबसे मशहूर ‘जय पोल’ है। इस दरवाजे का निर्माण महाराजा मानसिंह ने जयपुर और बीकानेर की सेना पर विजय पाने के बाद करवाया था। एक अन्य दरवाजे ‘फतेह पोल’ को महाराजा अजीतसिंह ने मुगलों को पराजित करने के बाद बनवाया था। इसके आगे बरामदे में हथेलियों के निशान हैं जो चिता के स्थान की ओर जाते हैं। बाईं ओर कीरत सिंह सोढा की छतरी है। सोढा की मौत आमेर सेना से किले की रक्षा करते हुए हो गई थी। यह शानदार स्मारक जोधपुर के राठौड़ राजाओं की वीरता और निर्भयता की गवाही देता है। 
 
मेहरानगढ़ किले में लगे आकर्षक बलुआ पत्थर जोधपुर के कारीगरों की शानदार शिल्पकारी को दर्शाते हैं। मेहरानगढ़ किले में भव्य महल भी हैं, जैसे मोती महल। इसमें ‘श्रीनगर चैकी’ नाम का जोधपुर का सिंहासन भी है। फूल महल की छत पर सोने का महीन काम किया हुआ है। इसके अलावा यहां रंग महल और चंदन महल भी हैं। अन्य भवनों में उम्मेद विला जिसमें राजपूत शैली के लघु चित्र, अजीत विला जिसमें संगीत यंत्र और शाही वस्त्र प्रदर्शित हैं तथा मान विला आदि हैं।
 
वर्तमान में किले में मेहरानगढ़ किला संग्रहालय भी है जिसमें महल के अच्छी तरह से सजाए हुए कमरे और विला हैं, जहां शाही पालकी, लघु चित्र, फर्नीचर और ऐतिहासिक शस्त्रागार आदि हैं।
 
सोने की तरह दमकता है यह किला... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 

6. सोनार का किला : सोनार का किला राजस्थान के जैसलमेर में स्थित है। इस किले की खासियत यह है कि इस पर जैसे ही सुबह सूरज की किरणें पड़ती हैं, यह सोने की तरह दमकता है, इसलिए इसे सोनार का किला कहते हैं। वैसे रेगिस्तान के बीच में स्थित होने से इसे रेगिस्तान का दुर्ग भी कहा जाता है। यह दुनिया के बड़े किलों में से एक है। इसमें चारों ओर 99 गढ़ बने हुए हैं। 
 
1156 ईस्वी में भाटी राजपूत शासक रावल जैसल ने इसे जैसलमेर के शुष्क रेगिस्तान में थार के ताज की तरह बनवाया था। यह किला कम ऊंचाई की विस्तारित पहाड़ी त्रिकुटा श्रेणी पर स्थित है जो आमतौर पर शहर से लगभग 30 मीटर की ऊंचाई पर है। इस दुर्ग की विशालता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां दुर्ग के चारों ओर 99 गढ़ बने हुए हैं। इनमें से 92 गढ़ों का निर्माण 1633 से 1647 के बीच हुआ था।
 
जैसलमेर के किले का मुख्य आकर्षण गोपा चौक स्थित किले का प्रथम प्रवेश द्वार ही है। यह विशाल और भव्य द्वार पत्थर पर की गई नक्काशी का शानदार नमूना है। अपने स्थापत्य से यह द्वार आने वालों को कुछ देर के लिए ठिठका देता है। दूसरा आकर्षण दुर्ग के अंतिम द्वार हावड़पोल के पास स्थित दशहरा चौक है जो इस दुर्ग का खास दर्शनीय स्थल है। यहां पर्यटक खरीददारी का आनंद ले सकते हैं और थोड़ विश्राम कर सकते हैं। दशहरा चौक में स्थानीय शिल्प और हस्तकला की बेहद खूबसूरत वस्तुओं की छोटी-छोटी दुकानें हैं जिन पर कांच जड़े वस्त्र, चादरें, फ्रेम और कई अन्य कलात्मक वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। हावड़पोल के बाहर की ओर भी कई दुकानें स्थित हैं।
 
राजमहल : जैसलमेर किले में एक अन्य पर्यटन आकर्षण है राजमहल। यह महल किले के अंदरूनी हिस्से में बना हुआ है। किसी समय यह महल जैसलमेर के राजा महाराजाओं के निवास का मुख्य स्थल हुआ करता था। इस वजह से यह दुर्ग का सबसे खूबसूरत हिस्सा भी है। वर्तमान में इस महल के एक हिस्से को म्यूजियम और हैरिटेज सेंटर के रूप में तब्दील कर दिया गया है।
 
म्यूजियम में प्रवेश शुल्क भारतीयों के लिए 50 रुपए और विदेशियों के लिए 300 रुपए है। यह म्यूजियम अप्रैल से अक्टूबर तक सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक पर्यटकों के देखने के लिए खोला जाता है। इसके अलावा नवंबर से मार्च तक इसे सुबह 9 से शाम 6 बजे तक के लिए रोजाना खोला जाता है।
 
यह मध्य भारत के सबसे सुरक्षित किलों में से एक है... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 
7. ग्वालियर का किला : मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में स्थित इस किले का निर्माण राजा मानसिंह तोमर ने करवाया था। यह उत्तर और मध्य भारत के सर्वाधिक सुरक्षित किलों में से एक है। सुंदर स्थापत्य कला, दीवारों और प्राचीरों पर बेहतरीन नक्काशी, रंग-रोगन और शिल्प के कारण यह किला बेहद खूबसूरत दिखाई देता है। ग्वालियर का किला ग्वालियर शहर का प्रमुखतम स्मारक है। यह किला गोपांचल नामक पर्वत पर स्थित है। किले के पहले राजा का नाम सूरज सेन था, जिनके नाम का प्राचीन 'सूरज कुण्ड' किले में स्थित है।
 
लाल बलुए पत्थर से बना यह किला शहर की हर दिशा से दिखाई देता है। एक ऊंचे पठार पर बने इस किले तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। एक ग्वालियर गेट कहलाता है एवं इस रास्ते सिर्फ पैदल चढ़ा जा सकता है। गाड़ियां उरवाई गेट नामक रास्ते से चढ़ सकती हैं और यहां एक बेहद ऊंची चढ़ाई वाली पतली सड़क से होकर जाना होता है। इस सड़क के आसपास की बड़ी-बड़ी चट्टानों पर जैन तीर्थंकरों की अतिविशाल मूर्तियां बेहद खूबसूरती और बारीकी से गढ़ी गई हैं।
 
किले की तीन सौ पचास फुट उंचाई इस किले के अविजित होने की गवाह है। इस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने मौजूद हैं। पन्द्रहवीं शताब्दी में निर्मित गूजरी महल उनमें से एक है जो राजा मानसिंह और गूजरी रानी मृगनयनी के गहन प्रेम का प्रतीक है। इस महल के बाहरी भाग को उसके मूल स्वरूप में राज्य के पुरातत्व विभाग ने सुरक्षित रखा है किन्तु आंतरिक हिस्से को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया है जहां दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां रखी गई हैं जो कार्बन डेटिंग के अनुसार प्रथम शती की हैं। ये दुर्लभ मूर्तियां ग्वालियर के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं।
 
भारत के सर्वाधिक दुर्भेद्य किलों में से एक यह विशालकाय किला कई हाथों से गुजरा। इसे बलुआ पत्थर की पहाड़ी पर निर्मित किया गया है और यह मैदानी क्षेत्र से 100 मीटर ऊंचाई पर है। किले की बाहरी दीवार लगभग 2 मील लंबी है और इसकी चौड़ाई एक किलोमीटर से लेकर 200 मीटर तक है। किले की दीवारें एकदम खड़ी चढ़ाई वाली हैं। यह किला उथल-पुथल के युग में कई लड़ाइयों का गवाह रहा है।
 
यहां दफन हैं राजपूतों के शौर्य की कई कहानियां... पढ़ें अगले पेज पर...
 

8. चित्तौडगढ़ का किला : राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित यह किला 700 एकड़ जमीन में फैला हुआ है। यह किला भारत के राजपूतों का गौरव है। यहां से कई राजपूत राजाओं ने मुगलों के खिलाफ लड़ाइयां लड़ी थीं। जमीन से 500 फुट की ऊंची पहाड़ी पर बना यह किला बेराच नदी के किनारे स्थि‍त है। 7वीं सदी से 16वीं सदी तक यह राजपूत वंश का महत्वतपूर्ण गढ़ हुआ करता था।
 
प्राचीन चित्रकूट दुर्ग या चित्‍तौड़गढ़ किला राजपूत शौर्य के इतिहास में गौरवपूर्ण स्‍थान रखता है। यह किला 152 मीटर ऊंची पहाड़ी पर खड़ा है तथा ऐसा कहा जाता है कि 7वीं शताब्‍दी ई. में मोरी (मौर्य) राजवंश के चित्रांगद द्वारा इसका निर्माण करवाया गया था। 
यह कई राजवंशों के शासन का साक्षी रहा है जैसे:-
मोरी या मौर्य (7वीं -8वीं शताब्‍दी ई.)
प्रतिहार      (9वीं -10वीं शताब्‍दी ई.)
परमार       (10वीं -11वीं शताब्‍दी ई.)
सोलंकी      (12वीं शताब्‍दी ई.) और अंत में
गुहिलोत या सिसोदिया वंश।  
 
किले के लम्‍बे इतिहास के दौरान इस पर तीन बार आक्रमण किए गए। पहला- 1303 में अलाऊद्दीन खिलजी द्वारा, दूसरा- 1535 में गुजरात के बहादुर शाह द्वारा तथा तीसरा- 1567-68 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा और प्रत्‍येक बार यहां जौहर किया गया। इसकी प्रसिद्ध स्‍मारकीय विरासत की विशेषता इसके विशिष्‍ट मजबूत किले, प्रवेशद्वार, बुर्ज, महल, मंदिर, दुर्ग तथा जलाशय स्वयं बताते हैं जो राजपूत वास्‍तुकला के उत्‍कृष्‍ट नमूने हैं।
 
इस किले के सात प्रवेश द्वार हैं। प्रथम प्रवेश द्वार पैदल पोल के नाम से जाना जाता है जिसके बाद भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोली पोल, लक्ष्‍मण पोल तथा अंत में राम पोल है जो 1459 में बनवाया गया था। किले की पूर्वी दिशा में स्‍थित प्रवेशद्वार को सूरज पोल कहा जाता है।
 
चित्तौड़ किले में यह स्थान भी आकर्षित करते हैं... पढ़ें अगले पेज पर....
 
 

कुम्भा महल : महल का नाम महाराणा कुम्‍भा (1433-68) के नाम पर पड़ा है जिन्‍होंने पुराने महल में बड़े स्‍तर पर मरम्‍मत करवाई थी। महल में बड़ी पोल तथा त्रिपोलिया नामक द्वारों से प्रवेश किया जाता है जो आगे खुले आंगन में सूरज गोखरा, जनाना महल, कंवरपाद के महल की तरफ जाता है। इस महल परिसर के दक्षिणी भाग में पन्‍नाधाई तथा मीराबाई के महल स्‍थित हैं।
पद्मिनी महल : राणा रत्‍नसिंह की खुबसूरत रानी रानी पद्मिनी के नाम पर इसका नाम रखा गया है। यह महल पद्मिनी तालाब की उत्‍तरी परिधि पर स्‍थित है। ऐसा कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी के ख्‍याति प्राप्‍त सौन्‍दर्य को एक शीशे के माध्‍यम से यहीं से देखा था तथा बाद में किले पर आक्रमण किया था। जल महल के रूप में विख्‍यात एक तीन मंजिला मंडप इस तालाब के बीच में खड़ा है।
 
रत्‍नसिंह महल : रत्‍नेश्‍वर तालाब के साथ स्‍थित यह महल राणा रत्‍नसिंह द्वितीय  (1528-31) का है। योजना में यह आयताकार है तथा इसमें एक आंगन है जो कक्षों तथा एक मंडप जिसकी बॉलकनी दूसरी मंजिल के पूर्वी भाग पर है, से घिरा है।
 
फतेह प्रकाश महल : यह खूबसूरत दो मंजिला महल महाराजा फतेह सिंह (1884-30 ई.) द्वारा बनवाया गया था। यह एक ऐसा महल है जिसके चारों कोनों पर एक-एक बुर्ज है जो गुम्‍बददार छतरियों से सुसज्‍जित हैं। यह महल आधुनिक भारतीय वास्‍तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है तथा वर्तमान में इसमें एक संग्रहालय स्थित है। तुलनात्‍मक रूप से कम महत्‍व की अन्‍य हवेलियों में अल्‍हा कब्र, फत्‍ता तथा जयमल, खातन का महल तथा पुरोहित जी की हवेली शामिल हैं।
 
कालिका माता मंदिर : राजा मानभंग द्वारा 8वीं शताब्‍दी में निर्मित यह मंदिर मूल रूप से सूर्य को समर्पित है जैसा कि इस मंदिर के द्वार पाखों के केन्‍द्र में उकेरी गई सूर्य की मूर्ति से स्‍पष्‍ट है। इस समय कलिका माता या काली देवी की पूजा मंदिर की प्रमुख देवी के रूप में होती है।
 
समाधीश्‍वर मंदिर : भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर भोज परमार द्वारा 11वीं शताब्‍दी के प्रारंभ में बनवाया गया था। बाद में मोकल ने 1428 ई. में इसका जीर्णोद्धार किया। 
 
कुंभास्‍वामी मंदिर : मूल रूप से वराह (विष्‍णु का शूकर अवतार) को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्‍दी में करवाया गया था तथा महाराणा कुम्‍भा द्वारा इसका बड़े पैमाने पर जीर्णोद्धार किया गया। मंदिर के सामने एक छतरी के नीचे गरुड़ की मूर्ति है। उत्‍तर में एक लघु मंदिर है जिसे मीरा मंदिर के नाम से जाना जाता है।
 
सात बीस देवरी : स्‍थानीय रूप से सात बीस देवरी के नाम से प्रसिद्ध, 27 जैन मंदिरों का यह समूह एक अहाते के बीच स्‍थित है जिसे 1448 ई. में बनवाया गया था। 
 
कीर्ति स्‍तंभ : यह शानदार मीनार जिसे स्‍थानीय रूप से विजय स्‍तंभ के रूप में जाना जाता है, महाराणा कुम्‍भा द्वारा 1448 ई. में बनवाया गई थी। भगवान विष्‍णु को समर्पित यह मीनार 37.19 मीटर ऊंची है तथा नौ मंजिलों में विभक्‍त है। चित्‍तौड़ के शासकों के जीवन तथा उपलब्‍धियों का विस्‍तृत क्रमवार लेखा-जोखा सबसे ऊपर की मंजिल में उत्‍कीर्ण है जिसे राणा कुम्‍भा की सभा के विद्वान, अत्री ने लिखना शुरू किया था तथा बाद में उनके पुत्र, महेश ने इसे पूरा किया।
 
जैन कीर्ति स्‍तंभ : 24.50 मीटर ऊंचाई वाला यह छह मंजिला टॉवर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। इसका निर्माण श्रेष्‍ठी जीजा द्वारा 1300 ई. में करवाया गया था।
 
गौमुख कुंड : समाधीश्‍वर मंदिर के दक्षिण में स्‍थित तथा पश्‍चिमी परकोटे से सटा गौमुख कुंड एक विशाल, गहरा, शैलकृत जलाशय है जिसका आकार आयताकार है। एक छोटी प्राकृतिक गुफा से बिल्‍कुल स्‍वच्‍छ जल की भूमिगत धारा बारह महीने गोमुख (गाय के मुख के आकार) से बहती है इसलिए इसका नाम गौमुख है।
 
राजा अनंगपाल का यह किला भी कम मशहूर नहीं हैं... पढ़ें अगले पेज पर...
 
 

9. लाल किला : लाल किला दिल्ली का एक विश्व प्रसिद्ध किला है। इसका निर्माण तोमर राजा अनंगपाल ने 1060 में करवाया था। बाद में पृथ्वीराज चौहान ने इसे फिर से बनवाया और शाहजहां ने इसे तुर्क शैली में ढलवाया। लाल बलुआ पत्थरों और प्राचीर के कारण इसे लाल किला कहा जाता है। भारत के लिए यह किला ऐतिहासिक महत्व रखता है। भारत के प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर पर ही 15 अगस्त को तिरंगा फहराते हैं। 
 
इसका नाम लाल किला इसलिए पड़ा क्‍योंकि यह लाल पत्‍थरों से बना है और यह दुनिया के सर्वाधिक प्रभावशाली भव्‍य महलों में से एक है। भारत के इतिहास का भी इस किले के साथ काफी नजदीकी से जुड़ा है। यहीं से ब्रिटिश व्‍यापारियों ने अंतिम मुगल शासक, बहादुर शाह जफर को पद से हटाया था और तीन शताब्दियों से चले आ रहे मुगल शासन का अंत हुआ था। यहीं के प्राचीर से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, पंडित जवाहर लाल नेहरू ने घोषणा की थी कि अब भारत ब्रिटिश राज से स्‍वतंत्र है।
 
मुगल शासक, शाहजहां ने 11 वर्ष तक आगरा से शासन करने के बाद तय किया कि राजधानी को दिल्‍ली लाया जाए और यहां 1618 में लाल किले की नींव रखी गई। वर्ष 1647 में इसके उद्घाटन के बाद महल के मुख्‍य कक्ष भारी पर्दों से सजाए गए और चीन से रेशम और टर्की से मखमल लाकर इसकी सजावट की गई। लगभग डेढ़ मील के दायरे में यह किला अनियमित अष्‍टभुजाकार आकार में बना है और इसके दो प्रवेश द्वार हैं, लाहौर और दिल्‍ली गेट।
 
लाहौर गेट से दर्शक छत्ता चौक में पहुंचते हैं, जो एक समय शाही बाजार हुआ करता था और इसमें दरबारी जौहरी, लघु चित्र बनाने वाले चित्रकार, कालीनों के निर्माता, इनेमल के कामगार, रेशम के बुनकर और विशेष प्रकार के दस्‍तकारों के परिवार रहा करते थे। शाही बाजार से एक सड़क नवाब खाने जाती है, जहां दिन में पांच बार शाही बैंड बजाया जाता था। यह बैंड हाउस मुख्‍य महल में प्रवेश का संकेत भी देता है और शाही परिवार के अलावा अन्य सभी अतिथियों को यहां झुक कर जाना होता है।
 
दीवान ए आम लाल किले का सार्वजनिक प्रेक्षा गृह है। सेंड स्‍टोन से निर्मित शेल प्‍लास्‍टर से ढका हुआ यह कक्ष हाथी दांत से बना हुआ लगता है, इसमें 80 गुणा 40 फीट का हॉल स्‍तंभों द्वारा बांटा गया है। मुगल शासक यहां दरबार लगाते थे और विशिष्ट अतिथियों तथा विदेशी व्‍यक्तियों से मुलाकात करते थे। दीवान ए आम की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी पिछली दीवार में लता मंडप बना हुआ है जहां बादशाह समृद्ध पच्‍चीकारी और संगमरमर के बने मंच पर बैठते थे। इस मंच के पीछे इटालियन पिएट्रा ड्यूरा कार्य के उत्‍कृष्‍ट नमूने बने हुए हैं।
 
किले का दीवाने खास निजी मेहमानों के लिए था। शाहजहां के सभी भवनों में सबसे अधिक सजावट वाला 90 गुणा 67 फीट का दीवाने खास सफेद संगमरमर का बना हुआ मंडप है जिसके चारों ओर बारीक तराशे गए खम्‍भे हैं। कार्नेलियन तथा अन्‍य पत्‍थरों के पच्‍चीकारी मोज़ेक कार्य के फूलों से सजा दीवाने खास एक समय प्रसिद्ध मयूर सिंहासन के लिए भी जाना जाता था, जिसे 1739 में नादिरशाह ने हथिया लिया था जिसकी कीमत उस समय 6 मिलियन स्‍टर्लिंग थी।
 
अंत में जानिए किसे किया यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल...
 
 

10 आगरा का किला : उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थित इस किले को यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है। पहले यह किला राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान के पास था, जिस पर बाद में महमूद गजनवी ने कब्जा कर लिया। इसी किले में भारत के मुगल शासक बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब रहा करते थे और भारत पर शासन किया करते थे। अपने वास्तुशिल्प, नक्काशी और सुंदर रंग-रोगन के साथ इसकी भव्यता ने इसे देश के सभी किलों में से सबसे बेहतरीन बनाया है।
इस किले की चहारदीवारी के भीतर एक पूरा नगर शामिल है इनमें कई उत्कृष्ट इमारतें हैं जिनमें प्रमुख हैं सफेद संगमरमर की मोती सी दमकती मोती मस्जिद, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, मुसम्मन बुर्ज (जहां 1666 में शाहजहां का इंतकाल हुआ) जहांगीर पैलेस, खास महल और शीश महल।
 
मुगल शासक बादशाह अकबर ने आगरा के किले के निर्माण की शुरुआत आगरा को अपनी राजधानी बनाने के आठ साल बाद 1573 में की थी, लेकिन किले का मौजूदा रूप-स्वरूप बादशाह अकबर के पड़पोते शाहजहां के दौर में सामने आ सका। 
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