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Last Updated : शनिवार, 4 जून 2016 (18:42 IST)

'जैविक घड़ी' का रहस्य जानकर चौंक जाएंगे आप

'जैविक घड़ी' का रहस्य जानकर चौंक जाएंगे आप - Biological body clock
धरती के घूमने पर अंगों की कार्यप्रणाली बदलती रहती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक पृथ्वी 24 घंटे अपनी धुरी पर घूमती रहती है। इससे मनुष्य शरीर के आंतरिक रसायन बुरी और अच्छी तरह प्रभावित होते रहते हैं। इस दौरान दिमाग, लिवर, दिल और कोशिकाओं के काम करने का तरीका तेजी से बदलता रहता है। वैज्ञानिक गहराई से अध्ययन कर रहे हैं ताकि समय और अंगों के काम करने के तरीके के संबंध में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल की जा सके, लेकिन भारतीय ऋषियों ने इसे पहले ही खोज लिया था।
हमारे पूर्वजों ने सभ्यता के विकास के प्रारंभ में ही समय के महत्व को समझ लिया था। उन्होंने सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों एवं नक्षत्रों की गतिविधियों द्वारा समय का हिसाब-किताब रखने का एक विज्ञान विकसित किया। उन्होंने घड़ी के आविष्कार के पूर्व ही समय को भूत, भविष्य एवं वर्तमान, दिन-रात, प्रात:काल, मध्यकाल, संध्याकाल, क्षण, प्रहर आदि में बांटकर सोने-जागने, खाने-पीने, काम-आराम, मनोरंजन आदि सभी क्रियाकलापों को समयबद्ध तरीके से करने पर बल देकर संपूर्ण दिनचर्या को धार्मिक परंपरा में बांध दिया था। हमारे ऋषियों और आयुर्वेदाचार्यों ने जो जल्दी सोने-जागने एवं आहार-विहार की बातें बताई हुई हैं, उन पर अध्ययन व खोज करके आधुनिक वैज्ञानिक और चिकित्सक अपनी भाषा में उसका पुरजोर समर्थन कर रहे हैं।
 
आपने नाम सुना होगा कलाई घड़ी, दीवार घड़ी, इलेक्ट्रॉनिक घड़ी और इलेक्ट्रॉनिक क्वार्ट्ज घड़ियां आदि का, लेकिन 'जैविक घड़ी' का नाम आपने शायद ही सुना होगा। दरअसल, यह घड़ी आपके भीतर ही होती है। इस घड़ी के भी 3 प्रकार हैं- एक है शारीरिक समय चक्र और दूसरा मानसिक समय चक्र और तीसरा आत्मिक समय चक्र। यहां हम बात करेंगे शारीरिक समय चक्र की जिसे 'जैविक घड़ी' कहा जाता है।
 
प्रत्येक व्यक्ति का जन्म, जीवन और मृत्यु समय तय है। यह उसने खुद ही प्रकृति के साथ मिलकर तय किया है। हालांकि इसे समझना छोड़ा मुश्किल है। सिर्फ यह समझें कि प्रकृति की अपनी एक घड़ी है, जो संपूर्ण धरती के पेड़-पौधों, प्राणी जगत और मनुष्यों पर लागू होती है। प्रत्येक जीव-जगत उस घड़ी अनुसार ही कार्य करता है, लेकिन मानव ने उसके अनुसार कार्य करना ही छोड़ दिया है।
 
प्रकृति ने हमें यह जो घड़ी दी है वह हमें दिखती तो नहीं है, लेकिन अपना काम सुनिश्चित रूप से निरंतर करती रहती है। प्रकृति में सभी जीव अपने बाह्य एवं आंतरिक वातावरण में हो रहे इन दैनिक, मासिक तथा वार्षिक परिवर्तनों के प्रति सचेत रहते हैं, लेकिन मानव नहीं। वातावरण में होने वाले इन परिवर्तनों की समय-सारिणी के अनुरूप ही उनकी यह आंतरिक 'जैविक घड़ी' शरीर के विभिन्न क्रियाकलापों का संचालन करती है।
 
सूर्य के उदयकाल की शुरुआत से सूर्यास्त के बाद तक और फिर सूर्यास्त के बाद से सूर्य उदय के काल तक समय एक चक्र की भांति चलता रहता है और उसी के अनुसार शरीर भी जागता, जीता और सोता रहता है। इस दौरान शरीर में उसी तरह परिवर्तन होते रहते हैं, जैसे कि प्रकृति में होते रहते हैं। प्रत्येक प्राणी सूर्य उदय के पूर्व उठ जाता है लेकिन मानव सोया रहता है। बिजली के आविष्कार के बाद तो मानव की संपूर्ण दिनचर्या ही बदल गई है। सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है और उसी के उदय के साथ हमारे शरीर का तापमान बढ़ता और उसके अस्त के बाद घटता जाता है।
 
जिस तरह सूर्य उदय और अस्त हो रहा है उसी तरह चन्द्र भी उदय और अस्त हो रहा है। मंगल, शुक्र, शनि, बुध और बृहस्पति भी उदय और अस्त हो रहे हैं। सभी के उदय और अस्त होने के बीच में जो एक छाया काल आता है, उसे कुछ लोग राहु और केतु का काल कहते हैं और इसका सबसे ज्यादा असर धरती के ध्रुवों पर होता है। हालांकि राहु और केतु की ज्योतिष में अलग व्याख्या है।
 
इस संपूर्ण चलायमान जगत के साथ ही व्यक्ति की प्रकृति जुड़ी हुई है और उसी के आधार पर उसकी आंतरिक 'जैविक घड़ी' निर्मित हुई है। प्रकृति ने खुद ही व्यक्ति के सोने-जागने, खाने-पीने और अन्य क्रियाएं करने का समय निर्धारण कर रखा है, लेकिन मनुष्य उस समय के विपरीत कार्य करता है।
 
सभी का प्राकृतिक समय निर्धारित :
सभी पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों व अन्य प्राणियों की ‍दिनचर्या आधारित है प्राकृतिक रूप से निर्मित जैविक घड़ी पर। पेड़-पौधों में निश्चित समय पर फूल एवं फल लगना, बसंत के समय पतझड़ में पुरानी पत्तियों का गिरना, पौधों का नई कोंपलें धारण करना, समय पर ही बीज विशेष का अंकुरण होना- ये सब जैविक घड़ी की सक्रियता का परिणाम हैं। विज्ञान इस बात को साबित कर चुका है कि इंसानों की तरह पेड़-पौधे भी रात और दिन पहचानते हैं।
 
प्रत्येक वर्षानुसार मनुष्य के शरीर में भी पतझड़, वसंत और बहार आती रहती है। सभी मौसम और दिन-रात के अनुसार शरीर को समयानुसार प्राकृतिक निद्रा, जागरण और पोषण की जरूरत होती है। यदि ऐसा संभव नहीं होता है तो शरीर रोगी बन जाता है। 
 
कुछ लोग जब देर से सोते या उठते हैं, तो उनकी 'जैविक घड़ी' गड़बड़ा जाती है। ऐसे में वे रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। उनमें आलस्य, अपच, कब्ज, निराशा, क्रोध, चिढ़चिढ़ापन आदि शारीरिक और मानसिक रोग प्रमुख रूप से रहते हैं। आधुनिक दौर की इस भागमभागभरी जिंदगी में लोगों की अपनी 'जैविक घड़ी' भी गड़बड़ाती जा रही है। परिणाम- अनिद्रा, उद्विग्नता, हृदय एवं तरह-तरह के मानसिक रोग।
 
आओ जानते हैं कि प्राकृतिक रूप से हमारा शरीर किस तरह से कार्य करता है और इस 'जैविक घड़ी' के वैज्ञानिक सत्य को... 
 
 

'जैविक घड़ी' का वैज्ञानिक सत्य : धरती के सारे जीवधारियों के शरीर की आंतरिक 'जैविक घड़ी' बिलकुल एक ही पैटर्न पर काम करती है। 24 घंटे काम करने वाली इस घड़ी के मैकेनिज्म के बारे में धरती पर मिल रहे प्राचीनकाल के शैवालों से इस बारे में जानकारी मिली है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के भारतीय मूल के युवा वैज्ञानिक अभिषेक रेड्डी ने पता लगाया कि किसी भी जीवधारी की कोशिकाओं को 24 घंटे संचालित करने वाली घड़ी का मैकेनिज्म एक-सा रहता है।
 
उन्होंने पता लगाया कि पृथ्वी पर करोड़ों सालों से जीवधारियों की 'जैविक घड़ी' का पैटर्न एक ही तरह का पाया गया है। जिन लोगों की नियमित दिनचर्या नहीं होती, उनकी 'जैविक घड़ी' का मैकेनिज्म बिगड़ जाता है। इस रिसर्च से मालूम हुआ है कि मनुष्यों की दिनचर्या हजारों सालों से एक जैसी है और उसका कारण उसके भीतर संचालित हो रही 'जैविक घड़ी' है।
 
शोधानुसार मनुष्य में 'जैविक घड़ी' का मूल स्थान उसका मस्तिष्क है। मस्तिष्क हमें जगाता और मस्तिष्क ही हमें सुलाता है। औसतन हम 1 मिनट में 15 से 18 बार सांस लेते हैं तथा हमारा हृदय 72 बार धड़कता है। यदि यह औसत गड़बड़ाता है तो शरीर रोगी होने लगता है। इसी के आधार पर व्यक्ति के सोचने-समझने की दशा-दिशा, तर्क-वितर्क, निर्णय-क्षमता एवं व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि हिन्दू धर्म में ध्यान और प्रार्थना को सबसे उत्तम माना गया है।
 
वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य के शरीर में अनुमानित 60 हजार अरब से 1 लाख अरब जितने कोश होते हैं और हर सेकंड 1 अरब रासायनिक संक्रियाएं होती हैं। उनका नियंत्रण सुनियोजित ढंग से किया जाता है और उचित समय पर हर कार्य का संपादन किया जाता है। सचेतन मन द्वारा शरीर के सभी संस्थानों को नियत समय पर क्रियाशील करने के आदेश मस्तिष्क की पिनियल ग्रंथि द्वारा स्रावों (हार्मोन्स) के माध्यम से दिए जाते हैं। उनमें मेलाटोनिन और सेरोटोनिन मुख्य हैं जिनका स्राव दिन-रात के कालचक्र के आधार पर होता है।
 
यदि किसी वजह से इस प्राकृतिक शारीरिक कालचक्र या 'जैविक घड़ी' में विक्षेप होता है तो उसके कारण भयंकर रोग होते हैं। इस चक्र के विक्षेप से सिरदर्द व सर्दी से लेकर कैंसर जैसे रोग भी हो सकते हैं। अवसाद, अनिद्रा जैसे मानसिक रोग तथा मूत्र-संस्थान के रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, हृदयरोग जैसे शारीरिक रोग भी हो सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार उचित भोजनकाल में पर्याप्त भोजन करने वालों की अपेक्षा अनुचित समय कम भोजन करने वाले अधिक मोटे होते जाते हैं और इनमें मधुमेह की आशंका बढ़ जाती है। 'जैविक घड़ी' के गड़बड़ाने से व्यक्ति के भीतर की प्रतिरोधक क्षमता में कमी आने लगती है।
 
'जैविक घड़ी' के अनुसार किस समय कौन-सा अंग होता है सक्रिय, जानिए रोचक तथ्य...
 

'जैविक घड़ी' के अनुसार हम रात्रि 2 बजे गहरी नींद में होते हैं। प्रात: 4.30 बजे हमारे शरीर का तापमान न्यूनतम होता है। 6.45 बजे रक्तचाप में बढ़ोतरी शुरू होती है और 7.30 के बाद इसमें गिरावट शुरू हो जाती है।
सुबह 3 से 5 बजे के बीच:-
इस समय में फेफड़े क्रियाशील रहते हैं। यदि हम इस काल में उठकर गुनगुना पानी पीकर थोड़ा खुली हवा में घूमते या प्राणायाम करते हैं तो फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है, क्योंकि इस दौरान उन्हें शुद्ध और ताजी वायु मिलती है। 
 
सुबह 5 से 7 बजे के बीच:-
प्रात: 5 से 7 बजे के बीच बड़ी आंत क्रियाशील रहती है अत: इस बीच मल त्यागने का समय होता है। जो व्यक्ति इस वक्त सोते रहते हैं और मल त्याग नहीं करते हैं उनकी आंतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।
 
सुबह 7 से 9 और 9 से 11 बजे के बीच:-
सुबह 7 से 9 बजे आमाशय की क्रियाशीलता और 9 से 11 तक अग्न्याशय एवं प्लीहा क्रियाशील रहते हैं। इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं अत: करीब 9 से 1 बजे का समय भोजन के लिए उपयुक्त है। इस समय अल्पकालिक स्मृति सर्वोच्च स्थिति में होती है तथा एकाग्रता व विचारशक्ति उत्तम होती है। अत: यह तीव्र क्रियाशीलता का समय है।
 
दोपहर 11 से 1 बजे के बीच:-
दोपहर 11 से 1 बजे के बीच के समय में ऊर्जा का प्रवाह हृदय में प्रवाहित होता है इसीलिए यह क्रियाशील रहता है। दोपहर 12 बजे के आसपास सभी प्राथमिक, उचित और मांगलिक कार्य निपटा लेना चाहिए। भारतीय संस्कृति में इस समय करुणा, दया, प्रेम आदि जैसी भावनाएं एवं संवेदनाओं को विकसित करने के लिए मध्याह्न-संध्या करने का विधान है।
 
दोपहर 1 से 3 के बजे के बीच:- 
दोपहर 1 से 3 बजे के बीच छोटी आंत सक्रिय होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आंत की ओर ढकेलना होता है। इस समय पानी पीने का महत्व है। ऐसा करने से त्याज्य पदार्थ को आगे बड़ी आंत में जाने में सहायता मिलती है।
 
इस समय यदि आप चाय पीते हैं तो उससे नुकसान ही होगा और यदि इस समय आप भोजन करते या सोते हैं तो पोषक आहार रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होगा और इससे शरीर रोगी और दुर्बल बन जाएगा। 
 
दोपहर 3 से 5 बजे के बीच:-
दोपहर 3 से 5 बजे के बीच मूत्राशय की सक्रियता का काल रहता है। मूत्र का संग्रहण करना मूत्राशय का कार्य है। 2-4 घंटे पहले पीया गया जल मूत्र में बदल जाता है इसलिए इस समय मूत्रत्याग की इच्छा होती है।
 
शाम 5 से 7 बजे के बीच का समय:-
इस समय शरीर के गुर्दों की एयर विशेष प्रवाहित होने लगती है। इसका मतलब कि सुबह लिए गए भोजन की पाचन क्रिया पूर्ण हो जाती है अत: इस काल में (सायं भुक्त्वा लघु हितं- अष्टांगसंग्रह) हल्का भोजन कर लेना चाहिए। शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल में) भोजन न करें। जैन मतावलंबी इस नियम का अभी भी पालन करते हैं और जो हिन्दू जानकार हैं वे भी इसी नियम से चलते हैं।
 
सुश्रुत संहिता के अनुसार 'न संध्ययो: भुत्र्जीत' अर्थात संध्याकाल में भोजन नहीं करना चाहिए। 'न अति सायं अन्नं अश्नीयात' (अष्टांगसंग्रह) सायंकाल (रात्रिकाल) में बहुत विलंब करके भोजन वर्जित है। देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है, यह अनुभवगम्य है। सुबह भोजन के 2 घंटे पहले तथा शाम को भोजन के 3 घंटे दूध पी सकते हैं।
 
रात्रि 7 से 9 बजे के बीच:-
अग्न्याशय, गुर्दे सक्रिय रहते हैं। इसके अलावा इस समय मस्तिष्क विशेष सक्रिय रहता है अत: प्रात:काल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है। शाम को 7.12 बजे दीप जलाकर प्रार्थना करना चाहिए और उसके बाद शयन में जाने से पूर्व स्वाध्याय करना चाहिए।
 
रात्रि 9 से 11 बजे के बीच:-
रक्तवाहिकायों और धमनियों की सक्रियता रहती है और इस समय ऊर्जा का प्रवाह रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में रहता है। इस समय पीठ के बल या बाईं करवट लेकर विश्राम करने से मेरुरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। 
 
इस समय की नींद सर्वाधिक शांति देने वाली होती है। रात्रि 9 बजे पश्चात पाचन संस्थान के अवयव विश्रांति प्राप्त करते हैं अत: यदि इस समय भोजन किया जाए तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहकर सड़ जाता है। उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं, जो अम्ल (एसिड) के साथ आंतों में जाम रोग उत्पन्न करते हैं इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।
 
रात्रि 11 से 1 बजे के बीच का समय:-
इस समय पित्ताशय, यकृत सक्रिय होता है। पित्त का संग्रहण पित्ताशय का मुख्य कार्य है। इस समय यदि आप जाग्रत रहते हैं तो पित्त का प्रकोप बढ़ जाता है जिससे अनिद्रा, सिरदर्द आदि पित्त-विकार तथा नेत्ररोग उत्पन्न होते हैं।
 
रात्रि को 12 बजने के बाद दिन में किए गए भोजन द्वारा शरीर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं के बदले में नई कोशिकाओं का निर्माण होता है। इस समय जागते रहने से बुढ़ापा जल्दी आता है।
 
रात्रि 1 से 3 बजे के बीच का समय:-
इस समय यकृत अर्थात लिवर ज्यादा क्रियाशील होता है। अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यकृत का कार्य है। इस समय शरीर को गहरी नींद की जरूरत होती है। इसकी पूर्ति न होने पर पाचन तंत्र बिगड़ जाता है।
 
जिस समय शरीर नींद के वश में होकर नि‍ष्क्रिय रहता है उस समय जागते रहते से दृष्टि मंद होकर भ्रमित अवस्था में रहती है। ऐसे समय में ही अधिकतर सड़क दुर्घटनाएं होती हैं।
 
अंत में उपरोक्त बताए गए नियम 'जैविक घड़ी' अनुसार हैं जिस पर विज्ञान के बहुत शोध किया है। आधुनिक युग में जेम्स एवं डोरोथी मूर ने 'जैविक घड़ी' के संबंध में महत्वपूर्ण प्रयोग किए हैं। दक्षिण जर्मनी के म्युनिख शहर में मशहूर माक्समिलियान यूनिवर्सिटी में भी इस संबंध में कई शोध किए गए हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार 'जैविक घड़ी' शुरू करने के लिए जिम्मेदार जीन की पहचान भी कर ली गई है। (एजेंसियां)
 
अंत में जानिए कुछ रोचक तथ्य जिनको जानकर आप हैरान रह जाएंगे...
 

दिन की दवा रात में न खाएं :
 
यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिलवेनिया के शोधकर्ताओं के मुताबिक शरीर की 'जैविक घड़ी' दवाओं के असर को बुरी तरह प्रभावित करती है। उनका दावा है कि दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली 100 दवाओं में से 56 पर दिन और रात के अंतर का जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। इन दवाओं में सर्दी-जुकाम की सामान्य दवाओं से लेकर कैंसर की दवाएं तक शामिल हैं। शोधकर्ता जॉन होजेनेच के मुताबिक दवा खाने का वक्त इसके प्रभाव से लेकर दुष्प्रभाव तक को नियंत्रित करता है।
 
दिनभर शरीर के अंगों की कार्यप्रणाली बदलती रहती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस खोज से साबित होता है कि दवा खाने का समय भी महत्वपूर्ण होता है। सही वक्त पर दवा खाने से दवा फायदेमंद साबित होती है, वहीं गलत समय पर ली गई दवा नुकसानदेह हो जाती है। (एजेंसियां)