मानवजाति के विकास में भारत की भूमिका
वैज्ञानिक अब तक यही कहते रहे हैं कि प्राचीन वानरों के बीच से अलग हो कर दो पैरों पर चलने वाले सबसे आदि मनुष्य का विकासक्रम कोई 70 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में शुरू हुआ था। इसी क्रम के चलते कोई 23 लाख वर्ष पूर्व 'होमो हाबिलिस' कहलाने वाले प्रथम मनुष्य-वंशियों का उद्भव हुआ और उनका भी रूप-रंग बदलते-बदलते कोई दस लाख वर्षों में 'होमो इरेक्टस' कहालाने वे मनुष्य अस्तित्व में आए, जो पूरी तरह खड़े हो कर चलते थे।आगे की कहानी यह है कि यही दोपाए 'होमो इरेक्टस' आज से 13 से 18 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में फैलने के साथ-साथ वहां से निकल कर यूरोप और एशिया में भी फैलने लगे। अफ्रीका में रह गए 'होमो इरेक्टस' का एक हिस्सा समय के साथ 'होमो सापियन्स' कहलाने वाली आधुनिक मनुष्य की उस प्रजाति में रूपांतरित होता गया, जो आज अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रलिया तक इस धरती पर बसने वाले हम सभी मनुष्यों की साझी प्रजाति है।'
आउट ऑफ अफ्रीका' सिद्धांत : इस समय का सबसे प्रचलित और मान्य 'आउट ऑफ अफ्रीका' सिद्धांत यही कहता है कि हम 'आधुनिक मनुष्यों' (होमो सापियन्स) के पूर्वज कोई एक लाख साल पहले अफ्रीका से निकल कर यूरोप और एशिया सहित सभी महाद्वीपों पर फैलने लगे।वहां पहले से रह रहे मनुष्यों की अन्य आदिकालीन प्रजातियों का, जैसे कि यूरोपवासी नेआन्डरथाल मनुष्य, साइबेरिया के देनिसोवा मनुष्य या इंडोनेशिया के बौने कद वाले फ्लोरेसियेन्सिस मनुष्य का समय के साथ हजारों साल पहले ही विलोप हो गया। इस तरह आज हर जगह केवल हम 'होमो सापियन्स' मनुष्यों का ही एकछत्र राज है, भले ही देखने-सुनने में भारतीय अफ्रीकियों से, अफ्रीकी यूरोपीयों से और यूरोपीय चीनियों से अलग लगते हैं।देखने में यही आया है कि मानवजाति के उद्भव और पृथ्वी पर उस के विस्तार के अब तक के शोध-सिद्धांत अफ्रीका या यूरोप तक ही केंद्रित रहे हैं। भारत की पूरी तरह अनदेखी होती रही है। इसलिए भी अनदेखी होती रही है, क्योंकि भारत में ऐसे कोई अत्यंत पुराने पुरातात्विक या जीवाश्मीय साक्ष्य नहीं मिल रहे थे, जिन से पता चलता कि मनुष्य जाति के विकासक्रम (इवोल्यूश) में भारत की क्या भूमिका रही है।पर, क्या यह बात विश्सनीय हो सकती है कि सभ्यता और संस्कृति की दृष्टि से संसार के एक सबसे प्रचीन देश भारत की आधुनिक मनुष्य के जन्मने और बनने में कोई भूमिका ही न रही हो? नृवंशशास्त्री (एन्थ्रोपोलॉजिस्ट) यह तो मनते रहे हैं कि अफ्रीका से निकल कर पूरी दुनिया में फैलने के दौरान हमारे 'होमो सापियन्स' पूर्वज दक्षिणपूर्वी एशिया की तरफ जाते हुए भारत-भूमि पर से भी- कम से कम उत्तरी भारत की भूमि पर से भी- जरूर गुजरे होंगे। लेकिन, बात इसलिए नहीं बन रही थी कि भारत में उस अति प्राचीनकाल के अब तक कोई भरोसेमंद जीवाश्म (फॉसिल) नहीं मिल रहे थे।
अगले पन्ने पर, लेकिन स्थिति अब बदल रही है....
भारत का ओरसांग मनुष्य : स्थिति अब बदल रही है। 1999 में गुजरात में नर्मदा की एक सहायक नदी ओरसांग पर बसे रतनपुर के पास एक अतिप्राचीन 'होमो सापियन्स' पुरुष की खोपड़ी मिली। इस खोपड़ी वाले अज्ञात आदमी को 'ओरसांग मनुष्य ' कहा जाने लगा। खोपड़ी नदी के कछार में मिली थी और इतनी पुरानी थी कि यह निर्धारित करने में भारी कठिनाई हो रही थी कि वह कितनी पुरानी है।जिस जगह वह मिली थी, वहां की भूसंरचना ऐसी है कि उस के आधार पर उसे कम से कम 30 हजार साल पुरानी भी कहा जा सकता था। किंतु, कार्बन के समस्थानिक (आइसोटोप) सी-14 के आधार पर 2006 में भारत में ही की गई एक रेडियो-कार्बन डेटिंग (कालगणना) ने उसे केवल 4600 वर्ष पुराना ही दिखाया।समस्या यह थी कि यह कालगणना इस बात से मेल नहीं खा रही थी कि इस खोपड़ी की बनावट में आधुनिक मनुष्य 'होमो सापियन्स' के साथ-साथ उसके पूर्वगामी 'होमो इरेक्टस' की कुछ संरचनाओं के भी लक्षण मिले हुए थे। यानी, उसे हर हाल में 4600 साल से कहीं अधिक पुराना होना चाहिए। आखिर गुत्थी सुलझी पेरिस में...अगले पन्ने पर...
गुत्थी सुलझी पेरिस में : इस गुत्थी को सुलझाया है पेरिस स्थित 'फ्रांसीसी राष्ट्रीय वैज्ञानिक शोध केंद्र' (सीएनआरएस) की जीवाश्म वैज्ञानिक डॉ. अन दाम्ब्रीकूर-मलासे ने। 'मैंने सोचा,' एक जर्मन रेडियो इंटरव्यू में दाम्ब्रीकूर-मलासे ने कहा, 'कि इससे पहले कि मैं यह पता लगाऊं कि खोपड़ी किस मानव-वंश की है- एशियाई होमो इरेक्टस के साथ उस के कोई संबंध हैं या नहीं। मुझे खोपड़ी की सही आयु जानना चाहिए।' इसके लिए उन्होंने सीटी-स्कैनिंग (कंप्यूटर टोमोग्राफ़ी) सहित कुछ अन्य आधुनिकतम तकनीकों का भी उपयोग किया।उन्होंने पाया कि गुजरात में मिली ओरसांग मनुष्य की खोपड़ी में नदी के कीचड़ का जो निक्षेप जमा हो गया रहा होगा, उसके कारण खोपड़ी नदी के पानी से प्रदूषित हो गई थी। यही कारण था कि कार्बन डेटिंग में उसका पुरानापन केवल 4600 वर्ष ही निकल रहा था। खोपड़ी निस्संदेह 'प्लेइस्टोसेन' काल की, यानी 30 हजार से 50 हजार साल पुरानी है। यह बात साफ हो जाने के बाद डॉ. अन दाम्ब्रीकूर-मलासे ने इस प्रश्न का उत्तर ढूंढना शुरू किया कि मनुष्य जाति की विकास-यात्रा में इस ओरसांग मनुष्य को कहां रखा जाना चाहिए और कौन उसके पूर्वज रहे होंगे?ओरसांग मनुष्य का अनोखापन : 'ओरसांग मनुष्य की शरीररचना में एक अनोखापन मिला है। सिर के पिछले भाग में एक उभार मिला है, जिसे हम टोरस एन्ग्युलारिस कहते हैं। यह उभार आमतौर पर हमें केवल यूरेशियाई देशों में पाई गई अतिप्राचीन खोपड़ियों में ही मिलता है। ओरसांग मनुष्य के सिर में भी उस का होना यही दिखाता है कि उस का होमो इरेक्टस के साथ भी रिश्ता था,' डॉ. दाम्ब्रीकूर-मलासे का कहना है।दूसरे शब्दों में, ओरसांग मनुष्य की शरीररचना अधिकांशतः तो आधुनिक मनुष्य, यानी 'होमो सापियन्स' जैसी ही रही होगी, लेकिन उसमें कुछ ऐसी विशेषताएं भी थीं, जो 'होमो सापियन्स' के पूर्वगामी 'होमो इरेक्टस' के लिए लाक्षणिक मानी जाती हैं। सिर के पिछले भाग में उभार एक ऐसी विशेषता है, जो यूरोप और एशिया (यूरेशिया) में पाई गई अतिप्राचीन खोपड़ियों में तो मिलती है, लेकिन वह अफ्रीका की देन नहीं है।प्रजातीय सम्मिश्रण जरूरी नहीं : डॉ. अन दाम्ब्रीकूर-मलासे ने ओरसांग मनुष्य के जीवनकाल के आस-पास की विभिन्न देशों में मिली 130 जीवाश्म खोपड़ियों के बारे में जानकारियां अपने डेटा-बैंक में जमा कर रखी हैं। इन जानकारियों के आधार पर 'टोरस एन्ग्युलारिस' कहलाने वाले उभार की विभिन्न क़िस्मों की छानबीन करने के बाद वे इस नतीजे पर पहुंची कि भारत के इस ओरसांग 'होमो सापियन्स' में एक ऐसी विशेषता है, जो उसकी प्रजाति में आमतौर पर नहीं मिलती।इस का अर्थ उन के शब्दों में यह हुआ कि 'शरीररचना की दृष्टि से जिसे हम आधुनिक मनुष्य (होमो सापियन्स) कहते हैं, वह जब एशिया में पहुंचा, तो उस ने वहां पहले से रहने वाली उस समय की दूसरी मनुष्य प्रजातियों को भगा नहीं दिया होगा।' तब भी, उनका मानना है कि यह कहना कि कोई 50 हजार साल पहले भारत में रह रहे 'होमो इरेक्टस' और लगभग उसी समय अफ्रीका से आए 'होमो सापियनंस' के बीच कोई 'सम्मिश्रण' हुआ होगा, मात्र एक अनुमान ही कहलाएगा।
भारत और अफ्रीका में समानानंतर विकासक्रिया...
भारत और अफ्रीका में समानानंतर विकासक्रिया?डॉ. अन दाम्ब्रीकूर-मलासे का अपना विचार यह है कि बिना किसी जातीय सम्मिश्रण के भी हो सकता है कि 'होमो इरेक्टस' का विलोप हो जाने के बाद भी भारत के लोगों में लंबे समय तक उस की शरीरचना की कुछ विशेषताएँ बनी रही हों।इन विशेषताओं के बने रहने की दूसरी व्याख्या यह हो सकती है कि 'होमो इरेक्टस' कहलाने वाले मनुष्य के बदल कर 'होमो सापियन्स' कहलाने वाला मनुष्य बनने की विकासक्रिया भारत और अफ्रीका में एक-दूसर् से स्वतंत्र लगभग समानांतर चली हो।यह भी हो सकता है कि अफ्रीकी 'होमो सापियन्स' की खोपड़ियों के पिछले भाग में भी एक विशिष्ट उभार रहा हो, जो बाद में अपने आप लुप्त हो गया हो। यदि सचमुछ ऐसा हुआ है, तो जरूरी नहीं कि भारत का ओरसांग मनुष्य वहां पहले से रह रहे 'होमो इरेक्टस' और बाद में आए 'होमो सापियन्स' के बीच सम्मिश्रण का परिणाम रहा हो।ओरसांग मनुष्य भारत की प्रचीनता का नया प्रमाण : जो भी हो, गुजरात की ओरसांग नदी की तलछट में मिली 30 से 50 हजार साल पुरानी खोपड़ी ने मनुष्य-जाति की विकास-यात्रा के बारे में न केवल एक नया वैज्ञानिक विवाद पैदा कर दिया है, भारत को भी उस नक्शे पर जगह दिला दी है, जो इस यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव दिखाता है।नृवंश शास्त्रियों के लिए भारत की उपेक्षा अब उतनी आसान नहीं रह जाएगी, जितनी अब तक हुआ करती थी। दो पैरों पर चलने वाले हमारे प्रथम पूर्वज भले ही अफ्रीका से आए रहे हों, हो सकता है कि उनके बाद वाले हमारे पूर्वजों की जन्मभूमि अफ्रीका नहीं, भारत ही रही हो।यह बात यदि पूरी तरह प्रमाणित हो जाती है, तब इस बहस को और भी हवा मिलेगी कि यह भी क्यों नहीं हो सकता कि आर्यों की मूल जन्मभूमि भी भारत ही रहा हो? हजारों वर्ष पूर्व समुद्र में डूब गई कृष्ण की द्वारका के ऐसे अवशेष मिले हैं, जो 30 हजार साल तक पुराने बताए जाते हैं।पुरतत्व विज्ञान की नई खोजों के अनुसार यह वह समय है, जब पृथ्वी पर का सबसे पिछला हिमयुग समाप्त हुआ था। उस समय पिघली बर्फ से सारे संसार में समुद्रतल इतना ऊपर उठ गया था कि द्वारका ही नहीं, और भी कई जगहों की प्राचीन बस्तियां डूब गईँ।यदि स्वयं प्राचीन द्वारका 30 हजार वर्ष तक पुरानी हो सकती है, जबकि मिस्र की सभ्यता अधिकतम 10 हजार वर्ष पुरानी ही मानी जाती है, तब कल्पना की जा सकती है कि भारत में आधुनिक मनुष्य की उत्पत्ति और उस की शहरी सभ्यता का अभ्युदय कितना और पुराना होना चाहिए।