Ahilyabai Holkar inspirational biography: रानी अहिल्या बाई होलकर की न्यायप्रियता के किस्से उनकी शासन शैली का एक अभिन्न अंग थे और आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उन्होंने अपने शासन में न्याय को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और इस मामले में कोई समझौता नहीं किया, चाहे वह कोई भी हो। यहां उनकी न्यायप्रियता के कुछ प्रसिद्ध और प्रेरणादायक किस्से प्रस्तुत हैं:
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1. अपने ही पुत्र को दंडित करने का निर्णय : यह किस्सा अहिल्या बाई की न्यायप्रियता का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है, हालांकि कुछ इतिहासकारों में इसकी ऐतिहासिक सत्यता को लेकर मतभेद हैं, फिर भी यह उनकी न्यायपूर्ण छवि को दृढ़ता से स्थापित करता है। किस्सा: कहा जाता है कि एक बार उनके इकलौते पुत्र मालेराव होलकर ने हाथी पर सवार होकर शहर में घूमते हुए अनजाने में या आवेश में आकर एक गरीब व्यक्ति के बच्चे को कुचल दिया। जब अहिल्या बाई को इस घटना का पता चला, तो उन्होंने अपने पुत्र के अपराध के लिए उसे दंडित करने का निर्णय लिया।
उन्होंने आदेश दिया कि मालेराव को भी उसी प्रकार हाथी के पैरों तले कुचला जाए। यह सुनकर पूरा दरबार स्तब्ध रह गया। दरबारी और मंत्रीगण रानी से यह फैसला बदलने की विनती करने लगे, क्योंकि मालेराव ही उनके इकलौते वारिस थे। लेकिन रानी अहिल्या बाई अपने निर्णय पर अडिग रहीं। उन्होंने कहा, "न्याय की कसौटी पर मेरा पुत्र भी एक सामान्य नागरिक है। यदि वह दोषी है, तो उसे दंड मिलना ही चाहिए।" अंततः, मंत्रियों और दरबारियों के अत्यधिक अनुनय-विनय के बाद, उन्होंने किसी तरह मालेराव को बख्शा, लेकिन उन्हें कठोर प्रायश्चित और दंड दिया गया।
सीख: यह किस्सा दर्शाता है कि अहिल्या बाई के लिए न्याय व्यक्तिगत संबंधों से ऊपर था। उन्होंने अपने ही परिवार के सदस्य पर न्याय लागू करने में कोई हिचक नहीं दिखाई, जो उन्हें एक अद्वितीय शासिका बनाता है।
किस्सा 2. शिकायतों के लिए सीधा दरबार: अहिल्या बाई का मानना था कि एक शासक को अपनी प्रजा से सीधा जुड़ाव रखना चाहिए। वे अपने महल के एक कमरे में बैठकर प्रतिदिन जनता की शिकायतें सुनती थीं। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी गरीब या साधारण क्यों न हो, बिना किसी रोक-टोक के उनके सामने अपनी फरियाद रख सकता था। वे धैर्यपूर्वक सबकी बात सुनती थीं और मौके पर ही न्याय देने का प्रयास करती थीं।
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सीख: यह उनकी पहुंच और जन-केंद्रित शासन का प्रमाण है। उन्होंने नौकरशाही की जटिलताओं को कम किया ताकि आम आदमी को न्याय के लिए भटकना न पड़े।
किस्सा 3. लुटेरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई: एक बार अहिल्या बाई के राज्य में कुछ लुटेरों ने यात्रियों को परेशान करना शुरू कर दिया। उन्होंने तुरंत अपनी सेना को इन लुटेरों को पकड़ने का आदेश दिया। जब लुटेरे पकड़े गए, तो उन्होंने न केवल उन्हें कठोर दंड दिया, बल्कि यह सुनिश्चित किया कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सड़कों पर सुरक्षा बढ़ाई जाए और यात्रियों के लिए धर्मशालाएं बनवाई जाएं।
सीख: यह उनकी त्वरित कार्रवाई और कानून-व्यवस्था बनाए रखने की दृढ़ता को दर्शाता है। वे जानती थीं कि शांतिपूर्ण और सुरक्षित समाज ही समृद्धि का आधार है।
किस्सा 4. नर्मदा नदी के तट पर न्याय: एक बार, नर्मदा नदी के तट पर एक विवाद उत्पन्न हुआ। दो पक्षों के बीच भूमि को लेकर गहरा झगड़ा था। अहिल्या बाई स्वयं उस स्थान पर गईं। उन्होंने दोनों पक्षों की बात सुनी, स्थानीय लोगों से पूछताछ की, और फिर मौके पर ही ऐसा न्याय किया जिससे दोनों पक्ष संतुष्ट हो गए।
सीख: उनकी गहन समझ और जमीनी स्तर पर समस्याओं को सुलझाने की क्षमता उन्हें एक अद्वितीय न्यायधीश बनाती थी।
किस्सा 5. राज्य में धार्मिक सहिष्णुता और न्याय: किस्सा: अहिल्या बाई स्वयं एक गहरी धार्मिक महिला थीं, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में सभी धर्मों के लोगों के प्रति समान व्यवहार किया। उनके दरबार में विभिन्न धर्मों के लोग थे और उन्होंने कभी किसी के साथ उसके धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया। वे यह सुनिश्चित करती थीं कि हर किसी को निष्पक्ष न्याय मिले, चाहे वह किसी भी समुदाय का हो।
सीख: उनकी धर्मनिरपेक्षता और समावेशी न्याय की भावना ने उनके राज्य में शांति और सद्भाव बनाए रखा।
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