जैव विविधता से ही मिलेगी फ़ूड सिक्यूरिटी व पांच इन्द्रियों को तृप्ति
सनावदिया स्थित जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डवेलपमेंट पर माता गुजरी स्कूल की छात्राओं का एक समूह अपनी शिक्षकों के साथ जैविक खेती व फ़ूड सिक्यूरिटी व् सस्टेनेबल डेवलेपमेंट के विषय पर सीखने के लिए आए।
उन्होंने सेंटर की निदेशिका डॉ. जनक पलटा मगिलिगन के साथ रासायनिक मुक्त फार्म में जाकर देखा कैसे उनकी दैनिक जरूरतों की सारी आपूर्ति जैव विविधता वाले संपूर्ण खेत से होती है।
छात्रों ने हर तरह की दालें, हरी सब्जियां, मैथी, सुरजना,गिलकी .लौकी, पुनर्नवा, चौलाई, पुवाडिया, पालक, कड़वी नीम, मीठी नीम, अंबाडी, आंवला, तुलसी, अजवायन धनिया, पुदीना,गर्म मसाले, हल्दी, मिर्ची, छोटी व बड़ी इलायची, अनाज जैसे ज्वार मक्का,मूंग,चवला,फलदार पेड़ जैसे आम,जाम,पपीता, मौसंबी, नींबू,संतरा,कीनू अनार,रामफल,सीताफल,कटहल,शहतूत,जामुन,चीकू,बादाम औषधीय पौधे जैसे अरीठा, हड्डीजोड़, किडनी में होने वाली पथरी खत्म करने वाली वाली पत्थरचट्टा, दांतों के लिए नीम, वज्रदंती तथा बाथ-जेल व शैंपू के लिए एलोवेरा अरीठा आदि सबको देखकर चकित होकर आनंद लिया।
छात्रों ने देखा कि कैसे गौरी नामक गाय का दूध,घी,माखन,छाछ से जनक दीदी की इको फ्रेंडली लाइफ स्टाइल रसमयी हो गई है साथ ही गाय के गोमूत्र व गोबर से खेती में खाद का काम लिया जा रहा है।
फलों से बने पीनट बटर, जाम, अचार, शरबत, पुअडिया के बीजों से कॉफी ब नी देखकर भी छात्र अभिभूत थे।
जनक दीदी ने बताया कि यहां आकर आप पांच इन्द्रियों को सुकून और शांति दे सकते हैं।
पेड़ों के बीच चहकते पक्षियों को सुनकर, अजवायन और सभी मसाले (गर्म मसाला) की सुगंध लेकर, हवा से पेड़ों की शाखाओं पर झूमते पत्तों व फूलों की पंखुड़ियों की आवाज़ महसूस कर छात्र विस्मित और प्रसन्न थे।
इमली व अंबाड़ी के स्वाद और पोई की बेल ,गुडहल,चम्पा,मोगरे को छू कर देखने से उन्हें विशेष आनंद आ रहा था।
जनक पलटा मगिलिगन ने बताया कि जैव विविधता के साथ ऑर्गेनिक फ़ूड से ही खानपान की सुरक्षा मिलेगी और इसी से पांच इन्द्रियों को तृप्ति भी मिलेगी क्योंकि यह सात्विक है, सस्टेनेबल है। मानव,पशु-पक्षी,वनस्पति, मिट्टी, पानी सब ऑर्गेनिक होंगे तो सभी का जीवन बचेगा।
फैक्ट्री और नकली फ़ूड न तो सस्टेनेबल है न सुरक्षित है क्योंकि रसायनों से उगा कर, रसायनों से लंबा व ताजा बनाकर, देर तक प्लास्टिक में पैक कर रख मिलने वाला फूड पर्यावरण के साथ हमारे शरीर के लिए भी नुकसानदायक है। साथ ही यह शारीरिक,मानसिक,अध्यात्मिक व् आर्थिक विनाश का रास्ता है।