सोमवार को देवी अहिल्या राष्ट्रीय पुरस्कार श्री रामभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय को दिया गया। उन्हें यह पुरस्कार आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दिया। इस दौरान पूर्व लोकसभा स्पीकर और श्री अहिल्योत्सव समिति की अध्यक्ष, कार्याध्यक्ष अशोक डागा और सचिव शरयू वाघमारे भी मौजूद थे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने इस मौके पर कहा कि भारत का स्व राम कृष्ण शिव है। शिव देश के कण-कण में है। कोई किसी भी पूजा पद्धति को माने लेकिन स्व सभी पर लागू होता है।
उन्होंने कहा कि रामजन्भूमि आंदोलन नहीं यज्ञ है। कुछ शक्तियां राम मंदिर नहीं बनने देना चाहती थी, इसलिए संघर्ष लंबा चला। जन्मभूमि का आंदोलन चलता था तो विद्यार्थी पूछते थे कि रोजी रोटी के बजाए ये मंदिर क्यों लगा रखा है। तब मैं उनसे कहता था कि यह आंदोलन भारत के स्व की जागृति के लिए है। अब वही हो रहा है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाई जानी चाहिए क्योंकि अनेक सदियों से दुश्मन का आक्रमण झेलने वाले देश की सच्ची स्वतंत्रता इस दिन प्रतिष्ठित हुई थी।
हिंदू पंचांग के मुताबिक, अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पिछले साल पौष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को हुई थी। तब ग्रेगोरियन कैलेंडर में 22 जनवरी 2024 की तारीख थी। इस साल पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी की तिथि 11 जनवरी को पड़ी।
संघ प्रमुख भागवत ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चम्पत राय को इंदौर में राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार प्रदान किया। उन्होंने इस मौके पर आयोजित समारोह में कहा कि अयोध्या में रामलला प्राण प्रतिष्ठा की तिथि पौष शुक्ल द्वादशी का नया नामकरण प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में हुआ है।
उन्होंने अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ के दो दिन बाद कहा कि यह तिथि प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाई जानी चाहिए क्योंकि अनेक सदियों से परचक्र (दुश्मन का आक्रमण) झेलने वाले भारत की सच्ची स्वतंत्रता इस दिन प्रतिष्ठित हुई थी।
भागवत ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों से राजनीतिक स्वतंत्रता मिलने के बाद उस विशिष्ट दृष्टि की दिखाई राह के मुताबिक लिखित संविधान बनाया गया जो देश के स्व से निकलती है लेकिन यह संविधान उस वक्त इस दृष्टि भाव के अनुसार नहीं चला।
उन्होंने कहा कि भगवान राम, कृष्ण और शिव के प्रस्तुत आदर्श और जीवन मूल्य भारत के स्व में शामिल हैं और ऐसी बात कतई नहीं है कि ये केवल उन्हीं लोगों के देवता हैं, जो उनकी पूजा करते हैं।
भागवत ने कहा कि आक्रांताओं ने देश के मंदिरों के विध्वंस इसलिए किए थे कि भारत का स्व मर जाए।
भागवत ने कहा कि राम मंदिर आंदोलन किसी व्यक्ति का विरोध करने या विवाद पैदा करने के लिए शुरू नहीं किया गया था।
संघ प्रमुख ने कहा कि यह आंदोलन भारत का स्व जागृत करने के लिए शुरू किया गया था ताकि देश अपने पैरों पर खड़ा होकर दुनिया को रास्ता दिखा सके।
उन्होंने कहा कि यह आंदोलन इसलिए इतना लम्बा चला क्योंकि कुछ शक्तियां चाहती थीं कि अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर उनका मंदिर न बने।
भागवत ने कहा कि पिछले वर्ष अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान देश में कोई कलह या झगड़ा नहीं हुआ और लोग पवित्र मन से प्राण प्रतिष्ठा के पल के गवाह बने।
संघ प्रमुख ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से उस वक्त हुई अपनी एक मुलाकात का जिक्र भी किया, जब घर वापसी (धर्मांतरित लोगों का अपने मूल धर्म में लौटना) का मुद्दा संसद में गरमाया हुआ था।
उन्होंने कहा,इस मुलाकात के दौरान मुखर्जी ने मुझसे कहा कि भारत का संविधान दुनिया का सबसे धर्मनिरपेक्ष संविधान है और ऐसे में दुनिया को हमें धर्मनिरपेक्षता सिखाने का भला क्या अधिकार है। उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि 5,000 साल की भारतीय परंपरा ने हमें धर्मनिरपेक्षता ही सिखाई है।
भागवत के मुताबिक मुखर्जी उनसे मुलाकात के दौरान 5,000 साल की जिस भारतीय परंपरा का जिक्र कर रहे थे, वह राम, कृष्ण और शिव से शुरू हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान 1980 के दशक में कुछ लोग उनसे रटा-रटाया सवाल करते थे कि जनता की रोजी-रोटी की चिंता छोड़कर मंदिर का मुद्दा क्यों उठाया जा रहा है?
भागवत ने कहा,मैं उन लोगों से पूछता था कि 1947 में आजाद होने के बाद समाजवाद की बातें किए जाने, गरीबी हटाओ के नारे दिए जाने और पूरे समय लोगों की रोजी-रोटी की चिंता किए जाने के बावजूद भारत 1980 के दशक में कहां खड़ा है और इजराइल व जापान जैसे देश कहां से कहां पहुंच गए हैं?
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चम्पत राय ने राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार ग्रहण करने के बाद कहा कि वह यह पुरस्कार राम मंदिर आंदोलन के उन सभी ज्ञात-अज्ञात लोगों को समर्पित करते हैं जिन्होंने अयोध्या में यह मंदिर बनाने में सहयोग किया।
उन्होंने राम मंदिर आंदोलन के अलग-अलग संघर्षों का जिक्र करते हुए कहा कि अयोध्या में बना यह मंदिर हिंदुस्तान की मूंछ (राष्ट्रीय गौरव) का प्रतीक है और वह इस मंदिर के निर्माण के निमित्त मात्र हैं। राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार, इंदौर की सामाजिक संस्था श्री अहिल्योत्सव समिति" की ओर से हर साल दिया जाता है।
लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा महाजन इस संस्था की अध्यक्ष हैं। महाजन ने पुरस्कार समारोह में कहा कि इंदौर के पूर्व होलकर राजवंश की शासक देवी अहिल्याबाई का शहर में भव्य स्मारक बनाया जाएगा ताकि लोग उनके जीवन चरित्र से परिचित हो सकें। गुजरे बरसों में राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार नानाजी देशमुख, विजयाराजे सिंधिया, रघुनाथ अनंत माशेलकर और सुधा मूर्ति जैसी हस्तियों को दिया जा चुका है। इनपुट भाषा