मंगलवार, 5 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. संत-महापुरुष
  4. Kabir Das Jayanti 2020
Written By

Kabir Das Jayanti 2020 : संत कबीर का जीवन परिचय

Kabir Das Jayanti 2020 : संत कबीर का जीवन परिचय - Kabir Das Jayanti 2020
Kabir Jayanti 2020
 
प्रतिवर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन महान कवि एवं संत कबीर की जयंती मनाई जाती है। इस बार यह तिथि 5 जून को है। कबीर भारतीय मनीषा के प्रथम विद्रोही संत हैं, उनका विद्रोह अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के विरोध में सदैव मुखर रहा है।
 
महात्मा कबीर के प्राकट्यकाल में समाज ऐसे चौराहे पर खड़ा था, जहां चारों ओर धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, अंधश्रद्धा से भरे कर्मकांड, मौलवी, मुल्ला तथा पंडित-पुरोहितों का ढोंग और सांप्रदायिक उन्माद चरम पर था। आम जनता धर्म के नाम पर दिग्भ्रमित थी।
 
मध्यकाल जो कबीर की चेतना का प्राकट्यकाल है, पूरी तरह सभी प्रकार की संकीर्णताओं से आक्रांत था। धर्म के स्वच्छ और निर्मल आकाश में ढोंग-पाखंड, हिंसा तथा अधर्म व अन्याय के बादल छाए हुए थे। उसी काल में अंधविश्वास तथा अंधश्रद्धा के कुहासों को चीर कर कबीर रूपी दहकते सूर्य का प्राकट्य भारतीय क्षितिज में हुआ।
 
वैसे संत कबीर के कोई जीवन वृत्तांत का पता नहीं चलता परंतु, विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर साहेब का जन्म विक्रम संवत 1455 तथा मृत्यु विक्रम संवत 1575 माना जाता है। जिस तरह माता सीता के जन्म का पता नहीं चलता, उसी तरह कबीर के जन्म का भी रहस्य आज भी भारतीय लोकमानस में जीवंत है। 

कबीर बीच बाजार और चौराहे के संत हैं। वे आम जनता से अपनी बात पूरे आवेग और प्रखरता के साथ किया करते हैं, इसलिए कबीर परमात्मा को देखकर बोलते हैं और आज समाज के जिस युग में हम जी रहे हैं, वहां जातिवाद की कुत्सित राजनीति, धार्मिक पाखंड का बोलबाला, सांप्रदायिकता की आग में झुलसता जनमानस और आतंकवाद का नग्न तांडव, तंत्र-मंत्र का मिथ्या भ्रम-जाल से समाज और राष्ट्र आज भी उबर नहीं पाया है।
 
छह सौ वर्षों के सुदीर्घ प्राकट्यकाल के बाद भी कबीर हमारे वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन के लिए बेहद प्रासंगिक एवं समीचीन लगते हैं। वे हमारे लोकजीवन के इर्द-गिर्द घूमते नजर आते हैं। साहेब की बीजक वाणी में हिन्दू और मुस्लिम के साथ-साथ ब्रह्मांड के सभी लोगों को एक ही धरती पर प्रेमपूर्वक आदमी की तरह रहने की हिदायत देते हैं।
 
वे कहते हैं : 'वो ही मोहम्मद, वो ही महादेव, ब्रह्मा आदम कहिए, को हिन्दू, को तुरूक कहाए, एक जिमि पर रहिए।' कबीर मानवीय समाज के इतने बेबाक, साफ-सुथरे निश्छल मन के भक्त कवि हैं जो समाज को स्वर्ग और नर्क के मिथ्या भ्रम से बाहर निकालते हैं।
 
वे काजी, मुल्ला और पंडितों को साफ लफ्जों में दुत्कारते हैं- 'काजी तुम कौन कितेब बखानी, झंखत बकत रहहु निशि बासर, मति एकऊ नहीं जानी/दिल में खोजी देखि खोजा दे/ बिहिस्त कहां से आया?' कबीर ने घट-घट वासी चेतन तत्व को राम के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने राम को जीवन आश्रय माना है, इसीलिए कबीर के बीजक में चेतन राम की एक सौ सत्तर बार अभिव्यंजना हुई है।
 
कबीर आज भी दहकते अंगारे हैं। कानन-कुसुम भी हैं कबीर जिनकी भीनी-भीनी गंध और सुवास नैसर्गिक रूप से मानवीय अरण्य को सुवासित कर रही है। हिमालय से उतरी हुई गंगा की पावनता भी है कबीर। कबीर भारतीय मनीषा के भूगर्भ के फौलाद हैं जिसके चोट से ढोंग, पाखंड और धर्मांधता चूर-चूर हो जाती है। कबीर भारतीय संस्कृति का वह हीरा है जिसकी चमक नित नूतन और शाश्वत है।