शनिवार, 27 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. भारत के वीर सपूत
  4. Gurbachan singh

बचपन में पाला सेना में जाने का ‘सपना’, 26 साल की उम्र में ‘शहीद’ होकर कि‍या पूरा

बचपन में पाला सेना में जाने का ‘सपना’, 26 साल की उम्र में ‘शहीद’ होकर कि‍या पूरा - Gurbachan singh
गुरबचन सिंह सलारिया वो नाम है जि‍सने पैदा होते ही अपने घर में वीरता के कि‍स्‍से सुने थे। पिता मुंशीराम ब्रिटिश भारतीय सेना में Hodson's Horse के डोगरा स्क्वॉड्रन का हिस्सा हुआ करते थे। यही कारण था कि‍ घर में शौर्य की कहानि‍यां बहुत आम थी। इसी वजह से गुरबचन सिंह की आंखों में बचपन में ही सेना में जाने का सपना पल गया था।

गुरबचन सिंह ने अपना यह सपना पूरा भी कि‍या और वो मि‍साल भी पेश की कि‍ आज भी उनकी वि‍रता की कहानि‍यां लिखी जा रही हैं।

साल 1961 था। पूरी दुनि‍या कोल्‍ड वॉर की त्रासदी झेल रहा था। इसी दौरान अफ़्रीका के कॉन्गो में भी गृह युद्ध छिड़ा गया। स्थिति इतनी ज्‍यादा भयावह हो गई थी कि मामले में संयुक्त राष्ट्र को दखल देना पड़ा। उसने भारत से मदद मांगी। भारत ने फैसला किया कि‍ मदद के लिए भारतीय सेना की एक टुकड़ी अफ़्रीका भेजी जाए।  
इस टुकड़ी का हिस्‍सा थे गुरबचन सिंह सलारिया।

दरअसल, 5 दिसंबर 1961 को दुश्मनों ने एयरपोर्ट और संयुक्त राष्ट्र के स्थानीय मुख्यालय की तरफ जाने वाले रास्ते एलिजाबेथ विले को घेर लिया था और रास्तों को बंद कर दिया था। इन दुश्मनों को हटाने के का मिशन गोरखा राइफल्स के 16 सैनिकों की एक टीम को सौंपा गया। टीम को लीड करने की जि‍म्‍मेदारी कैप्टन गुरबचन सिंह की थी।

इस वॉर के पीछे की वजह दरसअल कांगो के दो गुट में बंट जाना था। साल 1960 से पहले कांगो पर बेल्जियम का राज हुआ करता था। जब कांगों को बेल्जियम से आजादी मिली तो कांगो दो गुट में बंट गया और वहां सिवि‍ल वॉर शुरू हो गया।

कैप्‍टन गुरबचन के सामने ने चुनौती थी क्‍योंकि‍ दुश्मनों की संख्या बहुत ज्यादा थी और उनके पास हथियार भी बहुत ज्‍यादा थे। लेकिन गोरखा पलटन ने देखते ही देखते दुश्मन दल के 40 लोग मौत के घाट उतार दिए।
लेकिन विद्रोहियों पर काबू करने में वो स्‍थि‍ति‍ भी आई जब कैप्‍टन सलारिया ख़ून से लथपथ थे। बावजूद इसके इस जांबाज़ भारतीय ने अपने घुटने नहीं टेके और दुश्मन को झुकने पर मजबूर कर दिया था। लड़ाई में दो गोली कैप्टन के गले पर लगी। लेकिन वे पीछे नहीं हटे। सिर्फ 26 साल की उम्र में कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया शहीद हो गए। उन्‍हें सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परम वीर चक्र’ (मरणोपरांत) से सम्मानित किया।

पंजाब का शकगरगढ़ गांव (अब पाकिस्तान) में 29 नवंबर 1935 को गुरबचन सिंह सलारिया का जन्‍म हुआ था। भारत के  विभाजन के बाद सलारिया का परिवार गुरदासपुर ज़िले में आकर बस गया था। कैप्‍टन सलारिया बैंगलौर के किंग जॉर्ज रॉयल मिलिट्री कॉलेज गए। इसके बाद वह अगस्त 1947 में जालंधर के केजीआरएमसी गए, जहां से उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वे एनडीए के संयुक्त सेवा विंग में सि‍लेक्‍ट हुए थे।