देखें उजली भोर, रात बिसरा कर मिलें।
रामेश्वर
नफरतों की बर्फ दिल से पिघलाकर मिलेंआओ हम प्यार की धूप में आकर मिलेंसर्द रिश्तों को चलो हम गुनगुना कर लेंबुझे हुए सौहार्द में कुछ आंच भर लेंइसमें अभी प्रेम की चिंगारी दबी हैइंसानियत की राख को फिर आग कर लेंभाईचारे का अलाव सुलगा कर मिलेंचिड़िया चहकने दें, फूलों को हंसने देंआजादी की हवा बागों में बहने देंदहशत का दावानल रोकें, निर्भय करेंबच्चों की आंखों में तितलियां चमकने देंइक-दूजे की चोटों को सहलाकर मिलेंसपनों को पालें, आंखों से बहने न देंकुछ नहीं असंभव, दिल को ना कहने न देंगत को भूलें हम आगत का करें स्वागतआगे बढ़ें पांव को पीछे हटने न देंदेखें उजली भोर, रात बिसरा कर मिलें।