भारत में आतंकवाद से निपटने का दम है पर...
दमदार नीति और इच्छा शक्ति नहीं
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प्रकाशसिंह देश की आजादी को इतने साल हो गए हैं लेकिन हम अब तक आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी गंभीर समस्याओं पर काबू नहीं पा सके हैं। भले ही हमारा देश तेज गति से विकास करने वाला देश बन गया हो, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी अपनी एक अलग पहचान बनी हो, मगर बात जब आतंकवाद और नक्सलवाद पर काबू पाने की होती है तो हम अपने हाथ पूरी तरह खाली पाते हैं। क्या कभी हम आतंकवाद पर अमेरिका की तरह लगाम लगा पाएंगे? भारत में आतंकवाद की शुरुआत उसी दिन से हो गई थी जब नागा विद्रोहियों ने अपना झंडा बुलंद किया था। उसके बाद यह आग त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम होते हुए पंजाब तक पहुंच गई। किसी तरह सख्ती करके पंजाब के आतंकवाद पर काबू पाया, पर देश से आतंकवाद पूरी तरह खत्म नहीं हो सका जबकि आतंकवाद और आतंकवादियों की चूल हिलाने की ताकत हमारी सुरक्षा एजेंसियों के पास भी अमेरिका से कम नहीं है, लेकिन हमारे पास आतंकवाद से निबटने के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं है जैसी कि अमेरिका के पास है।
राजनीतिक अवसरों और मौकों के हिसाब से राजनेताओं को जो रास्ता सरल लगा, उसे अपना लिया गया। इसमें सबसे आसान रास्ता था आतंकवादियों के मांगों के आगे अपना सिर झुकाना। कभी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने रूबैया के लिए आतंकवादियों की मांगें मान लीं तो कभी कंधार-कांड के लिए वाजपेयी सरकार आतंकवादियों को उनके घर तक छोड़ आई। जब तक हम आतंकवादियों की मांगों के आगे झुकते रहेंगे, वे हमारे निर्दोष लोगों की जान ऐसे ही लेते रहेंगे।