बुधवार, 27 सितम्बर 2023
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आजादी के 61 वर्ष बाद व्यापार

बुधवार,अगस्त 20, 2008
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मेरा भारत महान?

बुधवार,अगस्त 20, 2008
स्वतंत्रता का मतलब है जो हम अपने लिए नहीं चाहते वह दूसरों के लिए भी न करें। जातिगत आधार पर आरक्षण का ही मुद्दा लें।
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भारत-पाक बँटवारे के समय जो दोनों मुल्कों को दर्द झेलना पड़ा था, उसको तो भुलाया ही नहीं जा सकता, उस दिन दोनों देश आज़ाद तो हो गए पर दोनों मुल्कों में नफरत का पौधा ऐसा बढ़ना-फूलना शुरू हुआ
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इंडियन वूमन अर्थात भारतीय महिला- इस शब्द को सुनते ही हर नागरिक के मन में एक छवि उभरने लगती है। भारतीय महिला अर्थात एक अच्‍छी बेटी, बहन, माँ, पत्नी इत्यादि। स्वतंत्रता के इन 61 वर्ष पश्चात भी हम महिलाओं को सामान्यत: इन्हीं रूपों में देखते हैं।
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स्वराज्य की मेरी धारणा के बारे में किसी को कोई भ्रम न रहे। वह है बाहरी नियंत्रण से पूर्ण स्वाधीनता और पूर्ण आर्थिक स्वाधीनता। इस प्रकार, एक छोर पर है राजनीतिक स्वाधीनता, और दूसरे पर आर्थिक। इसके दो छोर और भी हैं जिनमें से एक छोर नैतिक व सामाजिक है
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मध्यप्रदेश ही नहीं, पूरे देश में आर्थिक विकास या आर्थिक आजादी का दौर वास्तव में 1969 से प्रारंभ हुआ, जब संसद ने राजाओं-नवाबों के प्रिवीयर्स एवं विशेषाधिकार की समाप्ति और बैंकों के राष्ट्रीयकरण का विधेयक पारित किया। बुंदेलखंड, बघेलखंड, छत्तीसगढ़,
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स्वतंत्रता इस मूल अवधारणा पर आधारित है कि व्यक्ति अपनी भावना को सही अभिव्यक्ति दे सके और अपनी आजीविका को सुचारु रूप से चला सके। धर्म की अवधारणा भी इसी पर आधारित है कि किसी और के काम में हस्तक्षेप किए बिना व्यक्ति अपना कर्तव्य स्वतंत्रतापूर्वक
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स्वतंत्रता की 61वीं जयंती मनाते हुए हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि धीरे-धीरे देश में समृद्धि फैलती जा रही है। इस बात के बावजूद कि हमारी अर्थव्यवस्था पाँच साल में पहली बार मंदी की शिकार हुई है, तथ्य तो यह है कि पिछले पाँच वर्षों में उच्च वृद्धि ...
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आज हम ऐसे दौर में पहुँच चुके हैं जहाँ पूरी दुनिया में बाजारवादी आर्थिक नीतियों का ही बोलबाला है। इस दौर में उदारीकरण या ग्लोबलाइजेशन से डरने से काम नहीं चलेगा। दुनिया जिस तरफ जा रही है उसकी अनदेखी करना भारत के लिए ठीक नहीं होगा।
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गाँधी ने आर्थिक प्रगति का मानक सबसे आखिरी आदमी को माना था। इस आखिरी आदमी की खुशहाली ही उनके लिए प्रगति का बुनियादी और अंतिम लक्ष्य था। वे इसी आदमी के आँसू पोंछने की बात करते थे। वे जिस तरह के अर्थतंत्र की पैरवी करते थे, उसके केंद्र में यही
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हमारा देश आज विश्व में एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त कर गया है। इसके चार प्रमुख कारण हैं : बढ़ती विकास दर, प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी, गरीबी प्रतिशत में निरंतर गिरावट तथा आम आदमी के रहन-सहन में बदलाव। गत कुछ वर्षों से देश की ...
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अंबानी, मित्तल, टाटा आदि के नाम तो अक्सर अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में छाए रहते हैं लेकिन हाल ही में भारत की लघु वित्त संस्थाओं के नाम भी 'फोर्ब्स' पत्रिका में आए हैं। इसमें विश्व की 50 शीर्ष लघु वित्त संस्थाओं की सूची प्रकाशित हुई है, जिसमें से सात ...
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आजादी के बाद से ही भारतीय समाज के केंद्र पर नजर डालने से यह तस्वीर उभरकर आती है कि भारतमाता 'ग्रामवासिनी' की जगह भारतमाता 'नगरवासिनी' ने ले ली है । शहर ने गाँवों के सपने की जगह ले ली और राष्ट्रीय कल्पनाशीलता के केंद्र से गाँवों
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नियोजित विकास में पहली चूक तो यह हुई कि योजनाएँ बनाते समय आदिवासी प्रकृति और शासन-प्रशासन की प्रवृत्ति का सही आकलन नहीं किया गया। यानी गाड़ी शुरुआत में ही पटरी से उतरकर अलग दिशा में अनुपयुक्त मार्ग पर चल पड़ी।
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महिला सशक्तीकरण जरूरी

शुक्रवार,अगस्त 15, 2008
आजादी के इतने सालों बाद जब अपने देश को देखती हूँ तो लगता है हम काफी ऊँचाइयों पर पहुँच गए हैं। बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें, तेज दौड़ती गाड़ियाँ और लोगों की बढ़ती आय से यह जाहिर है कि भारत ने बहुत तरक्की की है; यह किसी चमत्कार से कम नहीं कि जिस देश में
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महिलाएँ और आर्थिक आजादी

शुक्रवार,अगस्त 15, 2008
आँकड़ों के ढेर में बैठकर इस बात की कल्पना करना काफी आसान है कि देश की आर्थिक प्रगति कैसे हो रही है। सभी दूर भारत के आधुनिक चेहरों को दिखाया जा रहा है। ऐसा चेहरा जिसमें प्रगति की चमक है और विकास की रेखाओं से आभामंडल शोभित है।
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वैभव जब भी शर्ट खरीदने जाता है तो एक शर्ट ही नहीं खरीदता। पसंद आने पर वह कई शर्ट खरीद सकता है। चाहे उनकी संख्या चार हो या छः। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह आठ सौ के बदले पाँच हजार खर्च कर रहा है। वह जब भी अपने गाँव पहुँचता है
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पश्चिम निमाड़ के आदिवासी बहुल खरगोन और बड़वानी जिले में आदिवासियों की जीवनशैली को पद और शिक्षा ने काफी हद तक बदल डाला है। पैदल और बैलगाड़ी पर सफर करने वाला इस वर्ग का एक बड़ा तबका अब दुपहिया वाहन पर सवार होकर सफर करने लगा है।
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व्यवसाय पर भी एकाधिकार!

शुक्रवार,अगस्त 15, 2008
21वीं सदी में आ रही आजादी की प्रत्येक वर्षगाँठ देश के विकास हेतु किए गए वादों का मूल्यांकन करने का वाजिब मापदंड भी है। लगभग पिछले 400 वर्षों से वनों की ओर धकेल दिए गए आदिवासी वर्ग का विकास इन वादों की सचाई को देखने का आईना है।
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फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार भारत में अरबपतियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और अरबपतियों की जनसंख्या की दृष्टि से भारत का नंबर विश्व में चौथा लगता है।
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