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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 14 अगस्त 2025 (13:46 IST)

एक कुत्ता जो बन गया मिसाल, जानिए 9 साल तक अपने मालिक का इंतजार करने वाले हाचिको की मार्मिक कहानी

hachiko dog statue in japan
hachiko dog statue in japan: कुत्ते को अक्सर इंसान का सबसे अच्छा दोस्त कहा जाता है, और यह बात कई बार सच साबित हुई है। भले ही कुछ नस्लों को आक्रामक माना जाता हो, लेकिन ज़्यादातर कुत्ते अपने इंसानों के प्रति अटूट प्रेम और वफादारी दिखाते हैं। वफादारी, ईमानदारी और दोस्ती की ऐसी ही एक अविस्मरणीय मिसाल था जापान का एक कुत्ता, जिसका नाम था हाचिको (Hachiko)। हाचिको की कहानी न सिर्फ जापान में, बल्कि पूरी दुनिया में आज भी लाखों लोगों को भावुक कर देती है।

हाचिको और हिदेसाबुरो की अटूट दोस्ती
यह कहानी 1920 के दशक की है। जापान के टोक्यो शहर में एक कृषि विज्ञान के प्रोफेसर रहते थे, जिनका नाम था हिदेसाबुरो उएनो (Hidesaburō Ueno)। एक दिन उन्हें एक अकिता नस्ल का पिल्ला मिला, जिसका नाम उन्होंने हाचिको रखा। हाचिको जल्द ही हिदेसाबुरो के परिवार का एक अभिन्न अंग बन गया। दोनों के बीच एक गहरा और अटूट रिश्ता बन गया।

हाचिको की एक अनोखी आदत थी। वह रोज़ सुबह अपने मालिक हिदेसाबुरो को शिबुया ट्रेन स्टेशन तक छोड़ने जाता था, जहां से प्रोफेसर ट्रेन पकड़कर काम पर जाते थे। शाम को, वह ठीक उसी समय स्टेशन पर वापस आता था, जब प्रोफेसर की ट्रेन पहुँचती थी, ताकि वह उन्हें घर तक वापस ला सके।

दोस्त से बिछड़ना और इंतजार की शुरुआत
यह सिलसिला कई सालों तक खुशी-खुशी चलता रहा। लेकिन, एक दिन हाचिको की जिंदगी में एक भयानक त्रासदी आ गई। 21 मई, 1925 को प्रोफेसर हिदेसाबुरो उएनो को काम के दौरान सेरेब्रल हेमरेज हुआ और उनकी मृत्यु हो गई। वह कभी स्टेशन पर वापस नहीं लौटे। उस दिन शाम को, हाचिको स्टेशन पर अपने मालिक का इंतजार कर रहा था। ट्रेन आई, यात्री उतरे, लेकिन हिदेसाबुरो नहीं दिखे। उस दिन से लेकर अगले 9 साल, 9 महीने और 9 दिन तक, हाचिको रोज़ उसी समय स्टेशन पर आता रहा और अपने प्यारे मालिक का इंतजार करता रहा।

दुनिया ने देखा हाचिको का प्यार
हिदेसाबुरो की मृत्यु के बाद, हाचिको को उनके एक दूसरे परिवार ने गोद ले लिया, लेकिन हाचिको ने कभी अपने मालिक का इंतजार करना नहीं छोड़ा। स्टेशन के कर्मचारी और नियमित यात्री उसे पहचान गए थे। उन्होंने उसे खाना खिलाना शुरू कर दिया। 1932 में, टोक्यो के एक प्रमुख अखबार 'आसाही शिंबुन' ने हाचिको पर एक लेख प्रकाशित किया। इस लेख ने हाचिको की वफादारी की कहानी को पूरी दुनिया में पहुंचा दिया। जल्द ही, हाचिको जापान में राष्ट्रीय गौरव और वफादारी का प्रतीक बन गया।

एक प्रतिमा और अमर हो गई हाचिको की कहानी
हाचिको की मृत्यु 11 साल की उम्र में 8 मार्च, 1935 को हुई। उसकी मौत से पूरे जापान में शोक की लहर दौड़ गई। हाचिको की याद में, शिबुया स्टेशन के बाहर उसकी एक कांस्य की मूर्ति स्थापित की गई, जो आज भी मौजूद है। यह मूर्ति हाचिको की कहानी एक ऐसे दोस्त की कहानी है जिसने अपने जीवन का हर दिन अपने मालिक के लिए समर्पित कर दिया। हाचिको की यह अमर कहानी हमेशा हमें सच्ची दोस्ती का महत्व याद दिलाती रहेगी।