'मुंबई जाने वाली पुष्पक एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म नंबर 6 से जाएगी, जिन यात्रियों को पुष्पक एक्सप्रेस से मुंबई के लिए यात्रा करनी है, वे कृपया प्लेटफॉर्म नंबर 6 पर पहुंचें।' नॉर्थ-ईस्टर्न रेलवे लखनऊ से होने वाली इस उद्घोषणा ने मेरे पैरों की गति को बढ़ा दिया था। मैं तेजी से प्लेटफॉर्म नंबर 6 की तरफ बढ़ रहा था और तेजी से अपने सफारी सुटकेस के व्हील को खींच रहा था।
सामने लाल वस्त्र पहने हुए कुली महोदय दिखाई दिए। मैंने पूछा, भाई सेकंड एसी का ए-1 डिब्बा कितनी दूरी पर है? साहब 300 मीटर आगे बढ़ जाइए, ए-1 डिब्बा आ जाएगा। मैं आपका ब्रीफकेस लेकर डिब्बे में बैठा दूं क्या? अरे नहीं मैं चला जाऊंगा, मैंने जवाब दिया। अरे साहब, केवल 50 रुपए लूंगा। नहीं भाई, मैं चला जाऊंगा, मैंने अपनी बात कहीं। वह धीरे से भुनभुनाया- 'चलिहे एसी मा और कुली का देए खातिर 50 रुपए नाही है', ऐसा कहकर वह आगे बढ़ गया।
पांच मिनट बाद एसी ए-1 डिब्बा सामने था। 9 नंबर की सीट मेरी थी। रिजर्वेशन चार्ट पर मेरा नाम लिखा था विकास मिश्रा। मन को बड़ा ही सुकून हुआ। लीजिए पहुंच गए अपनी सीट पर। सीट भी नीचे की लोअर बर्थ की है, यात्रा का आनंद बढ़ गया।
कुछ आधुनिक शैली की अभिनेत्रीनुमा युवतियों ने डिब्बे में आधुनिक वस्त्रों में प्रवेश किया तो सुलभ जिज्ञासा उठी कि इन्हें हमारा सहयात्री होना चाहिए, लेकिन ये तो अपने सामान के साथ आगे बढ़ गईं और सामने की दोनों ऊपर की सीटें अभी भी खाली हैं।
तभी दो भीमकाय स्त्री-पुरुषों ने डिब्बे में प्रवेश किया। गाड़ी ने हल्की-सी प्लेटफॉर्म पर हरकत की फिर रुक गई। भ्रम यह हुआ कि गाड़ी इनके चढ़ने से रुकी या अपने आप। महोदय ने लंबी दाढ़ी बढ़ा रखी थी, जो इनकी शख्सियत को बिना बताए बता रही थी और साथ ही मोहतरमा ने काले रंग का बुरका पहन रखा था। दोनों सामने की सीट पर विराजमान हो गए।
मैंने बड़ी ही विनम्रता से प्रश्न पूछा- क्या नाम है आपका? कहां तक यात्रा करेंगे? जी नवाब अली, मुंबई तक जाएंगे जनाब। यह लखनऊ शहर है। यहां पर कभी आप भूलभुलैया या इमामबाड़े के सामने खड़े तांगे/इक्के की सवारी कीजिए और फिर बड़े ही अपनत्व से उस इक्के वाले के खानदान के बारे में पूछिए तो वह नवाब वाजिद अली शाह का वंशज या रिश्तेदार मिलेगा।
खैर छोड़िए, मुझे तो अपने सारे यात्री प्रागैतिहासिक काल के ही मिलेंगे, यह सोचते मनहूसियत को कोस रहा था कि तभी सीट नंबर 8 को पूछती एक बेहद ही खूबसूरत नवयौवना ने गुलाबी रंग के सूट में प्रवेश किया। 'अरे ये तो बाजीराव की मस्तानी आ गई'। आंखें जो देख रही थी, उस पर विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने पूछा, सीट नंबर 8 कहां है? जी, इसी में ऊपर वाली सीट है। मैंने इशारे से बताया। और उसने अपना सामान रखा और सामने की सीट पर बैठ गई। मैं बार-बार उसे देखता और बाजीराव मस्तानी को याद करता।
लेकिन वो मेरी इन तमाम हरकतों से बेफिकर होकर अपने फोन में फेसबुक पर व्यस्त हो गई। विवश होकर मैंने भी अपना एंड्रॉयड फोन निकाला और व्हॉट्सएप पर मैसेज करने लगा। सामने नवाब साहब और उनकी बीवी भी अपने मोबाइल पर व्यस्त हो गए और गाड़ी ने धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म को छोड़ दिया।
गाड़ी ने थोड़ी गति पकड़ ली थी। हम सब अपने-अपने मोबाइल फोन में व्यस्त थे कि तभी काले सूट में एक भद्र व्यक्ति आए तथा जिन्होंने हमारी व्यस्तता को यह कहकर भंग किया कि सीट नंबर 9 टिकट प्लीज। जी मैं विकास मिश्रा मुंबई तक जाऊंगा। सर ये है मेरा टिकट और ये आईडी। ठीक। 8 नंबर पर कौन है? जी मैं अभिव्यक्ति शर्मा। भोपाल तक जाऊंगी। ये मेरा आईडी है। ओके। टीटी महोदय ने अन्य के भी टिकट चेक किए और आगे बढ़ गए।
एक रहस्य से पर्दा उठा गया था कि सामने बैठी हुई मस्तानी-सी दिखने वाली खूबसूरत नवयौवना अभिव्यक्ति शर्मा है और उसको भोपाल तक की यात्रा करनी है। गाड़ी लखनऊ से 20 किमी आगे आ गई थी। नेटवर्क ने धोखा दे दिया और सबके मोबाइल फोन के फेसबुक बंद हो गए थे। अब लोग विवशताभरी निगाहों से एक-दूसरे को देख रहे थे।
नवाब साहब अपनी बीवी से बातचीत में मशगूल हो गए, तभी चाय वाले ने प्रवेश किया। चाय गरम, डिप टी। मैंने धीरे से बुलाया। जरा चाय का एक कप देना। फिर धीरे से अभिव्यक्तिजी की तरफ मुस्कुराकर कहा- मैडम आप भी चाय लेंगी क्या? अरे नहीं थैंक्स। अरे प्लीज लीजिए और वे चाय लेने को राजी हो गईं।
बातों का सिलसिला चल उठा। जी मेरा नाम विकास है। मैंने कम्प्यूटर्स में बीटेक किया है। इंफोसिस में 3 लाख के पैकेज में मेरा प्लेसमेंट हो गया। मुंबई पोस्टिंग मिल गई है। मैं लेखक और कवि भी हूं। यदि आप कहें तो कुछ कविताएं और कहानियां आपको दिखाऊं? विकास बिना रुके बोले जा रहे थे, लेकिन अभिव्यक्ति एक शांत मुद्रा में बातों को सुन रही थी। बातों को सुनने के क्रम में उनकी आंखों की पलक ऊपर-नीचे हो रही थी और ऐसा लग रहा था कि पलकों का यह उठना-गिरना हमी को तौलने का क्रम है।
चाय को खत्म करते हुए उन्होंने कहा कि मैं हिन्दी में नहीं, इंग्लिश नॉवेल स्टोरी पढ़ती हूं। अरे यह तो पूरी कहानी बिना उपसंहार के समाप्त हो गई। अब क्या इन्हें बताएं? इन्होंने तो सारे किए-कराए पर पानी फेर दिया है, ऐसा विकास के मन में भाव उठ रहा था।
उन्होंने अपनी असहजता को छुपाते हुए कहा, जी बहुत अच्छा, आप अंग्रेजी नॉवेल पढ़ती हैं। आपके फेवरिट राइटर कौन हैं और उनके उपन्यास का क्या नाम है? अभिव्यक्ति ने बड़े शांत स्वर में जवाब दिया, जी विक्रम सेठ और उनका नॉवेल 'दि सूटेबल ब्वॉय' मुझे बहुत पसंद है। अरे ये तो बहुत बड़े राइटरों को पसंद करती है। विकास मन ही मन बुदबुदाए। लेकिन क्या इन्हें अभी तक सूटेबल ब्वॉय मिला? यह यक्षप्रश्न अभी तक जीवित था। विकास बिना पलकों को गिराए हुए अभिव्यक्ति के मुखारबिंदु पर आई हुई अभिव्यक्तियों को पढ़ने का प्रयास कर रहा था और अभिव्यक्ति बिना इसकी परवाह किए हुए किसी दूसरी दुनिया में लीन थी।
जी सॉरी, टाइम काफी हो गया है। मैं सोना चाहती हूं। अभिव्यक्ति ने बातचीत के क्रम को तोड़ते हुए कहा। अरे, जरूर आप नीचे की सीट पर आ जाएं। नहीं-नहीं, परेशान होने की जरूरत नहीं है। अरे, इसमें क्या परेशानी की बात। मैं आपकी सीट पर ऊपर चला जाता हूं, आप नीचे आ जाएं, आपको भोपाल उतरना है।
और अंत में उन्होंने निवेदन को स्वीकार कर लिया और नीचे की मेरी बर्थ पर बेडिंग बिछाकर सो गई। मैं अब अभिव्यक्ति की सीट पर ऊपर आ गया था। नीचे देखने पर अभिव्यक्ति एक मौन शांत अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करते हुए निद्रा में लीन दिखाई दे रही थी। मैं उनके शांत व सुंदर मुखड़े पर लिखी गई कहानी को पढ़ने का प्रयास कर रहा था।
गाड़ी ने काफी तेज रफ्तार पकड़ ली थी और गंतव्य की तरफ बढ़ रही थी। सामने के सहयात्री ने लाइट बुझा दी थी। अब सोना मेरी मजबूरी थी। अभिव्यक्ति की अनुभूतियां मानस पटल पर विद्यमान थीं। कुछ सोचते हुए नींद आ गई।
नींद टूटी और जब गाड़ी विदिशा स्टेशन पर आई और सामने वाली खिड़की खोलकर नीले आकाश की तरफ नजर घुमाई तो बादलों और चांद में लुकाछिपी का खेल चल रहा था। 'काले बादलों के बीच में चांद कितना सुंदर लगता है', मन के कोने से आवाज आई। अरे ये बारिश होने लगी और चांद बादलों में पूरा छिप गया। नजर अब बाहर निकले हुए चांद से हटकर नीचे की सीट पर आ गई तो यहां भी काले केसुओं के बीच चांद मुस्कुरा रहा था।
अरे, यहां भी चांद निकला हुआ है। बिलकुल पूर्णिमा का। मन के एक कोने से आवाज आई। भोपाल आने वाला था। सतपुड़ा की बड़ी सुंदर पहाड़ियां, दूर-दूर तक फैले हुए हरे-भरे खेत, पोखरें, चहकती हुई चिड़ियाएं पेड़ों पर दिखाई दे रही थीं। कितने समय से ये सब चीजें हमसे दूर हो गई हैं। आज के महानगरों में स्मृतिप्राय-सा रह गया है ये पक्षियों का कलरव और शेष है महानगरों के रूप में केवल कांक्रीट के जंगल।
चलो अभिव्यक्ति को उठा देते हैं। उन्हें भोपाल उतरना है। 'गुड मॉर्निंग, उठिए अभिव्यक्तिजी, भोपाल आने वाला है', मैंने आवाज दी और 'गुड मॉर्निंग' कहते हुए अभिव्यक्ति अपनी सीट से उठ खड़ी हुई। अच्छा किया विकासजी आपने उठा दिया और यह कह वे फ्रेश होने वॉशरूम की तरफ चल दी। थोड़ी देर में वे फ्रेश होकर वापस आ गईं।
सूरज की गुनगुनाती हुई धुंध नई सुबह का आगाज कर रही थी, जो खिड़की से बाहर देखने पर बहुत सुंदर लग रही थी। लो भोपाल शुरू हो गया। अभिव्यक्ति अपने सूटकेस को सीट से बाहर निकालने लगी। मैं ऊपर आ गया और उनके सूटकेस को सीट से बाहर निकाल दिया। अरे काहे परेशान हो रहे हो? अरे इसमें परेशानी की क्या बात? मैंने धीरे से कहा। गाड़ी प्लेटफॉर्म पर खड़ी हो गई थी।
मैंने धीरे से अभिव्यक्ति से कहा, बुरा न मानें तो अपना पता दे दें। जी जरूर। उन्होंने लाल स्याही से लिखा- 'मिस अभिव्यक्ति शर्मा, भोपाल' और कागज मेरे हाथ में पकड़ा दिया। मैं उनको छोड़ने गेट तक आया। धीरे से 'बाय' कहा। उन्होंने हल्की-सी मुस्कराहट के साथ कहा- 'सी यू अगेन' और वह उतर गई। मैं चुपचाप उन्हें जाता हुआ देख रहा था, जब तक कि वह नजरों से ओझल नहीं हो गई। फिर आकर अपनी सीट पर बैठ गया।
मन के कोने में बार-बार विचार-मंथन हो रहा था कि मां-बाप कितने दिनों से मेरे वैवाहिक विज्ञापन अखबारों व पोर्टलों में दे रहे हैं। क्या बता दूं कि आज तलाश पूरी हो गई। अरे नहीं, सब हंसेंगे। चुपचाप मैं अपनी सीट पर बैठ गया।
गाड़ी धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म छोड़ आगे बढ़ने लगी। नदी, पोखरे, लहलहाते हुए खेत, सतपुड़ा की पहाड़ियां सब छूटने लगे, पर एक वस्तु संभालकर मैं अपने हाथों में पकड़े हुए था। वह कागज का टुकड़ा था जिस पर लाल स्याही से लिखा था- 'मिस अभिव्यक्ति शर्मा, भोपाल'। चलो ईश्वर को इस बात के लिए शुक्रिया अदा करें कि अभिव्यक्ति अभी मिस है, मतलब सीधा था। स्कोप है।
अभिव्यक्ति के विचारों में खोया हुआ था और समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला। और विचारों में भंग हुआ एक नया मैसेज बॉक्स में आ गया। मनचाही बात कीजिए, मनचाही फिमेल मित्रों से। सिर्फ 7 रु. प्रति मिनट के हिसाब से। अरे ये मैसेज कितने ही बार आ चुका है और ये दोस्ती तब तक बनी रहती है, जब तक कि सैकड़ों का मोबाइल रिचार्ज खत्म नहीं हो जाता है। अभी सोच ही रहा था कि लीजिए मुंबई आ गया और मैं मुंबई स्टेशन पर उतकर ऑटो कर अपने फ्लैट पर पहुंच गया।
अभिव्यक्ति की अनुभूतियां अभी भी हृदय के कैनवस पर बिलकुल ताजा थीं। थोड़ा विश्राम करने के बाद फिर कागज का टुकड़ा हाथ में था। 'मिस अभिव्यक्ति शर्मा, भोपाल'। भोपाल बहुत बड़ा है। कैसे ढूंढेंगे इसे? फिर मन के कोने में आवाज आई- आओ चलो, फेसबुक पर सर्च करते हैं। और ये मिल गई अभिव्यक्ति शर्मा फेसबुक पर। ये सीनियर मैनेजर हैं आज तक में। व्यक्ति के साथ ही बायोडाटा भी बड़ा आकर्षक है। चलिए फेसबुक पर मित्रता का निवेदन भेज देते हैं।
और मित्रता का निवेदन भेज दिया गया। लेकिन उधर से वॉर्निंग आ गई- 'हाऊ यू डेयर हू कॉन्टेक्ट' भी आगे से पोस्ट किया तो वूमन सेल में कम्प्लेंट करूंगी। बातें वूमन सेल में पहुंच गई थी। कुछ खतरनाक संकेत लग रहे थे। चलो चुप रहते हैं।
अभिव्यक्ति से मुलाकात हुए एक हफ्ते से ज्यादा का समय बीत गया था, लेकिन यादें अभी भी ताजा थीं। उधर कुछ शुभ समाचार मुझे प्राप्त हो गए थे। मुझे मेरे द्वारा इंफोसिस में दिए गए इंटरव्यू का परिणाम आ गया था और मैं इंफोसिस में मैनेजर के पद पर चयनित हो गया था। लेटर मेरे हाथ में था। दिल ने फिर कुलांचे भरी कि चलो अभिव्यक्ति को सूचित करते हैं, लेकिन ऐसे नहीं। कुछ कविता के साथ। सो एक कविता लिख डाली- इसे आप हटा सकती हैं। फेसबुक व व्हॉट्सएप से अपने नाम को, लेकिन कैसे हटाएंगी इसे मेरे दिल से जिसके हर एक कोने पर आपका नाम लिखा हुआ है और नए अपॉइंटमेंट लेटर के साथ कविता अभिव्यक्ति के टाइम लाइन पर पोस्ट कर दी।
मन में एक अव्यक्त डर था कि कहीं वूमन सेल वाले न आ जाएं। अरे ये क्या? उधर से नई पोस्ट आ गई। यू आर वेलकम। अभिव्यक्ति ने मुझे फेसबुक फ्रेंड में एड कर लिया था। फेसबुक व व्हॉट्सएप मैसेंजर द्वारा हम रोज घंटों चैटिंग करते। लग ही नहीं रहा था कि अभिव्यक्ति और मैं 600 किमी की दूरी पर हैं। और ये बातचीत अब बढ़ते-बढ़ते मांगलिक संबंधों में तब्दील होने जा रही है। पिछले छ: महीनों में हम बहुत कुछ एक-दूसरे के विषय में जान गए थे।
अभिव्यक्ति मेरे सामने बैठी है और हम दोनों अपनी मित्रता और आजीवन संबंधों के लिए किसी को 'थैंक यू' कहना चाहते थे। मैंने अभिव्यक्ति से कहा, सोचो अपनी इस आजीवन मित्रता के लिए किसे 'थैंक यू' कहेंगे?
अभिव्यक्ति ने कहा, जी आप भी सोचिए। फिर हम दोनों मुस्कुराए और जोर से चिल्लाए- 'थैंक यू फैसबुक'
(इस कहानी के सारे पात्र काल्पनिक हैं और इसका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।)