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रक्षाबंधन पर कहानी : वैभव का पत्र

रक्षाबंधन पर कहानी : वैभव का पत्र - Hindi Kahani On Rakshabandhan
आज वैभव का पत्र आया था। भाई के पत्र का कितने दिनों का इंतजार आज खत्म हुआ। पर आज जब पत्र उसके हाथ में है, अंजली उसे खोलते घबरा रही है। इतने दिनों का अबोला खींचा था दोनों के बीच।
 
इतना कुछ होने पर भी अंजली की अकड़ बनी थी। आज भी वैभव ने ही पहल की।
 
अंजली अब भी पत्र ले असमंजस मे घिरी थी। उसके दंभ ने रिश्तों में दरार ही डाली थी। पर अब भी अंजली चेती हो, इसकी कम ही उम्मीद थी।अब तक भाई पर अधिकार दिखाने वाली अंजली क्यों भाई से इतनी विमुख हो गई? भाई ने बस अंजली को उसकी जगह ही तो याद दिलाई थी।मायके में अंजली की जरुरत से ज्यादा दखलंदाजी पर जब लगाम कसी तो वो कसमसा उठी।
 
"कल की आई लड़की का भाई पर इतना हक? मुझे दुध में गिरी मक्खी की तरह उखाड़ फेंका!!!" अंजली का मन भाभी के लिए कड़वाहट से भर गया। शुरू से लाड़-प्यार में पली अंजली को आदत हो गई थी कि हर जगह उसकी चले। अंजली की शादी के कई साल बाद वैभव का ब्याह हुआ था। सो, मायके के हर मामले में अंजली की पुछ होती।
 
विपुल ने एक बार मजाक मे उसे समझाया भी था, "मायके के हर मामले में मत उलझा करो। वैभव की शादी के बाद तुम्हें अपना पद छोड़ना पड़ेगा?" तब अंजली ने उसकी बात को हवा में उड़ा दिया था।
  
वैभव की नई ब्याहता उस दिन कहीं जाने को तैयार हो रही थी, अब तक उसने अंजली की वजह से ही बाहर कदम नहीं रखा था। पर आज वैभव ही सिनेमा के दो टिकट ले आया था। मां का भी इसरार था कि दोनों कही घूम आएं। अंजली को यह बात कचोट गई कि भाई के हाथ मे केवल दो ही टिकट हैं।
 
स्नेहा जैसे ही तैयार हो कमरे से निकली, "अंजली ने उसे देख बुरा-सा मुंह बनाया।" ये कौन-सी साड़ी निकाल पहन ली? मेरी दी कांजीवरम् की साड़ी पहनती। तुम्हें तो पहनने-ओढ़ने का जरा शऊर नहीं।"
 
अंजली का चलाया तीर अपना काम कर गया था। भाभी का मन उखड़ गया। भाई वहीं खड़ा था। अंजली के बात करने का लहजा उसे अखर गया। तभी उसने छुटते साथ रूखाई से कहा, "साड़ी एकदम ठीक थी और स्नेहा ने उसे बड़ी मेहनत से पहना था। आपको तो हर बात पर टोकने की आदत पड़ी है।"
 
मां ने भी आज विपुल का साथ दिया। "कल की आई लड़की के आगे उसका इतना अपमान।" अंजली ने अपना सुटकेस उठाया और चलने को तैयार हुई। मां, भाई, भाभी सबने उसे रोकने की कोशिश की, पर अंजली के सर पर दंभ तारी था। कैसे अपना दिल खोल कर रख दिया रूकती!!
 
उसके बाद भैया-भाभी के कई फोन आए पर अंजली का मान बना रहा।
दो हफ्ते बाद रक्षाबंधन था। अंजली को मायके की बेतरह याद आ रही थी। आखिर को अंजली ने पत्र खोल कर पढ़ा। पत्र क्या था, भैया ने अपना दिल खोल कर रख दिया हो जैसे। भाई-भाभी रक्षाबंधन में उसके पास आ रहे थे।
 
जो भी हो इतने दिनों के मायके बिछोह ने उसे रिश्तों का मोल समझा दिया था। अंजली अभी अपनी ननद को फोन करने बैठी हैं। इस बार के रक्षाबंधन में अंजली रिश्तों को एक नए सिरे से संवारेगी।
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