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Written By WD

इमरोज की खुशबू

वे कहते हैं हमें सुंदर स्त्री चाहिए, इंटेलीजेंट नहीं

इमरोज की खुशबू -
- रवींद्र व्यास

WD
इमरोज का जिक्र होता है तो अमृता की खुशबू उड़ती है और अमृता की बात होती है तो इमरोज और साहिर दोनों का दिल धड़कने लगता है। तमाम तरह के त्रिकोण से अलग इनका कोई त्रिकोण नहीं। कोई एंगल नहीं। ये तीनों अपनी जगह, अपनी मौजूदगी और गैर मौजूदगी में हर एंगल को मिटाते हुए लगभग एंजेल की तरह हैं।

मेरी यादों की धुँध में एक नाजुक काया सफेद लिबास में सूरज की हसीन और मुलायम किरण की तरह नमूदार होती है। आहिस्ता-आहिस्ता अपनी ही लय में मगन, इस बात से बेखबर कि उसकी कई मारू अदा पर कोई बरसों-बरस फिदा रहा है। यह उजली, हसीन और मुलायम किरण इमरोज है।

जिंदगी के खूबसूरत मोड़ों पर एक-दूसरे से जुदा, लेकिन इनकी छायाएँ ऐसी कि एक-दूसरे के अस्तित्व पर एक-दूसरे का असर डालती, डोलती हुई...
  इमरोज का जिक्र होता है तो अमृता की खुशबू उड़ती है और अमृता की बात होती है तो इमरोज और साहिर दोनों का दिल धड़कने लगता है। तमाम तरह के त्रिकोण से अलग इनका कोई त्रिकोण नहीं। कोई एंगल नहीं।      


मैंने बात शुरू की... इमरोज कहते हैं अमृता जिंदा रहीं तब तक इमरोज का इतना जिक्र नहीं होता था। उसके जाने के बाद मैं अमृता के बारे में जानने के लिए एक सोर्स रह गया हूँ कि अमृता के बारे में कुछ अनकहा-अनछिपा बताऊँ। इन दिनों नज्म लिख रहा हूँ। ये नज्में मेरी और अमृता की बायोग्राफी ही हैं। मैंने अमृता के साथ जो खूबसूरत पल और दिन-रात गुजारे हैं। वे अपने आप ही नज्म की शक्ल में उतरते जा रहे हैं।

दर्द को सहन करने में मैं जरा भी उसकी मदद नहीं कर सकता था और जब वह फना हो गई तो जिस्मानी तकलीफ से उसे निजात मिल गई और मैं भी उस दर्द से मुक्त हो गया। मौत हमेशा भयानक नहीं होती, वह निजात भी होती है। अब उसने जिस्म तो छोड़ दिया है लेकिन मेरा साथ नहीं छोड़ा है।
वह अब भी मेरी जिंदगी में दबे पाँव आहिस्ता आती है और हम एक-दूसरे को नज्म सुनाते हैं-चुपचाप। इसमें शब्दों की फुसफुसाहट नहीं बल्कि ये नज्में अपने मौन में ही मुखर होती रहती हैं। जब वह थी तो जिंदगी खुद एक खूबसूरत नज्म थी और अब उसके जाने के बाद वही नज्म कतरा-कतरा कागज पर उतर रही है... और ये नज्में ऐसी हैं कि जो जिया है वही मैंने लिखा है। और एक बार लिखने के बाद उसमें रत्तीभर मैं न उसमें जोड़ता हूँ न घटाता हूँ।

उतना ही कहता हूँ जितना गहराई से मैंने महसूसा है। उसके साथ बिताए पलों को किसी भी तरह से ग्लोरिफाई करने की कोशिश नहीं करता। इनमें मेरी कोई तलाश नहीं, कोई हसरत नहीं और कोई दु:ख भी नहीं। बस ये तो अमृता के साथ बिताए खूबसूरत और खुशबूदार पलों के बयानात हैं। यह मेरी जिंदगी मनाने का जश्न है और इसी‍लिए मैंने अपनी किताब का नाम 'जश्न जारी है' रखा है। आई एम स्टील सेलिब्रेटिंग। अमृता के जाने के बाद भी यह जारी है क्योंकि मैं अमृता से जिस्मानी तौर पर ही अलग हुआ हूँ। रूहानी तौर पर तो वह मुझमें अब भी धड़क रही है।

मैंने अपनी पेंटिंग की सिरीज वूमन विद माइंड पेंट की और उसका ख्याल अमृता के ही एक सवाल से पैदा हुआ था। एक दिन अमृता ने मुझसे सवाल किया कि ज्यादातर पेंटर औरत के जिस्म को ही पेंट करते हैं। क्या तुम इससे आगे जाकर कुछ पेंट कर सकते हो जिसमें उसे रूहानी तौर पर पकड़ने की कोशिश की गई हो। यह सवाल उसने मुझसे 1959 में कभी पूछा था और तब मैं उसके सवाल का जवाब नहीं दे पाया।

वह पेंटिंग सिरीज विद माइंड मैंने शुरू की 1966 में यानी मैं इस बारे में लगातार सात सालों तक सोचता रहा कि इसे कैसे पेंट किया जाए। पहले मैंने यूरोप-अमेरिका के तमाम पेंटरों की पेंटिंग्स देखी जिसमें सैकड़ों न्यूड्‍स भी थे और सचमुच अधिकांश पेंटरों ने औरत को जिस्मानी तौर पर ही पेंट किया था। आप देखें कि यूरोप में कई पेंटर ऐसे थे जिन्होंने मॉडल को बैठाकर न्यूड पेंट किए और वे उन मॉडलों के साथ सोते भी थे।

(इस बीच वे एक मजेदार कार्टून का जिक्र भी करते हैं जो किसी विदेशी मैगजीन में छपा था। इसमें सर्द मौसम में एक पेंटर निर्वस्त्र मॉडल को पेंट कर रहा है। पेंटर ने न्यूड मॉडल के लिए तो हीटर लगा रखा है और अपने पास तेज चलता हुआ पंखा।)

वे धीरे से हँसते हैं और फिर संजीदा होकर कहते हैं- हमने स्त्रियों का अजीब हाल कर रखा है। हम चाहते हैं सुंदर स्त्रियाँ। वे घर संभालें, खाना बनाएँ, बर्तन माँजें और बच्चों को पालें। हमें खूबसूरत औरत चाहिए, इंटेलीजेंट औरत नहीं।

एक इंटेलीजेंट औरत के साथ रहना सचमुच मुश्किल है क्योंकि वह सवाल करेगी, वह सवाल करती है। तो अमृता के उस सवाल के सात साल बाद मैंने वूमन विद माइंड को पेंट करना शुरू किया। और पहले अपने ख्यालों में उसे रूहानी तौर पर महसूस किया और फिर कागज पर उस रूहानी औरत के रंग और खुशबू को पकड़ने की कोशिश की।