मीडिया का 'ओवर एक्टिव' होना जरूरी है : सुमित अवस्थी
विशेष मुलाकात
सुमित अवस्थी, टेलीविजन की दुनिया की एक सौम्य शख्सियत। 'जी न्यूज' से आरंभ उनका सफर इन दिनों 'आजतक' पर प्रखर पत्रकारिता के परचम लहरा रहा है। सधी हुई आवाज, शिष्ट अंदाज, बेबाक विचार और त्वरित अभिव्यक्ति के साथ सुमित वेबदुनिया से रूबरू हुए। समसामयिक मुद्दों पर उनकी धारदार टिप्पणी ने जहां वैचारिक बहस को आगे बढ़ाया वहीं टीवी की दुनिया के उनके निजी अनुभवों ने नवागत पत्रकारों के समक्ष मेहनत और अनुशासन का संदेश दिया। इन दिनों वे अक्सर अमिताभ बच्चन के साथ 'केबीसी' में बतौर 'एक्सपर्ट' दिखाई दे रहे हैं। प्रस्तुत है जानेमाने टीवी एंकर-पत्रकार सुमित अवस्थी से विशेष बातचीत : * आपने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में लंबा सफर तय किया है, क्या आप मानते हैं कि दिन-प्रतिदिन मीडिया 'ओवर रि-एक्टिव' होता जा रहा है। -
मैं इससे पूरी तरह सहमत नहीं हूं। मैं मानता हूं कि मीडिया 'ओवर एक्टिव' हो सकता है। होना पड़ता है। आज हर व्यक्ति कमोबेश पत्रकार है। हर खबर से उसकी कनेक्टिविटी है। इंटरनेट, सोशल मीडिया, ट्विटर ने उसे किसी खबर से अछूता नहीं रखा है ऐसे में किसी खबर पर हमारी निष्क्रियता या उदासीनता हमारे दर्शकों को निराश कर सकती है। समाज जागरूक हो गया है इसलिए इस चैतन्य समाज के साथ हमारी यानी मीडिया की जिम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी है। हम यह सब नहीं करेंगे तो यही समाज हमारे विरूद्ध होगा। मेरे विचार से उदासीनता से कहीं बेहतर है अति सक्रियता। * कसाब को अचानक फांसी दे दी गई और मीडिया इस सारे प्रकरण से अनभिज्ञ कैसे रहा? कहीं कोई ब्रेकिंग न्यूज नहीं और सीधे खबर..? -
मैं मानता हूं कि इस सारे प्रकरण से हम सबको कुछ सीखना चाहिए। आज भी हमारे सरकारी सिस्टम में इतनी गोपनीयता कायम है कि किसी को कानों कान खबर नहीं हुई और फांसी भी दे दी गई। यह निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। 'ब्रेकिंग' का मतलब वह खबर नहीं होना चाहिए जो कहीं कोई नेता या बड़ा व्यक्ति चाहे कि मीडिया में वह खबर आए और हम पत्रकारों को उस खबर की आड़ में अपना मोहरा बना ले। कसाब मामले को मैं देश हित में सकारात्मक दृष्टि से देखता हूं कि आज भी हमारा सिस्टम गोपनीयता के महत्व को जानता है, सुरक्षा को लेकर चाक-चौबंद है। * दिवंगत नेता बाल ठाकरे के बाद मुंबई बंद पर फेसबुक टिप्पणी से लड़कियों की गिरफ्तारी पर आप क्या कहना चाहेंगे? -
मुझे लगता है मामले को अनावश्यक तूल दिया गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा होना चाहिए। शाहीन ने जो लिखा वह ठीक था मगर अभिव्यक्ति के नाम पर संवेदनशील समय पर संवेदनशील टिप्पणी से बचा जाना चाहिए। पुलिस को जल्दबाजी से बचना चाहिए। अगर पुलिस गिरफ्तारी की जल्दबाजी ना करती तो शायद यह मामला बेहद सामान्य होता। क्योंकि सोशल नेटवर्किंग पर आप किसी को भी कुछ भी कहने से नहीं रोक सकते लेकिन यह टिप्पणी करने वाले के स्वविवेक पर भी निर्भर करता है कि वह समाज हित में संतुलित बयानबाजी करें।