हिन्दी कविता : उनसे नहीं बोला
- अशोक बाबू माहौर
मैंने कभी
अपने आपको नहीं खोला
खिड़कियां, दरवाजे से नहीं बोला।
अवाक् खड़े
यूं
गुलाब गमले में,
उगी घास
आंगन में
घूंघट लिए
शायद उनसे भी
नहीं बोला...
उधर ठिठुरती
कोपलें नीम की,
व्यंग्य छोड़ती मुझ पर
पास वाली
बूढ़ी पत्तियां...
अब शाम का चांद
मुस्कुराकर धीमे से
उड़ाकर ढेरों
मजाक मेरी
पुलकित मन को
अपंग कर देता...।