हिन्दी कविता : प्रेम
आकाश निधि
प्रेम अभिलाषा है,
या फिर जिज्ञासा है,
कुछ पाने की, या
फिर कुछ देने की आशा है,
प्रेम ईश्वर है, या
फिर ईश्वर प्रेम है,
प्रेम करना है, तो
क्या आवश्यक संयोग है?
प्रेम आकर्षण है, या
फिर आकर्षण प्रेम है,
प्रेम बतलाने की, या
फिर जीवन की नेमि है,
प्रेम किसी स्वरूप से है,
या फिर निज स्वरूप दर्शन है,
प्रेम किसी यौवनपन से, या
आत्मशुद्धि प्रलोभन है,
प्रेम चढ़े जो हाला सा, तो
असुर साम्य होता है,
अमिय रस गर बरसाये,
तो सुर समान होता है,
प्रेम, भक्ति में क्या अंतर है?
या दोनो समान हैं,
दोनों ही गर मिल जाए,
जीवन सुंदर सोपान है