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Written By ND

हिन्दी कविता : प्रकृति की वनमाला

हिन्दी कविता :  प्रकृति की वनमाला - hindi Poem
पुष्पा परजिया 
ऊंचे-ऊंचे टीलों से टकराकर, नीचे गिरती यह जलधारा 
बुंदें उस पानी की ऐसी जैसे बनी मोती की माला
सोच रही है एक बालिका, कैसे पाऊं मैं यह मोती माला
घने बादलो के पीछे से, निकली इन्द्रधनुष की रंगशाला 
सुन्दर सृष्टि रच रही है ये, प्रकृति की जीवन शाला 
ऊंची,आड़ी,टेढ़ी पगडंडियों में शोभित है यह वनमाला 


कहीं पर है यह पंछियों का चहकना और 
कहीं पर है यह मधुर मृगबाला....
कितनी सुन्दर रचना तेरी
 तुझ पर वारि जाऊ मै नंदलाला
नतमस्तक होकर पार न पाऊं  
कितनी सुन्दर है यह तेरी प्रकृति की वनमाला।