सफर की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहे...
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राहत इंदौरी सफर की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहेचले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहेये क्या उठाए कदम और आ गई मंज़िलमज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहेवो शख़्स मुझ को कोई जालसाज लगता हैतुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहेमुझे ज़मीन की गहराइयों ने दाब लियामैं चाहता था सर पे आसमान रहेअब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत हैमगर ये बात हमारे ही दरमियान रहेमगर सितारों की फसलें उगा सका न कोईमेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहेवो इक सवाल है फिर उसका सामना होगादुआ करो के सलामत मेरी जबान रहे।