- लाइफ स्टाइल
» - साहित्य
» - काव्य-संसार
बरसात में
-
आशा जाकड़ बरसात के अथाह समुद्र मेंपीड़ा का समुद्र उमड़ पड़ा।नदी-नाल सब टूट पड़े,सड़कों पर पानी का रेला,बह रहा वर्षों का कचरा-मैला।पेड़-पौधे नख-शिख तक भीग रहे,स्नान कर चैन की साँस ले रहे।जीव-जंतु वृक्षों के नीचे,दबे, कुचले आहें भर रहे,मानो बच्चों की नावें तैर रहे।अनगिनत पानी में समाधि ले गए,कई घर छोड़ पलायन कर गए।